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छठी शताब्दी ई ०पू० बौद्धिक आंदोलन
छठीं शताब्दी ई.पू. का बौद्धिक क्रांति: कारण
छठी शताब्दी ई ०पू० बौद्धिक आंदोलन की उत्पति के कारणों को उस समय के सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक क्षेत्र में हो रहे परिवर्तनों के साथ समझा जा सकता है।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व उत्तर भारत के गांगेय प्रदेश (पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार) के जनजीवन में सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से परिवर्तन हो रहा था।
इस समय नगरीयकरण, विभिन्न शिल्पों के उदय , व्यवसाय और वाणिज्य में तीव्र विकास, परंपरागत ब्राहमण धर्म की रूढ़िवादिता आदि तत्कालीन धर्म एवं दार्शनिक चिन्तन में होने वाले परिवर्तनों से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध थे।
परम्परागत रूढ़िवादि समाज एवं नगरों में उभरते नये वर्गों की आकांक्षाओं में होने वाले संघर्ष ने इस प्रक्रिया को गतिशील बनाया जिससे चिन्तन के क्षेत्र में ऐसी एक नवीन शक्ति एवं अद्भुत सम्पन्नता का आविर्भाव हुआ जिसने भारत ही नहीं विश्व के बड़े जनसमुदाय को प्रभावित किया। इस बौद्धिक गतिविधि का केन्द्र मगध था।
मगध में इस काल में एक विशाल साम्राज्य की नींव भी पड़ रही थी। नए उदित राज्यों ने विभिन्न कारणों से नवीन उदित पंथों/संप्रदायों का समर्थन किया।
महावीर एवं बुद्ध द्वारा प्रवर्तित जैन एवं बौद्ध धर्म का उदय इस युग की महत्त्वपूर्ण घटना है। बुद्ध और महावीर के अलावा इस युग में कई चिंतक हुए जिन्होंने इस धार्मिक आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, इस काल में 62 धार्मिक संप्रदाय अस्तित्व में थे, तो जैन ग्रंथ सूत्र कृतांग के अनुसार, कुल धार्मिक संप्रदायों की संख्या 363 थी।
- महात्मा बुद्ध – बौद्ध धर्म
- महावीर – जैन धर्म
- अजित केशकंबीलन – भौतिकवादी
- पुरण कश्यप – सांख्य दर्शन
- मक्खलि गोशाल – आजीवक
- पकुध कात्यायन – नियतिवादी
- संजय वेलट्टपुत्त – अनिश्चयवादी
- चार्वाक – भौतिकवादी
महात्मा बुद्ध
# जन्म – 563 ई.पू. ; कपिलवस्तु के लुंबिनी में; शाक्यकुल
# मृत्यु – 483 ई. पू.; कुशीनगर में;
# पिता – शुद्धोधन कपिलवस्तु के शासक;
# माता– महामाया कौशल राज्य की राजकुमारी एवं प्रजापति गौतमी( जन्म के 7 दिन बाद माता के देहांत के बाद देखरेख किया);
# पत्नी – यशोधरा (बिम्बा, गोपा, भद्कच्छना),
# पुत्र– राहुल;
# बचपन का नाम – सिद्धार्थ
# घोड़े का नाम- कंथका
# सारथी का नाम- चेन्ना
# 29 वर्ष में गृहत्याग (इसे महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है); सबसे पहले सांख्य उपदेशक अलार कलाम के शिष्य बने।
# इसके बाद राजगीर के रुद्रकरामपुत्र से शिक्षा प्राप्त की यहाँ उन्हें बिंबिसार ने राजसी जीवन छोड़ने से मना किया।
# वैशाख पूर्णिमा की रात पीपल वृक्ष के नीचे निरंजना (आधुनिक फलगू) तट पर ज्ञान प्राप्त इसके बाद वे तथागत एवं बुद्ध कहलाये। इस घटना को संबोधी कहा गया।
# बोध गया से वे रिसीपत्तन या इसीपत्तन (वर्तमान सारनाथ के हिरण्य वन) में अपना पहला धार्मिक प्रवचन 5 ब्राह्मणों के बीच दिया, यह पहला प्रवचन धर्मचक्रपरिवर्तन कहलाया।
# पावा (कुशीनगर के पास) मे 80 वर्ष की आयु में 483 ई० पू० में मृत्यु हो गई।
# बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध थे जिन्हे कई नामों से जाना जाता है-
बुद्ध– जो प्रकाशमय हो
तथागत– वह जसे सत्य की प्राप्ति हुई हो
शक्यमुनि – शाक्य गुरु
बौद्ध धर्म
# बौद्ध धर्म के त्रिरत्न – बुद्ध, धम्म और संध
# महात्मा बुद्ध ने सर्वप्रथम निम्नलिखित चार आर्य सत्य (दु:ख, दु:ख समुदाय, दु:ख निरोध, दु:ख निरोध गामिनी प्रतिपदा) बताएं- विश्व दुखों से परिपूर्ण है, अभिलाषा दुख का कारण है, अभिलाषाओं को विजित कर सभी दुखों से छुटकारा हो सकता है और अष्टांगिक मार्ग द्वारा ही मुक्ति संभव है।
# महात्मा बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्ग निम्नलिखित है सम्यक दृष्टि सम्यक संकल्प सम्यक वचन सम्यक जीविका सम्यक व्यायाम सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि।
# महात्मा बुद्ध ने वेदों के शाश्वत सत्य को नकार दिया, उन्होंने अनुष्ठानों का विरोध किया तथा जाति व्यवस्था एवं पुरोहित की सर्वोच्चता को चुनौती दी। पशु बलि का विरोध किया, विश्व को नस्वर माना एवं ईश्वर की सत्ता को स्वीकार किया।
# उन्होंने कर्म के सिद्धांत में आत्मा की कार्य पद्धति एवं उसके पुनर्जन्म पर बल दिया। बुद्ध के अनुसार इच्छा की लालसा अर्थात तृष्णा और उसके सभी विधमान स्वरूपों को नष्ट करना ही निर्वाण हैं।
# बौद्ध धर्म का मूल ग्रंथ त्रिपिटक हैं जिसमें निम्न शामिल हैं – सुतपिटक, विनयपिटक एवं अभिधम्मपिटक।
# प्रतीत्यसमुत्पाद बुद्ध के उपदेशों का सार है।
बौद्ध संगीति
महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद से बुद्ध की शिक्षाओं को संग्रहित किए जाने के लिए विभिन्न काल मे विभिन्न शासकों के संरक्षण में तत्कालीन विद्वान के संरक्षण में बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया। विभिन्न काल खंड में कुल 4 बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया जिसमें से 3 बौद्ध संगीति का आयोजन बिहार के क्षेत्र में किया गया। इन बौद्ध संगीति के माध्यम से बौद्ध धर्म एवं महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन किया गया।
क्रम | स्थान | समय | अध्यक्ष | शासक | महत्वपूर्ण तथ्य |
प्रथम | राजगृह (सप्तपर्णी गुफा) | 483 ई.पू. | महाकस्सप | अजातशत्रु (हर्यंक वंश) | विनय पिटक एवं सुत पिटक का संकलन |
द्वितीय | वैशाली | 383 ई.पू. | सर्वकामी | कालाशोक (शिशुनाग वंश) | बौद्ध धर्म स्थाविर एवं महासंघिक में विभाजित |
तृतीय | पाटलिपुत्र | 257 ई.पू. | मोग्गलिपुत्रतिस्य | अशोक (मौर्य वंश) | तीसरा पिटक अभिधम्मपिटक जोड़ा गया |
चतुर्थ | कुंडलवन (कश्मीर) | प्रथम शताब्दी ई. | वसुमित्र (अध्यक्ष) अश्वघोष (उपाध्यक्ष) | कनिष्क (कुषाण वंश) | बौद्ध धर्म हीनयान एवं महायान में विभाजित |
महावीर
# जन्म – 599 ई.पू. ; वैशाली के निकट कुण्डग्राम; ज्ञातृक कुल
# मृत्यु – 527 ई. पू.; पावापुरी में;
# पिता – सिद्धार्थ;
# माता – त्रिशला (लिच्छवी, राजकुमारी);
# पत्नी– यशोदा;
# पुत्री – प्रियदर्शना; जमाता – जामालि
# 30 वर्ष में गृहत्याग; 42 वर्ष की आयु में वैâवल्य (सर्वाच्च ज्ञान) (12 वर्ष तपस्या)
# जुम्भिकग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के किनारे साल वृक्ष के नीचे
# कैवल्य प्राप्त होने के बाद केवलिन, जिन (विजेता), अर्हंत (योग्य), निर्ग्रंनथ (बंन्ध रहित) कहलाए।
# जैन धर्म के 24तीर्थंकर
जैन धर्म
# जैन धर्म के त्रिरत्न – सम्यक श्रद्धा, सम्यक ज्ञान तथा सम्यक आचरण।
# पंच महाव्रत – सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य।
# महावीर ने पांचवा व्रत ब्रह्मचर्य दिया जबकि शेष चार व्रत पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित थे।
# स्यादवाद (अनेकातवाद ) या सप्तभंगीनय को ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत कहा जाता है।
जैन संगीति
क्रम | समय | स्थान | अध्यक्षता | शासक/ संरक्षक | महत्वपूर्ण तथ्य |
प्रथम | 300 ई.पू. | पाटलिपुत्र | स्थूलभद्र | चंद्रगुप्तमौर्य | जैन धर्म दिगंबर एवं श्वेताम्बर में विभाजित 12 अंगों का संपादन |
द्वितीय | 513 ई.पू | वल्लभी (गुजरात) | देवर्धिक्षमाश्रमण | – | धर्मग्रंथों का अंतिम संकलन कर लिपिबद्ध किया गया |
महात्मा बुद्ध एवं महावीर एक अवलोकन
अजित केशकंबीलन – भौतिकवादी/यदृच्छावादी
भारत का सबसे पहला भौतिकवादी चिंतक अजित केशकंबीलन को माना जाता है। उनका मानना था कि अच्छे या बुरे कर्मों का कोई फल नहीं होता। दान या दया का मनुष्य की नियति से कोई संबंध नहीं होता। उसका मानना था कि प्रत्येक घटना अपने स्वभाव के अनुरूप होती है। अत: जो इच्छा है वही करो। इसे यदृच्छावादी कहा गया है। आगे चलकर चार्वाक ने इससे लोकायत दर्शन का विकास किया।
पुरण कश्यप – अक्रियावादी
उसे अक्रियावादी कहा जाता है, उसका मानना था कि- न तो कर्म होता है और न पुनर्जन्म। संभवत: पुरण कश्यप ने ही सांख्य दर्शन की नींव डाली। आगे चलकर पुरण कश्यप के संप्रदाय का मक्खलि गोशाल के संप्रदाय में विलय हो गया।
मक्खलि गोशाल – आजीवक/नियतिवादी
वह छः वर्षों तक महावीर के साथ रहा। फिर उसने आजीवक संप्रदाय की स्थापना की (कहीं कहीं इसका संस्थापक नंदवच्छ मिलता है।) मक्खलि गोशाल का मानना था कि आत्मा को अनेकानेक पुनर्जन्मों के पूर्व निर्धारित अटल चक्र से गुजरना ही पड़ता था और फिर प्रत्येक जन्म में वह जिस शरीर से संबंधित होता है वह होगा ही, चाहे उसने कर्म कैसा भी क्यों न किया हो। उसे नियतिवादी कहा जाता है। बिंदुसार ने इस धर्म को संरक्षण दिया और अशोक एवं दशरथ ने इसे गुफाएं प्रदान कीं।
पकुध कात्यायन – नियतिवादी
वह नियतिवादी था जो कर्म और पुनर्जन्म में आस्था नहीं रखता था। उसके विचार में सात वस्तुएं पृथ्वी, जल, तेज, वायु, सुख, दुख और जीव न तो पैदा किए जा सकते हैं और न ही नष्ट। अत: न तो संसार में कोई किसी को मारता है और न ही कोई मारा ही जाता है। अत: यदि कोई किसी को हथियार से काटे भी तो वह नहीं कटता है। इससे परवर्ती वैशेषिक दर्शन का उद्गम माना जा सकता है। इस धर्म के अनुयायी मक्खलिपुत्र गोसाल के संप्रदाय से जुड़ गए।
संजय वेलट्टपुत्त – अनिश्चयवादी
इसे अनिश्चयवादी भी माना जाता है। इसका मानना है न तो यह कहा जा सकता है कि स्वर्ग या नरक हैं, या फिर नहीं हैं।
चार्वाक – भौतिकवादी
चार्वाक, भौतिकवादी दार्शनिक हैं तथा उसे बृहस्पति का शिष्य माना जाता है और उसने बृहस्पति सूत्र (ग्रंथ) भी लिखा है। ऐन्द्रिक आनन्द ही जीवन का एक मात्र उद्देश्य है। मृत्यु के बाद न तो स्वर्ग है और न नरक। इसलिए कर्म और पुनर्जन्म अपना अर्थ नहीं रखता है।
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