राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर || National Register of Citizens || Important

National Register of Citizens

National Register of Citizens (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी)) का मुद्दा समसामयिक घटनाक्रम में प्रमुखता से शामिल था, इसको लेकर देश में कुछ आंदोलन भी हुए एवं समाज के कुछ लोगों को National Register of Citizens पर गंभीर आपत्तियाँ रही हैं।

मुख्य परीक्षा के दृष्टिकोण से National Register of Citizens से पूछे जाने वाले सवालों को अभ्यास के लिए दिया गया है, जरूरी नहीं है कि दिए गए प्रश्न से ही प्रश्न मुख्य परीक्षा में पूछे जाएं।

उत्तर लिखते समय नीचे दिए गए जानकारी का उपयोग प्रश्न की आवश्यकतानुसार किया जाना चाहिए।   

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) | National Register of Citizens

अभ्यास प्रश्न :

1. राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) एवं नागालैंड के स्वदेशी निवासियों का एक रजिस्टर(आरआईईन) के विषय में आप क्या जानते हैं?

What do you know about the National Register of Citizens (NRC) and a Register of Indigenous Residents of Nagaland (RIN)?

2. राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) क्या है ? यह कैसे अस्तित्व में आया एवं इसके संबंध में प्रमुख आपतियाँ क्या हैं?

What is National Register of Citizens (NRC)? How did it come into existence and what are the major objections to it?

3. राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के क्रियान्वयन में उत्पन्न होने वाली समस्याओं को रेखांकित करें तथा आपके विचार से एनआरसी की क्या उपयोगिता है? 

Outline the problems arising in the implementation of National Register of Citizens (NRC) and what do you think, is the use of NRC?

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) | What is National Register of Citizens

एनआरसी एक रजिस्टर है जिसमें सभी वास्तविक भारतीय नागरिकों के नाम हैं। वर्तमान में सिर्फ असम में ही ऐसा रजिस्टर है।  यह मूल रूप से राज्य में रहने वाले भारतीय नागरिकों की सूची है । नागरिकों का रजिस्टर (एनआरसी) विदेशी की पहचान करने के लिए निर्धारित करता है।

असम में भारतीय नागरिकों के लिए एनआरसी पहली बार 1951 में बनाया गया था। इस सूची में वे लोग शामिल थे जो 26 जनवरी, 1950  को भारत में रहते थे, या भारत में पैदा हुए थे या जिनके माता-पिता थे जो भारत में पैदा हुए थे या 26 जनवरी, 1950 कट ऑफ से पहले कम से पांच साल तक भारत में रह रहे थे ।

जिस्टर को अपडेट करने की प्रक्रिया 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुई, जिसमें राज्य के लगभग 33 मिलियन लोगों को यह साबित करना होगा कि वे 24 मार्च, 1971 से पहले भारतीय नागरिक थे । अद्यतन अंतिम एनआरसी 31 अगस्त 2019 को जारी किया गया था, जिनमे 19 लाख से अधिक आवेदक इस सूची में शामिल होने में विफल रहें है ।

एनआरसी के लिए विद्य दस्तावेज :

आवेदकों के पास दस्तावेज पेश करने के लिए अन्य विकल्प थे जैसे:-

  • शरणार्थी पंजीकरण प्रमाण पत्र,
  • जन्म प्रमाण पत्र,राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर
  • एलआईसी पॉलिसी,
  • भूमि और किरायेदारी रिकॉर्ड,
  • नागरिकता प्रमाण पत्र,
  • पासपोर्ट,
  • सरकार ने लाइसेंस या प्रमाण पत्र जारी किया,
  • बैंक/डाकघर खाते,
  • स्थायी आवासीय प्रमाण पत्र,
  • सरकारी रोजगार प्रमाण पत्र,
  • ग्यारहवीं शैक्षिक प्रमाण पत्र और अदालत के रिकॉर्ड ।

किसी व्यक्ति का इस सूची में शामिल होने का अर्थ यह नहीं है कि वह घोषित विदेशी है बल्कि ऐसे व्यक्ति विदेशी न्यायाधिकरण के समक्ष अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया. यदि वैसा व्यक्ति ट्रिब्यूनल में केस हार जाता है तो वह व्यक्ति उच्च न्यायालय एवं फिर सर्वोच्च न्ययालय जा सकते हैं.

असम के सम्बन्ध में राज्य सरकार ने कहा है कि वह तब तक किसी व्यक्ति को विदेशी मानकर गिरफ्तार नहीं करेगी जबतक की ट्रिब्यूनल उसे विदेशी घोषित न कर दे. इस व्यवस्था को अन्य राज्यों में भी लागू किया जा सकता है ।

मणिपुर और त्रिपुरा को भी अपने स्वयं के एनआरसी बनाने की अनुमति दी गई थी, लेकिन इसे कभी मूर्त रूप नहीं दिया गया ।

क्या पूरे देश में NRC लागू होगी ? (Will NRC be implemented across the country?)

देश के गृह मंत्री ने राज्यसभा मे यह बयान दिया था कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि सत्ताधारी मुख्य राजनीतिक दल ‘भारतीय जनता पार्टी’ के 2019 के चुनावी घोषणा पत्र में भी यह शामिल था।

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार को पूरे देश में एनआरसी लागू करने के लिए किसी कानून की आवश्यकता नहीं है।

नागरिकता नियम, 2003 के अनुसार, केंद्र सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) तैयार करने और उसमें एकत्रित आंकड़ों के आधार पर NRC बनाने का आदेश जारी कर सकती है।

2003 के संशोधन में आगे कहा गया है कि स्थानीय अधिकारी तब तय करेंगे कि उस व्यक्ति का नाम एनआरसी में जोड़ा जाएगा या नहीं, जिससे उनकी नागरिकता की स्थिति निर्धारित होगी।

भारत की जनगणना 2011 के हाउस-लिस्टिंग चरण के साथ 2010 में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के लिए डेटा एकत्र किया गया था। इस डेटा को, 2015 के दौरान घर-घर सर्वेक्षण करके अद्यतन किया गया था।

अद्यतन जानकारी का डिजिटलीकरण पूरा कर लिया गया है। अब सभी राज्यों एवं संघ शासित प्रदेश  में (असम छोड़कर) अप्रैल से सितंबर 2020 के दौरान जनगणना 2021 के हाउस-लिस्टिंग चरण के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अद्यतन करने का निर्णय लिया गया है।

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) देश के सामान्य निवासियों का एक रजिस्टर है। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को नागरिकता अधिनियम 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियम, 2003 के प्रावधानों के तहत स्थानीय (गांव / उप-नगर), उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाएगा। 

भारत के प्रत्येक सामान्य निवासी के लिए एनपीआर में पंजीकरण करना अनिवार्य है।

एक सामान्य निवासी को एनपीआर के लिए परिभाषित किया जाता है, जो पिछले 6 महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में रहता है या एक व्यक्ति जो अगले 6 महीने या उससे अधिक समय तक उस क्षेत्र में निवास करने का इरादा रखता है।

NPR का उद्देश्य देश के प्रत्येक सामान्य निवासी का एक व्यापक पहचान डेटाबेस बनाना है। डेटाबेस में जनसांख्यिकीय के साथ-साथ बायोमेट्रिक विवरण शामिल होंगे।

उल्लेखनीय है कि देश के कई राज्यों ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) का विरोध किया है एवं  इनके विरुद्ध प्रस्ताव पारित किये हैं।

एनआरसी वास्तव में वह प्रक्रिया है जिससे देश में गैर-कानूनी तौर पर रह विदेशी लोगों को खोजने की कोशिश की जाती है। राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर या NRC (एनआरसी) से यह पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं।  जिस व्यक्ति के नाम एनआरसी में शामिल नहीं होते हैं, उन्हें अवैध नागरिक माना जाता है। 

NRC का इतिहास ?

वर्ष 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन  कर पूर्वी बंगाल और असम के रूप में एक नया प्रांत बनाया था।  जब देश का बंटवारा हुआ तो यह डर भी पैदा हो गया था कि कहीं असम पूर्वी पाकिस्तान के साथ जोड़कर भारत से अलग न कर दिया जाए। 

इसके बाद गोपीनाथ बोर्डोली की अगुवाई में असम विद्रोह शुरू हुआ. परिणामत: असम भारत में ही रहा, लेकिन सिलहट जिला पूर्वी पाकिस्तान में चला गया।  वर्ष 1950 में असम एक राज्य बना। नागरिकता रजिस्टर वर्ष 1951 की जनगणना के बाद तैयार हुआ और इसमें उस समय के असम के निवासियों को शामिल किया गया था.

वस्तुत: अंग्रेजों के शासनकाल में चाय बागान में काम करने और खाली पड़ी जमीन पर खेती करने के लिए बिहार-बंगाल के लोग असम आते थे, इसलिए वहां के स्थानीय लोग बाहरी लोगों से द्वेष रखते थे और यह एक राजनीतिक मुद्दा बनने लगा।

इसके अतिरिक्त तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और बाद में बांग्लादेश के लोगों का अवैध तरीके से असम आने का सिलसिला जारी रहा।  

पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश में जब आंतरिक संघर्ष शुरू हो गया तथा परिस्थितियां इतनी हिंसक हो गई कि वहां रहने वाले हिंदू-मुस्लिम की एक बड़ी आबादी भारत आ गई।

अनुमानत: माना जाता है  1971 पूर्वी पाकिस्तान से करीब 10 लाख लोगों ने बांग्लादेश सीमा पार कर असम में शरण ली। इनमे से अधिकांश लोग वापस चले गए। उस समय की केंद्र सरकार ने किसी भी धर्म के शरणार्थियों को वापस जाने की बात कही थी, किन्तु ऐसा पूर्णत: हो न सका।

1971 के बाद भी बड़े पैमाने पर बांग्लादेशियों का असम में आना जारी रहा। जनसंख्या में होने वाले इस बदलाव ने मूलवासियों में भाषाई, सांस्कृतिक और राजनीतिक असुरक्षा की भावना पैदा कर दी। 

1978 के आसपास यहां असमिया या असम के सांस्कृतिक पहचान  के मसले को लेकर एक शक्तिशाली आंदोलन का जन्म हुआ, जिसकी अगुवाई वहां के युवाओं और छात्रों ने की, जिनका संबंध ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और ऑल असम गण संग्राम परिषद से था। 

आंदोलन कारियों की प्रमुख मांग मे से एक मांग यह  थी कई 1961 के बाद राज्य में जो भी लोग आए हैं, उन्हें उनके मूल राज्य में वापस भेज दिया जाए। ऐसे लोगों में बांग्लादेशियों के अलावा बिहार और बंगाल से आए लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी थी।

असम में आशान्ति के बीच 1983 के विधानसभा चुनाव का ऐलान किया गया। आंदोलनकारियों ने इसका बहिष्कार किया परिणामत: चुनाव के बाद निर्मित काँग्रेस सरकार को व्यापक समर्थन हाशिल नहीं था। 

1979 से 1985 के बीच असम में राजनीतिक अस्थिरता बनी रही इसमें कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन भी लागू हुआ।

केंद्र सरकार एवं आंदोलनकारियों के बीच वार्ता भी चल रही थी, 15 अगस्त 1985 को केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और आंदोलन के नेताओं के बीच समझौता हुआ जिसे असम समझौते के नाम से जाना गया। इस समझौते की समीक्षा 1999 में केंद्र की तत्कालीन भाजपा सरकार ने शुरू की।

17 नवंबर 1999 को केंद्र सरकार ने तय किया कि असम समझौते के तहत एनआरसी को अपडेट करना चाहिए।

इसके बाद 5 मई 2005 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फैसला लिया कि एनआरसी को अपडेट किया जाना चाहिए और असम सरकार ने राज्य के बारपेटा और चायगांव जैसे कुछ जिलों में पायलट परियोजना के रूप में एनआरसी अपडेट शुरू कर दिया था, लेकिन राज्य के कुछ हिस्सों में हिंसा के बाद यह रोक दिया गया। 

बाद में असम पब्लिक वर्क एवं कई अन्य संगठनों ने 2013 में इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। नवंबर 2017 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि 31 दिसंबर 2017 तक वो एनआरसी को अपडेट कर देंगे।  

2015 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और निगरानी में यह काम शुरू हुआ और 2018 जुलाई में फाइनल ड्राफ्ट पेश किया गया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने, जिन 40 लाख लोगों के नाम लिस्ट में नहीं हैं, उन पर किसी तरह की सख्ती बरतने पर फिलहाल के लिए रोक लगाई है। 

NRC के अनुसार 25 मार्च 1971 से पहले असम में रह रहे लोगों को भारतीय नागरिक माना गया है। 

एनआरसी को असम में लागू करने में जिस प्रकार की प्रशासनिक एवं संस्थानिक खामियाँ नजर आई वह इसकी प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। 

एनआरसी का विरोध : कारण 

1. एनआरसी को मुस्लिम विरोधी एवं दलित विरोधी कहा गया। वस्तुत: समाज के एक बड़े हिस्से के पास आज भी ऐसा कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो सकता है जिसके माध्यम से वह अपनी नागरिकता को वैद्य सिद्ध कर सके। 

2.  वैसे व्यक्ति जिन्हें एनआरसी में शामिल नहीं किया जा सके उनका क्या होगा? क्या उन्हें डिटेन्शन सेंटर में भेज जाएगा या उन्हें वापिस उनके देश भेजा जाएगा ? 

3.  वैद्य दस्तावेजों का अभाव क्या प्रशासनिक तंत्र को मनमानेपन की छूट प्रदान नहीं करेगा ? फर्जी दस्तावेजों के सत्यापन की क्या व्यवस्था है?

4. पूरे देश में लगभग 130 करोड़ आबादी के सत्यापन में कितना समय लगेगा एवं इसके लिए क्या संस्थागत ढांचा होगा ? बिना तैयारी के लागू करने से उत्पन्न होने वाली संकट के समाधान के लिए क्या व्यवस्था है?

5. केरल एवं राजस्थान जैसे राज्यों संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में इसके विरुद्ध केस दर्ज करवाया है। 

6. मानवीय एवं नैतिक आधार पर कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति जो वर्षों से भारत में रह रहा है उनके पूर्वज भी यहीं थे किन्तु उनके पास कोई मान्य वैध दस्तावेज न होने के कारण उन्हे भारत के नागरिकता से वंचित करना कितना सही है?

7. एनआरसी एवं नागरिकता संशोधन कानून 2019 (CAA) को मिलाकर देखने से यह एक खास समुदाय के खिलाफ प्रतीत होता है। 

 

 

नागालैंड के स्वदेशीओं का रजिस्टर ( Register of Indigenous Inhabitants of Nagaland (RIIN))

 नगालैंड सरकार ने नागरिकता रजिस्टर (National Register of Citizens) के अपने संस्करण को लागू करने के लिए एक प्रयास शुरू किया है।

नागालैंड सरकार ने नागालैंड के स्वदेशी निवासियों (आरआईईन) का एक रजिस्टर लागू करने का फैसला किया है। यह असम द्वारा अपने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में संशोधन शुरू करने के 4 साल बाद आया है ।

इसका उद्देश्य ‘नकली स्वदेशी निवासी’ के प्रमाण पत्रों को रोकना है । आरआईईन राज्य के सभी स्वदेशी/मूल  निवासियों की मास्टर सूची होगी ।

यह प्रक्रिया पूरे नागालैंड में आयोजित की जाएगी और इनर लाइन परमिट (आईएलपी), जो नागालैंड में पहले से ही लागू है, की ऑनलाइन प्रणाली के हिस्से के रूप में की जाएगी । इस पूरी कवायद की निगरानी नागालैंड के कमिश्नर करेंगे ।

आरआईईन सूची जिला प्रशासन की देखरेख में एक व्यापक सर्वेक्षण पर तैयार होगी। इसके बाद तैयार औपबंधिक सूची सभी लोगों के लिए गाँव, वार्डों, सरकारी वेबसाइट पर जारी की जाएगी, जिसपर 30 दिनों के अन्दर आपति दर्ज कराई जा सकती है, सभी आपतियों के निराकरण के बाद अंतिम सूची सभी के लिए जारी किये जायेंगे। 

प्रत्येक व्यक्ति एक यूनिक आईडी दिया जायेगा। एक बार सूची के अंतिम रूप देने के बाद किसी भी व्यक्ति को इसमें शामिल नहीं किया जायेगा इसके अपबाद सिर्फ नए जन्मे बच्चे होंगे।  यदि कोई व्यक्ति किसी वजह से छोट जाता है तो उसे होम कमिश्नर के समक्ष आवेदन देना होगा.

इस सर्टिफिकेट के लिए व्यक्ति को निम्न शर्तों को पूरा करना होगा :-

1. व्यक्ति को 1 दिसंबर, 1963 से पहले नागालैंड में स्थायी रूप से बसा होना चाहिए

2. उसके माता-पिता या वैध अभिभावक कट-ऑफ डेट (1 दिसंबर 1963) से पहले से हाउस टैक्स का भुगतान कर रहे हों,

3. आवेदक, या उसके माता-पिता या वैध अभिभावक, संपत्ति और एक पट्टा (भूमि प्रमाण पत्र) का अधिग्रहण इस कट ऑफ तिथि से पहले किया हो

 

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