मौर्य साम्राज्य अथवा मौर्य काल अथवा मौर्य वंश
मौर्य साम्राज्य (मौर्य वंश) (Maurya Empire in hindi) का काल अथवा मौर्य काल (Maurya kal) लगभग 322 ईसा पूर्व से 187 ईसा पूर्व के बीच रहा (Maurya period in hindi)।
मगध पर मौर्यों के शासन के पहले कुल 4 राजवंश ने शासन किया। मौर्य राजवंश ( मौर्य वंश ) की शुरुआत चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी।
मौर्य वंश : चंद्रगुप्त मौर्य (323-295 ई.पू.)
मौर्य साम्राज्य का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य था।
चाणक्य (विष्णुगुप्त अथवा कौटिल्य) चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) का गुरू एवं प्रधानमंत्री था। चाणक्य ने ही नन्द वंश के शासक धनानन्द को हराने में चंद्रगुप्त की मदद की थी।
कौटिल्य ने शासन व्यवस्था पर ‘अर्थशास्त्र‘ नामक पुस्तक लिखी।
विशाखदत्त ने ‘मुद्राराक्षस‘ नाटक में चंद्रगुप्त के लिए वृषल शब्द का प्रयोग किया है।
चंद्रगुप्त मौर्य का ‘चंद्रगुप्त’ संज्ञा का प्राचीनतम अभिलेखीय साक्ष्य रूद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से मिलता है।
305 ई.पू. में चंद्रगुप्त एवं यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर के मध्य युद्ध हुआ जिसमें सेल्यूकस पराजित हुआ।
सेल्यूकस ने अपनी पुत्री ‘कार्नेलिया’ का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य के साथ कर दिया एवं चंद्रगुप्त को चार प्रांत अराकोसिया (कंधार) पेरोपनिसडे (काबुल), एरिया (हेरात) एवं जेड्रोसिया (बलूचिस्तान) सौंप दिए।
सेल्यूकस ने अपना राजदूत ‘मेगस्थनीज‘ को चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा, जिसने ‘इंडिका‘ नामक पुस्तक की रचना की।
परिशिष्टपर्वन नामक जैन ग्रंथ में चंद्रगुप्त को जैन धर्म का अनुयायी बताया गया है।
चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन मुनि भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली।
महास्थान अभिलेख में चंद्रगुप्त मौर्य की बंगाल विजय का वर्णन मिलता है।
चंद्रगुप्त मौर्य की दक्षिण भारत की विजय के विषय में जानकारी तमिल ग्रंथों ‘अहनानूरू’ एवं ‘पुरनानूरू’ तथा अशोक के अभिलेखों से मिलती है।
चंद्रगुप्त मौर्य ने मैसूर के श्रवणबेलगोला में उपवास द्वारा 298 ई.पू. में अपना शरीर त्याग दिया।
मौर्य वंश : बिन्दुसार (298-272 ई.पू.)
चंद्रगुप्त मौर्य के पश्चात् उसका पुत्र बिंदुसार उत्तराधिकारी बना, जो 298 ई.पू. में मगध की गद्दी पर बैठा।
यूनानी लेखक एथीनियस ने बिंदुसार को अमित्रकेट्स (अमित्रघात) कहा है, जिसका अर्थ है शत्रुओं का विनाशक।
यूनानी शासक एंटियोकस ने डाइमेकस नाम के राजदूत को बिंदुसार के दरबार में भेजा जिसे मेगस्थनीज का उत्तराधिकारी माना जाता है।
बिंदुसार ने एंटियोकस से मदिरा, सूखे अंजीर एवं एक दार्शनिक भेजने की प्रार्थना की थी।
मिस्र के शासक फिलाडेल्फस टालमी द्वितीय ने पाटलिपुत्र में डायोनिसियस नामक राजदूत को बिंदुसार के दरबार में भेजा।
बिंदुसार ‘आजीवक‘ संप्रदाय का अनुयायी था।
चाणक्य बिंदुसार का भी प्रधानमंत्री था।
जैन परंपरा के अनुसार बिंदुसार की माता का नाम दुर्धरा था।
दिव्यावदान के अनुसार इसके शासनकाल में दो विद्रोह तक्षशिला में हुए जिसको शांत करने के लिए पहले अपने पुत्र अशोक को तथा दूसरी बार सुसीम को भेजा।
बिंदुसार ने अपने बड़े पुत्र सुसीम को तक्षशिला एवं अशोक को उज्जैनी का राज्यपाल नियुक्त किया था।
बौद्ध विद्वान तारानाथ के अनुसार बिंदुसार 16 राज्यों का विजेता था।
मौर्य वंश : अशोक (273-232 ई.पू.)
बिंदुसार के बाद अशोक मौर्य साम्राज्य का शासक बना।
अशोक का विधिवत राज्याभिषेक 269 ई.पू. में हुआ।
बौद्ध साहित्य के अनुसार अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी था।
अशोक की तीन पत्नियों का नाम निम्न है – महादेवी, असंघमित्रा एवं करूवाकी।
अशोक के अभिलेख में उसकी एकमात्र पत्नी करूवाकी का विवरण मिलता है जो तीवर की माता थी।
अशोक का नाम उसके दो अभिलेखों में मिलता है – मास्की एवं गुर्जरा।
पुराणों में अशोक को अशोकवर्द्धन कहा गया है।
राज्याभिषेक के पूर्व अशोक उज्जैन का राज्यपाल था।
अशोक ने राज्याभिषेक के सातवें वर्ष कश्मीर एवं खोतान को विजित किया।
अशोक ने कश्मीर में वितस्ता नदी के तट पर श्रीनगर नामक नगर की स्थापना की।
अशोक ने 261 ई.पू. में कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग की राजधानी तोसली पर कब्जा कर लिया।
अशोक ने अपने राज्याभिषेक के दसवें वर्ष बोध गया तथा 20वें वर्ष लुंबिनी की धम्मयात्रा की।
हाथीगुंफा अभिलेख के अनुसार अशोक के समय कलिंग पर सम्भवतः नन्दराज नामक शासक शासन कर रहा था।
अशोक के 13वें शिलालेख में कलिंग युद्ध एवं उसके परिणामों का वर्णन मिलता है।
ह्ह्वेनसांग के अनुसार उपगुप्त नामक बौद्ध आचार्य ने अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी।
अशोक ने राज्याभिषेक के चौथे वर्ष निग्रोध के प्रवचन से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया।
अशोक ने बराबर की पहाड़ियों में आजीवकों के रहने के लिए चार गुफाओं (कर्ण, चौपार, सुदामा एवं विश्व झोपड़ी) का निर्माण करवाया।
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा।
अशोक के शिलालेखों में चोल, चेर, पांड्य और केरल सुदूर दक्षिणावर्ती स्वतंत्र सीमावर्ती राज्य बताए गए हैं।
अशोक ने सर्वप्रथम भारत में शिलालेख का प्रचलन किया।
अशोक के शिलालेखों में ब्राहमी, खरोष्ठी, ग्रीक एवं अरमाइक लिपि का प्रयोग हुआ है।
ग्रीक एवं अरमाइक लिपि के अभिलेख अफगानिस्तान से प्राप्त हुए हैं।
खरोष्ठी लिपि के अभिलेख उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान एवं शेष भारत से ब्राह्मी लिपि के अभिलेख प्राप्त हुए हैं।
अशोक ने धम्म को राहुलोवादसुत्त से लिया है।
अशोक को अभिलेखों के माध्यम से प्रजा को संबोधित करने की प्रेरणा ईरानी शासक डेरियस (दारा प्रथम) से मिली थी।
अशोक स्तंभों की खोज सबसे पहले 1750 ई. में पाद्रटी फेन्थैला ने की थी।
अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में पहली बार सफलता जेम्स प्रिंसेप को 1837 ई. में प्राप्त हुई।
भाब्रू लघु शिलालेख अशोक के बौद्ध होने का सबसे प्रबल प्रमाण है।
अशोक का सबसे लंबा स्तंभ लेख भाब्रू अभिलेख है।
अशोक के इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख को रानी का अभिलेख कहा जाता है।
प्रयाग लघु स्तंभलेख में तीवर की माता कारूवाकी द्वारा दिए गए दान का वर्णन है।
गिरनार शिलालेख पर अशोक के अतिरिक्त रूद्रदामन एवं स्कंदगुप्त के लेख उत्कीर्ण है।
बैराट लघु शिलालेख में अशोक ने प्रियदर्शी राजा की उपाधि धरण की।
कल्हण की राजतरंगिणी में अशोक के पत्र जालौक का उल्लेख मिलता है।
रुमिनदेई अभिलेख से मौर्यकाल की स्पष्ट कर नीति की जानकारी मिलती है।
नेपाल की तराई से अशोक के दो अभिलेख मिले हैं – रुमिनदेई एवं निग्लिवा।
अशोक ने नेपाल में ललितपत्तन नामक नगर बसाया।
कलिंग युद्ध के पश्चात अशोक ने ‘भेरीघोष’ को त्यागकर ‘धम्मघोष’ को अपनाया।
अशोक के दो अभिलेखों में बौद्ध संघ में फूट डालने वाले भिक्षु या भिक्षुणियों के लिए दण्ड की व्यवस्था की गयी है। ये हैं सारनाथ स्तंभलेख एवं इलाहाबाद स्तंभलेख।
अशोक ने मज्झंतिक को कश्मीर एवं कंधार में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा था।
अशोक ने अपने शासन के 13वें वर्ष पहली बार अपनी प्रजा की सुख शांति के लिए ‘धम्म महामात्रों’ की नियुक्ति की थी।
कंधार शिलालेख की लिपि यूनानी एवं अरमाइक है।
अशोक के लगभग सभी अभिलेखों की भाषा प्राकृत है।
कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार अशोक कश्मीर का प्रथम मौर्य शासक था। उसके बाद जालौक कश्मीर का शासक हुआ।
खरोष्ठी लिपि के शिलालेख मानसेहरा एवं शाहबाजगढ़ी से प्राप्त हुए हैं।
अशोक का उत्तराधिकारी कुणाल मौर्य साम्राज्य का शासक बना जिसे दिव्यावदान में धर्मविवर्धन कहा गया है।
अशोक का पुत्र जालौक कश्मीर का एवं वीरसेन गंधार का स्वतंत्र शासक बना।
कुणाल के पश्चात् मगध का शासन उसके पुत्र संप्रति के हाथों में आ गया।
कुणाल के पुत्र दशरथ ने आजीवकों को नागार्जुनी गुफाएं दान में दी।
मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ था जिसकी हत्या उसके ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी।
मगध के राजवंश ( मौर्य वंश सहित)
प्रमुख मगध राजवंश एवं उससे संबंधित शासक-
राजवंश | शासक | |
1 | बृहद्रथ | बृहद्रथ(संस्थापक) जरासंध रिपुंजय (अंतिम) |
2 | हर्यक | भट्टिय (बिंबिसार का पिता, संस्थापक) बिंबिसार (वास्तविक संस्थापक) अजातशत्रु दर्शक उदयभद्र (उदायिन) अनिरूद्ध नागदर्शक (अंतिम) |
3 | शिशुनाग | शिशुनाग (संस्थापक) कालाशोक महानन्दिन (नन्दिवर्द्धन, अंतिम) |
4 | नन्दवंश | महापद्मनंद (संस्थापक) पाण्डुक पण्डुमति भूतमाल राष्ट्रपाल गोविंदशोक (गोविषपाक) दशसिद्धक कैवर्त धनानन्द (अंतिम) |
5 | मौर्य वंश | चंद्रगुप्त मौर्य (संस्थापक) बिन्दुसार अशोक जालौक संप्रति दशरथ बृहस्पति बृहद्रथ (अंतिम) |
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