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शुंग वंश / Shunga Vansh (184-75 ई.पू.) || The Shunga dynasty
शुंग वंश (Shunga dynasty in hindi) का इतिहास 184 ई.पू. से आरम्भ होता है जब मौर्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने अन्तिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या करके शुंग राजवंश (Shunga Vansh) की स्थापना की थी। शुंग वंश की राजधानी मध्य प्रदेश के विदिशा में थी।
भारतीय इतिहास में शुंग वंश का उदय मौर्यों के पतन के बाद हुआ जो मुख्यत: उत्तर भारत में केन्द्रित था। शुंग वंश की स्थापना को कुछ इतिहासकार ब्राह्मण प्रतिक्रिया के रूप में मानते हैं।
शुंग वंश का शासन काल 184 ई.पू. – 72 ई.पू. के बीच रहा था।
शुंग राजवंश की उत्पत्ति
इस वंश की उत्पत्ति के बारे में इतिहासकारों के बीच मतैक्य नहीं है क्योंकि विभिन्न स्रोतों में विभिन्न जानकारी मिलती हैं।
- पाणिनि के अनुसार शुंग वंश के शासक ‘भारद्वाज’ गोत्र के ब्राह्मण थे।
- बौद्धायन श्रौतसूत्र के अनुसार वे बैम्बिक ‘कश्यप गौत्र’ के ब्राह्मण थे तो मालविकाग्निमित्र में पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र को ‘बैम्बिक कुल’ से सम्बन्धित किया गया है।
- आश्वालायन श्रौतसूत्र एवं वृहदारण्यक उपनिषद् में शुंगों का उल्लेख आचार्यों के रूप में किया गया है।
- बाणभट्ट रचित हर्षचरित में पुष्यमित्र शुंग को ‘अनार्य’ तथा निम्न उत्पत्ति का बताया गया है।
- सम्भवतः शुंग उज्जैन प्रदेश के रहने वाले थे।
शुंग राजवंश के इतिहास के अध्ययन के स्रोत :
शुंक इतिहास के अध्ययन के लिए पर्याप्त रूप में साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोत उपलब्ध हैं.
शुंग वंश के लिए उपयोगी साहित्य स्रोत :
ब्राह्मण साहित्य– मत्स्य, वायु तथा ब्रह्माण्ड पुराण शुंग इतिहास के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
बाणभट्ट रचित हर्षचरित के अनुसार पुष्यमित्र ने अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या कर दी और सिंहासन पर अधिकार कर लिया।
यवन आक्रमण की चर्चा पतंजलि के ‘महाभाष्य’ में हुई है, जिसमें बताया गया हैं कि यवनों ने साकेत तथा माध्यमिका को रौंद डाला था।
गार्गी संहिता (एक ज्योतिष ग्रंथ) में यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है। इसमें यवनों के पाटलिपुत्र (कुसुमध्वज) के निकट पहुँचने की चर्चा है।
कालिदास रचित नाटक मालविकाग्निमित्र अग्निमित्र से सम्बन्धित है। इसके अनुसार पुष्यमित्र का पुत्र अग्निमित्र विदिशा का राज्यपाल था तथा उसने विदर्भ को अपने राज्य में मिला लिया था। कालिदास के अनुसार अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने सिंधु नदी के दाहिने तट पर यवनों को पराजित किया था।
थेरावली (लेखक मेरुतुंग) में उज्जयिनी के शासकों की वंशावली दी गई है जिसमें पुष्यमित्र का भी उल्लेख है।
शुंग राजवंश के लिए उपयोगी पुरातात्विक स्रोत:
अयोध्या लेख – यह अयोध्या के शासक धनदेव का अभिलेख है जो संस्कृत में लिखे प्राचीनतम अभिलेखों में से एक है।। इससे पता चलता है कि शुंग शासक पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किये थे।
बेसनगर लेख या हेलिओडोरस स्तंभ – यह गरुड़ स्तम्भ के ऊपर खुदा है, हेलिओडोरस शुंग शासक भगभद्र के दरबार में यूनान का दूत था। इसमें भागवत धर्म के बारे में चर्चा है।
भरहुत का लेख- कनिंघम ने 1873 ई. में भरहुत स्तूप का पता लगाया। यह भरहुत स्तूप की वेष्टिनी पर खुदा हैं इससे पता चलता है कि यह स्तूप शुंगकालीन रचना है।
शुंग राजवंश / Shunga Rajvansh (184 ई.पू. – 72 ई.पू.)
पुष्यमित्र शुंग (Pushyamitra Shunga)
पुष्यमित्र शुंग अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ का प्रधान सेनापति था। उसने दो अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया। जिसकी पुष्टि पतंजलि के महाभाष्य, कालिदास के मालविकाग्निमित्र, धनदेव के अयोध्या लेख एवं हरिवंश पुराण से होता है। पतंजलि उसके अश्वमेध यज्ञ के पुरोहित थे।
पुष्यमित्र शुंग कट्टर ब्राह्मणवादी था। उसने ब्राह्मण धर्म का समर्थन किया तथा वैदिक धर्म एवं इसके आदर्शों को पुन:स्थापित किये जिसके कारण उसका काल वैदिक प्रतिक्रिया अथवा वैदिक पुनर्जागरण का काल भी कहा जाता है।
विदर्भ युद्ध- पुष्यमित्र शुंग के समय विदर्भ के शासक यज्ञसेन ने विद्रोह कर स्वयं को स्वत्रन्त्र घोषित कर दिया। इस विद्रोह को विदिशा के राज्यपाल अग्निमित्र के सेनापति वीरसेन ने यज्ञसेन के विद्रोह को दबाया था जिसकी चर्चा मालविकाग्निमित्र में मिलता है।
बौद्ध रचनाएं पुष्यमित्र को बौद्धों का हत्यारा तथा बौद्ध मठों और विहारों को नष्ट करने वाला बताती हैं जिसने अशोक द्वारा निर्मित 84000 स्तूपों को नष्ट कर दिया था।
पुष्यमित्र ने यवन आक्रमण का सामना किया तथ उन्हें मगध में प्रविष्ट नहीं होने दिया। गार्गी संहिता के अनुसार यवनों ने साकेत, पंचाल और मथुरा को जीत लिया।
पुष्यमित्र के उत्तराधिकारी
अग्निमित्र
पुष्यमित्र की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र अग्निमित्र राजा बना। वह उस समय विदिशा का उपराजा था।
वसुज्येष्ठ या सुज्येष्ठ
अग्निमित्र के बाद वसुज्येष्ठ राजा हुआ।
वसुमित्र
शुंग वंश का चौथा राजा वसुमित्र हुआ। उसने यवनों को पराजित किया था। एक दिन नृत्य का आनन्द लेते समय मूजदेव नामक व्यक्ति ने उसकी हत्या कर दी।
शुंग वंश के नवें शासक भागभद्र (भागवत) के शासन काल में तक्षशिला के यवन शासक ‘एण्टियालकीट्स’ का राजदूत हेलियोडोरस विदिशा में वासुदेव के सम्मान में गरुड़ स्तम्भ स्थापित किया था जिसे हिन्दू धर्म का प्रथम स्मारक माना जाता है।
इस काल में वासुदेव विष्णु की उपासना प्रारंभ हुई तथा भागवत धर्म उदित हुआ।
सांस्कृतिक रूप से यह परिवर्तन का काल था जिसमें संस्कृत का पुनः विकास हुआ।
स्थापत्य के दृष्टि से शुंग काल में स्तूप निर्माण में मिटटी एवं कच्ची ईंटो की जगह पाषाण का उपयोग किया जाने लगा।
शुंगवंश का अंतिम शासक देवभूति (वसुमित्र) था। वह अत्यन्त विलासी शासक था। उसके अमात्य वासुदेव कण्व ने उसकी हत्या कर दी तथा ।
कण्व वंश (75-30 ई.पू.)
वासुदेव
शुंग वंश के अन्तिम सम्राट देवभूति की हत्या कर उसके अमात्य वासुदेव ने 75 ई.पू. में कण्व वंश की नींव रखी जिसका वर्णन हर्षचरित में मिलता है। वासुदेव ने कुल नौ वर्ष तक राज्य किया था। इनकी राजधानी पाटलिपुत्र में थी।
तदोपरान्त तीन राजा हुए- यथा- भूमिपुत्र, नारायण तथा सुशर्मा, जिन्होंने क्रमश: चौदह, बारह तथा दस वर्षों तक राज्य किया। सुशर्मा इस वंश का अन्तिम शासक था जिसकी हत्या सिमुक ने कर दी थी।