Table of Contents
वैदिक काल (Vedic Period) | वैदिक साहित्य (Vedic Sahitya)
सिन्धु सभ्यता के पतन के बाद जो नवीन संस्कृति प्रकाश में आई उसके विषय में सम्पूर्ण जानकारी वेदों से मिलती है। इसलिए इस काल को वैदिक काल के नाम से जाना जाता है। वैदिक काल का अध्ययन वैदिक साहित्य के आधार पर मुख्य रूप से किया जाता है। वैदिक काल को दो भागो में वर्गीकृत किया जाता है- ऋग्वैदिक काल एवं उत्तर वैदिक काल।
यह सभ्यता अपनी पूर्ववर्ती हड़प्पा सभ्यता से काफी भिन्न थी। इस सभ्यता के संस्थापक आर्य माने जाते हैं। इसलिए कभी-कभी इसे आर्य सभ्यता भी कहा जाता है। यहाँ आर्य शब्द का अर्थ है- श्रेष्ठ, उत्तम, उदात्त, अभिजात्य, कुलीन, उत्कृष्ट एवं स्वतन्त्र आदि।
ऋग्वैदिक काल 1500 ई.पू. से 600 ई.पू. तक अस्तित्व में रहा।
वैदिक काल के साहित्यिक स्रोत : वैदिक साहित्य
वैदिक संस्कृति का निर्धारण पूर्णत: साहित्यिक स्रोतों (वैदिक साहित्य- मूलत: वेद) के आधार पर किया जाता है क्योंकि पुरातात्विक स्रोत न के बराबर प्राप्त हुए हैं। ऋग्वैदिक काल की विशेषताओं का निर्धारण मुख्यत: ऋग्वेद, सामवेद एवं यजुर्वेद के आधार पर किया जाता है जबकि उत्तर वैदिक काल का अध्ययन के लिए अथर्ववेद उपयोगी ग्रन्थ है।
वैदिक साहित्य के अंतर्गत चार वेद, आठ ब्राह्मण, छः आरण्यक और तेरह उपनिषदों को शामिल किया जाता है। प्रत्येक वेद के साथ ब्राह्मण, अरण्यक एवं उपनिषद सम्बद्ध है, जो निम्न प्रकार हैं-
क्र सं० | वेद | ब्राह्मण | आरण्यक | उपनिषद |
1 | ऋग्वेद | ऐतरेय कौषीतकी | ऐतरेय कौषीतकी | ऐतरेय कौषीतकी |
2 | यजुर्वेद | शतपथ तैतरीय | वृहदारण्यक तैतरीय | वृहदोपनिषद ईशोपनिषद तैतरीय कठोपनिषद श्वेताश्वर मैत्रयणी |
3 | सामवेद | पंचविश षड्विश जैमिनीय | छांदोग्य जैमिनीय | छांदोग्य जैमिनीय
|
4 | अथर्ववेद | गोपथ | कोई नहीं | प्रश्नोपनिषद मुंडकोपनिषद माण्डूक्योपनिषद |
वेद एवं उनके पुरोहित
- ऋग्वेद -होता या होतृ वर्ग के पुरोहित यज्ञ कुण्ड में अग्नि का आह्वान कर वेदमंत्रों द्वारा देवताओं का आह्वान करते थे।
- सामवेद-उद्गाता या उदागातृ वर्ग के पुरोहित यज्ञ में साम का गायन करते थे।
- यजुर्वेद- ‘अध्वर्यु’ याज्ञिक कर्मकाण्ड की विधियों का समुचित रूप से अनुष्ठान करते थे।
- अथर्ववेद- ‘ब्रह्म’ यज्ञ का निरीक्षण।
ऋग्वेद
ऋग्वेद की शाखाएं एवं सूक्त
ऋग्वेद की शाखाएं- आश्वालायन, शांखायन, मांडुकायन, साकल व वास्कल। केवल साकल व काष्कल उपलब्ध हैं।
धार्मिक रूप से ऋग्वेद अग्निदेव को समर्पित है।
अग्नि सूक्त ऋग्वेद के प्रथम मण्डल का प्रथम सूक्त है |
विवाह, सूर्या, अक्ष, मण्डूक, अंत्येष्टि, मृत्यु, सामनस्य, पुरुष व नदी सूक्त महत्वपूर्ण सूक्त हैं।
नदी सूक्त में 99 नदियों का उल्लेख है, जिनमें मुख्य रूप से बहने वाली 25 नदियां हैं। इसमें सप्त सैंधव के अलावा दृशद्वती, अपाया, गंगा-यमुना भी हैं।
हिरण्यगर्भ सूक्त, ऋग्वेद के 10वें मंडल का 120 वां सूक्त है, जिसमें सृष्टि उत्पत्ति की प्राथमिक परिकल्पना है।
ऋग्वेद के प्रमुख संवाद
ऋग्वेद में कुछ प्रमुख संवाद है : –
- यम-यमी संवाद
- पुरुरवा – उर्वशी संवाद
- सरमा-पणि संवाद (सरमा- इन्द्र की कुतिया थी)
- विश्वामित्र-नदी-संवाद
- वशिष्ठ-सुदास-संवाद
- अगस्त्य-लोपामुद्रा-संवाद
ऋग्वेद के दसवें मण्डल के 95 सूक्त में पुरुरवा, ऐल और उर्वशी का संवाद है। ऋग्वेद की रचना सप्त सैन्धव प्रदेश में हुई।
ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद को माना जाता है, परन्तु सुश्रुत आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं।।
ऋग्वेद के प्रमुख भाग एवं उसके रचयिता
ऋग्वेद के कुल 10 मंडल (अध्याय) में 1028 सूक्त (11 बालखिल्य सूक्त सहित ) है जिसमें लगभग 11 हजार मंत्र (10580) हैं। मन्त्रों के माध्यम से देवताओं की स्तुति की गयी है।
ॠग्वेद का प्रथम तथा आठवां मण्डल सबसे अन्त में जोड़ा गया।
प्रथम एवं दशम् मंडल को शतर्चिन कहते हैं क्योंकि इसमें सभी 100 शब्दों वाले मंत्र हैं।
ऋग्वेद के रचयिता
ऋग्वेद के 10 प्रमुख भाग हैं, प्रत्येक को एक-एक ऋषि ने लिखा है। ऋग्वेद के प्रमुख भाग एवं उसके रचयिता निम्न हैं-ॠग्वेद भारत-यूरोपीय भाषाओं का सबसे पुराना निदर्श है। इसमें अग्नि, इन्द्र, मित्र, वरुण आदि देवताओं की संस्तुतियाँ संग्रहीत हैं।
यजुर्वेद
यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि विधानों का संकलन किया गया है जो मुख्यतः गद्यात्मक है परंतु कुछ रचनाएँ मिश्रित अर्थात गद्य एवं पद्य में भी है। यजु का अर्थ होता है ‘यज्ञ’ ।
यजुर्वेद के दो भाग हैं – शुक्ल यजुर्वेद एवं कृष्ण यजुर्वेद। शुक्ल यजुर्वेद को वाजसनेयी संहिता के नाम से जाना जाता है ।
यजुर्वेद धार्मिक रूप से वायु देवता को समर्पित है।
यजुर्वेद पांच शाखाओं में विभक्त हैं- काठक, कपिष्ठल, मैत्रायणी, तैतरीय एवं वाजसनेयी।
यजुर्वेद से सम्बन्धित ब्राह्मण ग्रंथ हैं- शतपथ एवं तैतरीय ब्राह्मण।
यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद
सामवेद
सामवेद में मुख्यत: यज्ञों के समय पर गाऐ जाने वाले मंत्रों का संग्रह है इसलिए इसे भारतीय संगीत का मूल कहा जाता है।
सामवेद धार्मिक रूप से सूर्यदेव को समर्पित है।
सामवेद की शाखाएं
इसकी मुख्यत: तीन शाखाएं हैं तथा इनकी रचना अलग अलग क्षेत्र में हुई मानी जाती है-कौथुम गुजरात में, राणायनीय महाराष्ट्र में, जैमिनीय कर्नाटक में।
सामवेद में कुल 1549 मंत्र है, जिनके से केवल 75 स्वतंत्र मंत्र हैं।
सामवेद में कुल तीन ब्राह्मण – पंचविंश, षडविंश व जैमिनीय हैं।
सामवेद में कुल दो आरण्यक छांदोग्य व जैमिनीय।
सामवेद में कुल दो उपनिषद- छांदोग्य व जैमिनीय।
सामवेद का उपवेद गंधर्ववेद है।
अथर्ववेद
अथर्ववेद धार्मिक रूप से परमपिता परमेश्वर को समर्पित है।
अथर्ववेद के लिए कुछ अन्य नामें का प्रयोग किया जाता है –
- अंगिरस वेद – इस वेद में जो मंत्र हैं वे ऋषि अंगिरा व उनके वंशजों एवं शिष्यों द्वारा रचित है।
- महिवेद – अथर्वेद में ‘पृथ्वी सूक्त है’ जिसमें पहली बार मातृभूमि की परिकल्पना है इसलिए इसे महिवेद कहा जाता है।
- ब्रह्मवेद – इस वेद के कई मंत्र ब्रह्म से संबंधित हैं।
- भैषज्य वेद – इस वेद का केन सूक्त आयुर्वेद से संबंधित है।
अथर्ववेद की शाखाएँ
अथर्ववेद की दो शाखाएँ हैं – शौनक और पिप्पलाद।
अथर्ववेद का केवल एक ब्राह्मण है – गोपथ।
अथर्ववेद का कोई आरण्यक नहीं है।
अथर्ववेद के तीन उपनिषद हैं- प्रश्नोपनिषद, मुण्डकोपनिषद व माण्डूक्योपनिषद।
यह वेद कांडों व अध्यायों में विभाजित है।
अथर्ववेद का उपवेद शिल्पवेद है।
आर्य कौन थे ?
आर्यों का इतिहास हमें मुख्यतः वेदों से ज्ञात होता है। आर्यों का आगमन 1500 ई.पू. के कुछ पहले हुआ। उनके आगमन का कोई स्पष्ट और ठोस पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिलता है।
ॠग्वेद की अनेक बातें अवेस्ता से मिलती हैं। अवेस्ता ईरानी भाषा का प्राचीनतम ग्रन्थ है।
पश्चिमोत्तर भारत में प्राप्त हथियारों से यह विदित होता है कि आरम्भिक आर्यों का निवास पूर्वी अफगानिस्तान और पंजाब में तथा पश्चिमी उ.प्र. सीमावर्ती भू-भागों में था।
आर्य कौन थे एवं कहाँ के निवासी थे इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं. आर्यों के मूल निवास के सन्दर्भ में विभिन्न विद्वानों के अलग-अलग विचार हैं।
अधिकांश विद्वान प्रो. मैक्समूलर के विचारों से सहमत हैं कि आर्य मूल रूप से मध्य एशिया के निवासी थे।
यूनेस्को ने ऋग्वेद की अट्ठारह सौ से पंद्रह सौ ईसवी पूर्व की लगभग तीस पांडुलिपियों को विश्व की सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है।
प्रारम्भिक परीक्षोंपयोगी महत्वपूर्ण लेख |
वैदिक साहित्य : महत्वपूर्ण तथ्य
वैदिक साहित्य से सम्बन्धित निम्न तथ्य महत्वपूर्ण हैं जिससे प्रश्न पूछे जाते हैं-
ब्राह्मण ग्रंथ
ये गद्यात्मक रचनाएं हैं।
सबसे पूर्व का ब्राहमण तैतरीय है।
सबसे बाद का ब्राह्मण गोपथ है।
सबसे विशाल शतपथ ब्राह्मण है।
सबसे छोटा गोपथ ब्राह्मण है।
शतपथ ब्राहमण
माध्यंदिन एवं काण्व दोनों ही शाखाओं वाला शतपथ ब्राह्मण बाद के काल का है।
इसके प्रवक्ता याज्ञवल्क्य हैं।
इसके 100 अध्यायों के कारण इसका नाम शतपथ पड़ा।
इन्द्र-वृत्तासुर संग्राम, देवासुर संग्राम, जल प्लावन की कथा, दुष्यंत-भरत कथा, विदेथ माधव कथा, मनु-श्रद्धा-इड़ा की कथा शतपथ ब्राह्मण में मिलती है।
शतपथ ब्राह्मण के मतानुसार राजा वही होता है जिसे प्रजा का अनुमोदन प्राप्त हो।
शतपथ ब्राह्मण में12 रत्नियों व 17 जल द्वारा राज्याभिषेक का वर्णन है।
इसमें कहा गया है कि गाय व बैल पृथ्वी धारण करते हैं अत: इनकी हत्या नहीं करनी चाहिए।
इसमें सूदखोरी (कुसीदिन) की चर्चा है।
इसमें क्षत्रिय को ब्राहमण से श्रेष्ठ बताया गया है।
इसमें निम्न नदी – रेवा-नर्मदा, सदानीरा-गंडक की चर्चा मिलती है।
ऐतरेय ब्राह्मण
इसके प्रवक्ता महिदास ऐतरेय हैं जिनकी मां का नाम इतरा था।
उत्तर वैदिक कालीन प्रशासनिक प्रणालियों व राजतंत्र की उत्पत्ति की जानकारी मिलती है।
सुन:शेप व हरिश्चंद्र आख्यान इसमें पाया जाता है।
इसमें कहा गया है कि पुरुष की कई पत्नियां संभव है पर स्त्री के कई पति संभव नहीं है।
इसके अनुसार दो गधे अश्विन का रथ खींचते हैं।
पंचविंश ब्राह्मण
इसके प्रवक्ता तिण्डी ऋषि थे, इसलिए इसका एक नाम तांड्य ब्राह्मण भी है।
इसमें व्रात्य यज्ञ की चर्चा रक्त शुद्धता बहाल हेतु की गई है ।
इसमें रत्नियों को बीर कहा गया है।
षड्विंश ब्राह्मण
इसका एक नाम अद्भुत ब्राह्मण भी है क्योंकि इसमें अद्भुत कर्म की चर्चा मिलती है।
अकाल नहीं पड़ने हेतु प्रार्थना इसमें की गई है।
प्रथमतः इन्द्र व अहिल्या की कहानी यहीं से प्राप्त हुई है
गोपथ ब्राह्मण
ब्रह्मा के पुष्कर राजस्थान में जन्म लेने की कहानी गोपथ ब्राह्मण में है।
इसमें वरुण के क्रमश: गौण होकर जल देवता बनने की कहानी वर्णित है।
आरण्यक
इसमें कर्मकांड की मीमांसा हुई है।
यज्ञ की प्रयोजनीयता एवं उपयोगिता की जांच हुई व विकल्प रूप में चिंतन पर दिया है।
इसकी शैली गद्यात्मक ही है।
उपनिषद
कुल 13 उपनिषद प्रारंभिक उपनिषद् माने जाते हैं।
शंकराचार्य ने 10 उपनिषदों पर ठीका लिखी है पर उन्होंने मैत्रायणी, श्वेताश्वर व कौषितकी उपनिषद पर टीका नहीं लिखी है।
मुख्यत: उपनिषद गद्य-पद्य मिश्रित शैली में हैं। मात्र चार उपनिषद पद्यात्मक है – कठोपनिषद, ईशोपनिषद, श्वेताश्वर उपनिषद व मुण्डकोपनिषद। मिश्रित शैली में प्रश्नोपनिषद एवं शेष उपनिषद आठ गद्यात्मक हैं।
आकार में विशालतम उपनिषद हैं – वृहदारण्यक व छांदोग्य।
आकार में सबसे छोटा उपनिषद है – माण्डूक्योपनिषद ।
वृहदारण्यक उपनिषद
इसके प्रवक्ता याज्ञवल्क्य हैं।
इसमें जनक के दरबार का वर्णन है।
याज्ञवल्क्य-मैत्रेयी व याज्ञवल्क्य-गार्गी का संवाद इसी में है।
इसी में सूत्र है ‘यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे’ और ‘अहम ब्रह्मास्मि’।
इसमें विदुषी पुत्री हेतु यज्ञ किए जाने का उल्लेख है।
इसमें उल्लेख है कि श्वेतकेतु के पिता उद्बालक आरुणि ज्ञान प्राप्ति व पंचाग्नि विद्या हेतु पांचाल नरेश प्रवाहण जैबलि के पास गए।
छांदोग्य उपनिषद
कई प्रसिद्ध वार्तालाप नारद-संत कुमार व आरुणि उद्यालक-श्वेतकेतु आदि हैं।
वासुदेव श्रीकृष्ण को गुरू अंगिरस का उपदेश संकलित है।
प्रवाहण जैबलि का विचार व परलोक सिद्धांत इसी में है।
इसमें तीन आश्रमों की चर्चा है, पर चारों की जाबालोपनिषद में है।
इसमें दुर्भिक्ष का उल्लेख है।
श्वेताश्वर उपनिषद
भक्ति का पहला उल्लेख ऋषि श्वेताश्वर भक्तिपूर्वक रुद्र की शरण लेता है।
इसमें की महत्ता बताई गई है।
भविष्य के शैव व सांख्य मत इसी से उभरा है।
कठोपनिषद
यम-नचिकेता की कहानी इसमें मिलती है।
मृत्यु बाद जीवन पर विचार किया गया है, परलोक सिद्धांत है।
ईशोपनिषद
कर्मयोग – निष्काम कर्म बताया गया है जो गीता का आधार है।
आत्म हत्या के विरुद्ध कठोर चेतावनी है। इसे नैतिक, धार्मिक तथा आध्यात्मिक सभी दृष्टियों से अनुचित कहा गया है।
मुण्डकोपनिषद
इसमें सत्यमेव जयते का उल्लेख हुआ है।
इसमें यज्ञ की तुलना फूटे हुए नाव से की गई
माण्डूक्योपनिषद
इसमें कहा गया है कि ‘सत्य ही सुन्दर है।’