10 Major sites of Indus valley civilisation in Hindi | सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल

Major sites of indus valley civilisation in Hindi - हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, लोथल

सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल (Major sites of indus valley civilisation in Hindi) के इस लेख में सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थलों (मोहनजोदड़ो, सुतकागेंडोर, चन्हुदड़ो, लोथल, कालीबंगा, सुरकोटडा, बनावली, राखीगढ़ी और धोलावीरा) हड़प्पा, की खुदाई से प्राप्त साक्ष्यों से प्रश्न पूछे जाते हैं।  

सिविल सेवा जैसे यूपीएससी(UPSC) , बीपीएससी (BPSC) , जेपीससी (JPSC), यूपी पीएससी  (UPPSC) आदि  के लिए आयोजित होने वाली प्रारम्भिक परीक्षाओं का एक अपना पैटर्न होता है जिसके अनुरूप प्रश्न पूछे जाते हैं, इसी को ध्यान में रखकर इस लेख को लिखा गया है।

सिंधु घाटी सभ्यता पार्ट-2 

सिंधु घाटी सभ्यता मे हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, गनेरीवाला, राखीगढ, धोलावीरा तथा लोथल छः नगर मिले है जिसमें से धोलावीरा और लोथल भारत में स्थित है।

Major sites of Indus valley civilisation in Hindi हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, लोथल

सिन्धु घाटी सभ्यता एक नगरीकृत सभ्यता थी किन्तु इसके सभी स्थलों को नगर की श्रेणी में नहीं रखा जाता हैं, उत्खनन से प्राप्त सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख नगरों (Major sites of indus valley civilisation Hindi me) को उनकी विशेषताओं के आधार पर निम्न वर्गों में रखा जा सकता है:-

  • केन्द्रीय नगर:- सभी नगर की संरचना एवं आकार एकसमान नहीं है। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और धौलावीरा बड़े नगर थे जिन्हें केन्द्रीय नगर के रूप में स्वीकार किया गया है।   
  • बंदरगाह नगर:- वैसे नगर जो पत्तन के रूप में विकसित थे तथा यह सामान्यत: जलमार्ग के नजदीक मिले हैं, उदाहरण के लिए भोगवा नदी के किनारे स्थित लोथल सिंधु घाटी सभ्यता का एकमात्र पत्तन नगर था।  
  • अन्य नगर :- कुछ नगर गैर कृषि कार्य जैसे शिल्प के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थे जैसे चानहूदड़ों।  

सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थलों (Major sites of indus valley civilisation in Hindi) के उत्खनन से प्राप्त  मत्वपूर्ण साक्ष्यों को नीचे दिया गया है जिनसे बार बार प्रश्न पूछे जाते हैं। 

Table of Contents

सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल (Major sites of indus valley civilisation in Hindi)

हड़प्पा | Harappa 

पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित साहिवाल जिले में रावी नदी के बायें तट पर यह स्थित है। 

यहाँ एक प्राचीन सभ्यता के ध्वंसावशेषों के विषय में सर्वप्रथम जानकारी 1826 में चार्ल्स मेर्सन ने दी थी।

हड़प्पा का उत्खन 1921 में दायराम साहनी, 1926 में माधोस्वरूप वत्स तथा 1964 में मार्टीमर ह्वीलर द्वारा किया गया। हड़प्पा की खोज का श्रेय दायराम साहनी को है।

हड़प्पा से दो टीलें प्राप्त हुए हैं जिनमें से पूर्वी टीले को नगर टीला तथा पश्चिमी टीले को दुर्ग टीला कहा गया है।  यहाँ पर 6-6 की दो पंक्तियों में निर्मित बारह कक्षों वाले एक अन्नागार का अवशेष प्राप्त हुआ  है।

हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक कब्रिस्तान स्थित है, जिसे समाधि आर-37 कहा गया है।

सिन्धु सभ्यता में सर्वाधिक अभिलेख युक्त मुहरें हड़प्पा से मिली हैं।

इसके अतिरिक्त हड़प्पा से निम्न अवशेष मिले हैं:

  • दो कमरों वाला बैरक (जो शायद मजदूरों के रहने के लिए थे)
  • एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र
  • शंख का बना बैल
  • स्त्री के गर्भ से निकला हुआ पौधा (जिसे उर्वरता की देवी माना गया है)
  • पीतल का बना इक्का
  • ईंटों के वृत्ताकार, चबूतरे
  • गेहूँ तथा जौ के दानों के अवशेष आदि मिले हैं। 

मोहनजोदड़ो | Mohanjodaro 

यह सिन्ध के लरकाना जिले में सिन्धु नदी तट पर स्थित है। इसकी सर्वप्रथम खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में की थी। सिन्धी भाषा में मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ है ‘मृतकों का टीला’। 

मोहनजोदड़ो का सबसे महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है, जिसका जलाशय दुर्ग के टीले में है। स्नानागार में प्रवेश हेतु उत्तर-दक्षिण दिशा में सीढ़ियाँ बनी थी। 

मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत विशाल अन्नागार है जो 45.71 मी. लम्बा और 15.23 मी. चौड़ा है।

मोहनजोदड़ो में नगर योजना के अन्तर्गत उत्तर-दक्षिण एवं पूर्व-पश्चिम की ओर जाने वाली समानान्तर सड़कों का जाल चेसग्रिड पैटर्न पर बिछा था, जिन्होंने नगर को लगभग समान आकार वाले खण्डों में विभाजित कर दिया था।

यह एक सुनियोजित नगर था जिसमें सुरक्षा के प्रबंध किए गए थे।

मोहनजोदडो के घर अधिकांशतः पक्की ईंटों के थे। 

मोहनजोदड़ो के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को ‘स्तूपटीला’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर कुषाण शासकों ने एक स्तूप का निर्माण करवाया था।

मोहनजोदड़ो से सर्वाधिक मुहरें प्राप्त हुई हैं।

मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्य अवशेषों में निम्न प्रमुख हैं:- 

  • काँसे की नृत्यरत स्त्री की मूर्ति
  • पुजारी (योगी) की मूर्ति
  • पशुपति नाथ (शिव) की मूर्ति
  • कुम्भकारों के छः भट्ठे
  • सूती कपड़ा
  • हाथी का कपाल खण्ड
  • गले हुए ताँबे के ढेर
  • सीपी की बनी हुई पटरी
  • घोड़े के दाँत
  • गीली मिट्टी पर कपड़े के साक्ष्य मिले हैं।
  • घर से कुएं के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

चन्हूदड़ो | Chanhudaro

मोहनजोदड़ो से 80 मील दक्षिण में सिंधु नदी के किनारे  अवस्थित इस स्थल की सर्वप्रथम खोज 1931 ई. में एम.जी. मजूमदार ने की थी। 1935 ई. में इसका उत्खनन मैके ने किया

यहाँ से प्राक हड़प्पा संस्कृति, जिसे झूकर और झांगर संस्कृति कहते हैं, के अवशेष मिले हैं।

यह एक शिल्प विनिर्माण केंद्र था। यह मनके, सीप, अस्थि तथा मुद्रा बनाने का प्रमुख केन्द्र था।

चन्हूदड़ों एक मात्र पुरास्थल है जहाँ से वक्राकार ईंटे मिली हैं।

चन्हूदड़ों में दुर्ग का अभाव है।

यहाँ से प्राप्त अवशेषों में प्रमुख है:-

  • अलंकृत हाथी
  • खिलौना एवं कुत्ते द्वारा बिल्ली का पीछा करते पद-चिह्न
  • सौन्दर्य प्रसाधनों में प्रयुक्त लिपिस्टिक आदि।

लोथल | Lothal 

गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के तट पर स्थित इस स्थल की सर्वप्रथम खोज डा. एस.आर. राव ने 1955-63 में की थी।

मोहनजोदड़ो के समान लोथल को भी मृतको का टीला कहा जाता है। 

सागर तट पर स्थित यह स्थल पश्चिमी एशिया से व्यापार का प्रमुख बन्दरगाह था जहां से फारस की मुद्रा मिली है।

लोथल से मिले एक मकान का दरवाजा गली की ओर न खुल कर सड़क की ओर खुलता था।

उत्खननों ने लोथल की जो नगर योजना और अन्य भौतिक वस्तुएं प्रकाश में आई हैं, उनसे लोथल एक ‘लघु हड़प्पा’ या ‘लघु मोहनजोदड़ों’ नगर प्रतीत होता है। लोथल में गढ़ी और नगर दोनों रक्षा प्राचीर से घिरे मिले हैं।

यहाँ की सर्वाधिक प्रसिद्ध उपलब्धि हड़प्पा कालीन बन्दरगाह के अतिरिक्त मृदभाण्ड, उपकरण, मुहरें, बाट एवं माप तथा पाषाण उपकरण है।

लोथल की सबसे प्रमुख उपलब्धि जहाजों की गोदी (डॉक-यार्ड) है।

पंचतंत्र की चालाक लोमड़ी की कहानी का का चित्र प्राप्त हुआ।

यहाँ से प्राप्त अन्य अवशेषों में प्रमुख हैं –

  • बन्दरगाह
  • धान (चावल) और बाजरे का साक्ष्य
  • फारस की मुहर
  • घोड़े की लघु मृणमूर्ति
  • तीन युगल समाधियाँ
  • अग्नि वेदी के साक्ष्य आदि।

कालीबंगा | Kalibanga 

कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ है ‘काले रंग की चूड़ियाँ’ इसे ‘सैंधव साम्राज्य की तीसरी राजधानी’ माना जाता है ,जो  सरस्वती (घग्घर) नदी के किनारे पर था।  

राजस्थान के हनुमानगढ़ जिला (पूर्व में गंगानगर जिले) में स्थित इस प्राक् हड़प्पा पुरास्थल की खोज  ए. घोष ने 1953 ई. में की।

कालीबंगा में प्राक् सैन्धव संस्कृति की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि एक जुते हुए खेत का साक्ष्य है।

कालीबंगा मे हवन कुण्डों (अग्निकुंड) के अस्तित्व का साक्ष्य मिलता है।

कालीबंगा के पूर्वी टीले की योजना मोहनजोदड़ों की योजना से मिलती-जुलती है।

कालीबंगा के घर कच्ची ईटों के बने थे। 

कालीबंगा में कोई स्पष्ट घरेलू या शहरी जल निकास प्रणाली भी नहीं थी अर्थात यहाँ जल निकास प्रणाली का अभाव था।

यहाँ पर प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं। यहाँ से प्राप्त कुछ मृदभाण्ड परवर्ती हड़प्पा सांस्कृतिक युग में भी प्रयुक्त किये जाते रहे।

सेलखड़ी की मुहरें एवं मिट्टी की छोटी मुहरे (सीलें) महत्त्वपूर्ण अभिलिखित वस्तुएं थीं, जिनके वर्ण हड़प्पाकालीन लिपि के समान हैं।

यहाँ से प्राप्त अवशेषों में प्रमुख हैं:-

  • बेलनाकार मुहरें
  • हल के निशान ( जुते हुए हल के साक्ष्य )
  • ईटों से निर्मित चबूतरे
  • हवन कुण्ड या अग्निकुण्ड
  • अन्नागार
  • अलंकृत ईंटों का प्रयोग
  • घरों के निर्माण में कच्ची ईंटों का प्रयोग
  • शल्य क्रिया
  • भूकम्प के प्राचीनतम साक्ष्य
  • युगल तथा प्रतीकात्मक समाधियाँ आदि।

कालीबंगा में शवों के अन्त्येष्टि संस्कार हेतु तीन विधियाँ पूर्ण समाधिकरण, आंशिक समाधिकरण एवं दाह संस्कार के प्रमाण मिले हैं।

बनवाली | Banawali 

हरियाणा के हिसार जिले में स्थित इस पुरास्थल का उत्खनन आर.एस. विष्ट ने 1973 ई. में किया था।

यहाँ भी कालीबंगा की तरह दो सांस्कृतिक अवस्थाओं प्राक हड़प्पा (हड़प्पा-पूर्व) तथा हड़प्पा कालीन के साक्ष्य मिले हैं।

बनवाली में जल निकास प्रणाली का अभाव है।

यहाँ से प्राप्त अन्य प्रमुख अवशेष हैं:- 

  • हल की आकृति (खिलौने के रूप में)
  • तिल, सरसों का ढेर, अच्छे किस्म के जौ
  • मनके
  • मातृदेवी की लघुमृणमूर्तियाँ
  • ताँबे के बाणग्र 
  • मनुष्यों एवं पशुओं की मूर्तियाँ
  • चर्ट के फलक
  • मिट्टी के उत्कृष्ट बर्तन
  • सेलखड़ी एवं पकाई मिट्टी की मुहरें आदि।

सुरकोटदा | Surkotada

गुजरात के कच्छ जिले में स्थित इस स्थल की सर्वप्रथम खोज जगपति जोशी ने 1964 ई. में की।

सुरकोटदा एक प्राचीर युक्त सिन्धु कालीन महत्त्वपूर्ण बस्ती है अर्थात दुर्ग एवं नगर दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे थे। उत्खनन से प्राप्त दुर्ग कच्ची ईंटों एवं मिट्टी का बना है। 

यहाँ घोड़े की अस्थियाँ मिली हैं, जो किसी भी अन्य हड़प्पा कालीन स्थल से प्राप्त नहीं हुई है।

अन्य सैन्धव नगरों के विपरीत सुरकोटदा के  नगर दो भागों – गढ़ी एवं आवास क्षेत्र में वर्गीकृत था। 

यहाँ से एक विशेष प्रकार का कब्रगाह का साक्ष्य मिला है। यहाँ से प्राप्त कब्र एक बड़े शिला से ढका हुआ मिला है। 

रंगपुर | Rangpur 

अहमदाबाद जिले में सुकभादर नदी के समीप स्थित रंगपुर की खोज 1935 ई. में एम.एस. वत्स ने तथा 1947 ई. में पुन: उत्खनन एस.आर. राव ने की थी।

यहाँ से सैन्धव संस्कृति के परवर्ती अवस्था के साक्ष्य मिले हैं।

उल्लेखनीय है कि यहाँ से प्राप्त अवशेषों में न कोई मुद्रा और न ही मातृदेवी की मूर्ति प्राप्त हुई है।

यहाँ से प्राप्त प्रमुख अवशेष हैं:-

  • धान की भूसी के ढेर
  • कच्ची ईंटों के दुर्ग
  • नालियाँ
  • मृद्भाण्ड
  • पत्थर से फलक आदि।

कोट दीजी | Kot Diji 

सिन्ध प्रान्त (पाकिस्तान) के खैरपुर स्थित इस स्थल की खोज धुर्वे ने 1935 ई. में की।

यहाँ प्राक् हड़प्पा संस्कृति की अवस्था दृष्टिगोचर होती है, यहाँ पत्थरों का इस्तेमाल होता था।

सम्भवतः पाषाण युगीन सभ्यता का अन्त तथा हड़प्पा सभ्यता का विकास यहाँ हुआ।

यहाँ से प्राप्त मुख्य अवशेष हैं-

  • कांसे की चपटे फलक वाली कुल्हाड़ी 
  • वाणग्र
  • कांस्य की चूड़ियाँ
  • धातु के उपकरण तथा हथियार।

धौलीवीरा | Dholavira

धौलावीरा की खोज सर्वप्रथम 1967-68 ई. में जी.पी. जोशी ने की तथा 1990-91 ई. में आर.एस. विष्ट ने उत्खनन कार्य करवाया।

भारत में खोजे गए हड़प्पाई नगरों में धौलावीरा एवं राखीगढ़ी दो विशाल नगर है इनमें से धौलावीरा बड़ा है। 

27 जुलाई, 2021 को धौलावीरा को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है। 

धौलावीरा भारतीय उपमहाद्वीप का चौथा विशालतम हड़प्पाकालीन नगर है। तीन अन्य नगर हैं- मोहनजोदड़ो, हड़प्पा एवं बहावलपुर में गनेडीवाल (तीनों नगर पाकिस्तान में है)

धौलावीरा की अनेक अद्वितीय विशेषताएं हैं, जो अन्य हड़प्पाकालीन स्थlलों से भिन्न है।

किसी भी सिन्धु सभ्यता कालीन नगर में कहीं भी अन्यत्र ‘परकोटेदार’ अथवा ‘परकोटे रहित’ भागों को जोड़ते हुए एक समान परिधीय क्षेत्र’ की व्यवस्था नहीं मिलती।

धौलावीरा के मध्य या केन्द्र में स्थित प्राचीर युक्त क्षेत्र, जिसे मध्यमा नाम दिया गया है, का शासक वर्ग के सम्बन्धियों या प्रशासकीय अधिकारियों के आवास के लिए प्रयुक्त किया जाता होगा। ‘मध्य नगर’ या मध्यमा केवल धौलावीरा में ही पाया गया है। यहाँ से बड़े पैमाने पर श्वेत पत्थरों के प्रयोग का साक्ष्य मिलता है।

यहीं से सबसे बड़ा साइन बोर्ड भी पाया गया है, जिस पर सर्वाधिक 17 सैन्धव लिपि अक्षर प्राप्त हुए हैं।

वैज्ञानिकों के एक समूह ने गुजरात के कच्छ जिले के धौलावीरा में दो गोलाकार संरचनाओं की पहचान की है, जो संभवतः हड़प्पा सभ्यता की पहली खगोलीय पर्यवेक्षणशाला थी।

अन्य नगर

मुंडीगाक-  नामक हड़प्पाकालीन पुरास्थल अफगानिस्तान में स्थित है।

माँडा– पीर पंजाल पर्वतमाला की तराई में चिनाब नदी के दायें तट पर स्थित है। यहाँ से विशेष प्रकार के मृद्भाण्ड, टेराकोटा के आदि प्राप्त हुए हैं।

रोपड़- पंजाब के सतलज नदी के तट पर स्थित इस स्थल की खोज 1950 में बी.बी. लाल ने की थी जबकि 1953-55 में यज्ञदत्त शर्मा ने खुदाई करवाई थी। यहाँ पर की गयी खुदाइयों से संस्कृति के पाँच स्तरीय क्रम प्राप्त हुए

मानवीय शवाधान या क्रब के नीचे एक कुत्ते का शवाधान बड़ा रोचक है जो अन्यत्र प्राप्त नहीं हुआ है। परन्तु इस प्रकार की प्रथा नव पाषाण युग में बुर्जाहोम (कश्मीर) में प्रचलित थी।

आलमगीरपुर- उ.प्र. के मेरठ जिले हिण्डन नदी के बायें तट पर स्थित है। यह हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक पूर्वी पुरास्थल है। इस पुरास्थल की खोज में ‘भारत सेवक समाज’ संस्था का विशेष योगदान रहा।

नोट: सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को यूनेस्को की सूची में शामिल किया गया है। 

सिंधु सभ्यता के पुरास्थल 

क्र. सं 

क्षेत्र 

स्थित स्थल 

1

अफगानिस्तान 

मुंडीगाक,शोर्तुगुई 

2

बलूचिस्तान 

मेहरगढ़, सुत्काकोह, सुत्कागेनडोर, रानाधुंडई, कुल्ली,बालाकोट, क्वेटाघाटी, दबसादात एवं दबारकोट आदि।

3

सिंध 

मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ो, कोटदीजी, आमरी, अलीमुराद, जुरीरोदड़ो आदि।

4

पंजाब (पाकिस्तान)

हड़प्पा, डेरा इस्माइलखाना, रहमानढेरी, जलीलपुर आदि।

5

पंजाब (भारत)

रोपड़, बाड़ा, संघोल आदि।

6

हरियाणा 

राखीगढ़ी, बनवाली, मिताथल, दौलतपुर, रिसवल आदि।

7

जम्मू-कश्मीर 

मांडा 

8

उत्तर प्रदेश 

आलमगीरपुर, बड़ागाँव,  हुलास 

9

गुजरात 

(1) काठियावाड़-  लोथल, रंगपुर, रोजड़ी, प्रभासपाटन, भगतराव

(2) कच्छ का रन- धौलावीरा, देशलपुर, सुरकोटदा

10

राजस्थान 

कालीबंगा, बनवाली, राखीगढ़ी, रंगपुर एवं रोजड़ी

TSI Blog के अन्य महत्वपूर्ण परीक्षोंपयोगी पोस्ट:

भारतीय प्राचीन इतिहास

आधुनिक भारत का इतिहास

बिहार का इतिहास

सिंधु घाटी सभ्यता पार्ट -I

FAQ

Q. हड़प्पा किस नदी के किनारे अवस्थित था ?

Ans. हड़प्पा रावी नदी के किनारे स्थित था।

Q. हड़प्पा किस जिला में स्थित है ?

Ans. हड़प्पा पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के साहिवाल जिले में स्थित है।

Q. हड़प्पा की खोज कब और किसने की?

Ans. हड़प्पा की खोज 1921 में दायराम साहनी द्वारा किया गया।

Q. हड़प्पा सभ्यता की स्थापना कब हुई थी?

Ans. हड़प्पा सभ्यता की स्थापना 2600-1900 ई०पू० के मध्य माना जाता है।

Q. सिंधु घाटी सभ्यता का कौन सा स्थान मृतकों का टीला के रूप में जाना जाता है?

Ans. मोहनजोदड़ों का शाब्दिक अर्थ होता है ‘मृतकों के टीला’ इसलिए मोहनजोदड़ों को मृतकों के टीला के रूप में जाना जाता है।

Q. हड़प्पा सभ्यता का प्रथम खोजा गया स्थान कौन सा है?

Ans. हड़प्पा सभ्यता का प्रथम खोजा गया स्थान हड़प्पा है, इसे 1921 में दयाराम साहनी ने खोजा था।

Q. मोहनजोदड़ो की खुदाई में क्या क्या मिला

Ans. मोहनजोदड़ो की खुदाई में नगर, कपास, कांसे की नर्तकी, अन्नागार, स्नानागार आदि प्राप्त ह हैं।

Q. मोहनजोदड़ो की खुदाई कब हुई थी?

Ans. मोहनजोदड़ो की खुदाई 1922 में राखलदास बनर्जी द्वारा किया गया था।

Q. सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा नगर कौन सा है?

Ans. सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा नगर राखीगढ़ी है।

 

Get TSI GS Posts !

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Leave a Reply