अंतरराज्यीय परिषद : Inter State Council – Important Provision, Art 263

अंतरराज्यीय परिषद

अंतरराज्यीय परिषद : Inter State Council

अंतरराज्यीय परिषद की पृष्ठभूमि

भारत के संघीय शासन व्यवस्था में केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन संविधान के सातवीं अनुसूची में तीन सूचियों – केन्द्रीय सूची (सूची ।), राज्य सूची (सूची ।।) और समवर्ती सूची (सूची ।।।) के रूप मे किया गया है तथा शेष अवशिष्ट शक्तियां संसद के अधीन राखी गई हैं। इसके अनुरूप संविधान ने विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियों के क्षेत्रों में केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विस्तृत वितरण किया है।

 

अंतरराज्यीय परिषद का गठन एवं कार्य   

शक्तियों के प्रयोगों को लेकर अक्सर केंद्र एवं राज्य के बीच विवाद के बिन्दु उभरते रहते हैं। केंद्र और राज्य के मध्य विवाद को सुलझाने के लिए समय समय पर प्रयास किए जाते रहें हैं।

इसी क्रम में केन्द्र सरकार ने केन्द्र और राज्यों के बीच वर्तमान व्यवस्थाओं के कार्य प्रणाली की समीक्षा करने के लिए न्यायमूर्ति आर.एस. सरकारिया की अध्यक्षता में वर्ष 1988 में एक आयोग का गठन किया।

सरकारिया आयोग ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 263 के अनुसार परामर्श करने के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्रीय फोरम के रूप में अंतर-राज्य परिषद स्थापित किए जाने की महत्वपूर्ण सिफारिश की।

इस सिफारिश के अनुसरण में भारत के संविधान के अनुच्देद 263 के तहत राष्ट्रपति के दिनांक 28.5.1990 के आदेश के तहत अंतर-राज्य परिषद का गठन किया गया था। परिषद का वर्तमान संगठन निम्नानुसार है:

  • प्रधान मंत्री अध्यक्ष
  • सभी राज्यों के मुख्य मंत्री सदस्य
  • विधान सभा वाले संघ राज्य क्षेत्रों के मुख्य मंत्री और बिना विधान सभा वाले संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासक तथा राष्ट्रपति शासन वाले राज्यों के राज्यपाल सदस्य
  • केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में कैबिनेट रैंक के छ: मंत्रियों को प्रधानमंत्री द्वारा सदस्य के रूप नामित किया जाना है।
  • कैबिनेट रैंक के चार मंत्री, सदस्यों के रूप में स्थाई आमंत्रित ।

अंतरराज्यीय परिषद केंद्र और राज्यों के बीच या राज्यों के आपसी सामान्य हित के विषयों की जांच पड़ताल करने और बेहतर समन्वय स्थापित करने के लिए शिफ़ारिशें करना इसका प्रमुख कार्य है।  

परिषद, सामान्य हित वाले अन्य मामलों पर भी राज्यों के साथ चर्चा करती है जिन्हें अध्यक्ष द्वारा परिषद को भेजा जाए।

अंतरराज्यीय परिषद का अध्यक्ष

प्रधानमंत्री इस परिषद के अध्यक्ष होते हैं तथा वह परिषद की बाठकों की अध्यक्षता करेंगे। बशर्ते कि अगर किसी बैठक की अध्यक्षता करने में प्रधानमंत्री असमर्थ हों तो वह बैठकों की अध्यक्षता करने के लिए कैबिनेट स्तर के किसी अन्य केन्द्रीय मंत्री को नामजद कर सकते हैं।  

परिषद के विचारार्थ मामलों पर लगातार परामर्श करने और कार्रवाई करने के लिए अंतर-राज्यीय परिषद की स्थाई समिति का गठन पहली बार 1996 में किया गया था। स्थाई समिति में अध्यक्ष के रूप में केन्द्रीय गृह मंत्री और सदस्यों के रूप में कैबिनेट रैंक के 5 केन्द्रीय मंत्री और अंतर-राज्य परिषद के अध्यक्ष द्वारा नामित 9 राज्यों के मुख्य मंत्री हैं। 

भारत के संघीय ढांचे में जहां विभिन्न राजनीतिक दल/गठबंधन की सरकार विभिन्न राज्यों एवं केंद्र में स्थापित है जिसके कारण राजनैतिक विभेद होना स्वभाविक है। इस संदर्भ में सहकारी संघवाद के लिए अंतरराज्यीय परिषद एक समन्वयकारी मंच हो सकता है जिसकी सहायता से विभिन्न मुद्दों का समाधान किया जा सकता है।

 

अंतरराज्यीय परिषद की सीमाएं

  • अंतरराज्यीय परिषद एक सलाहकारी परिषद है जिसकी शिफ़ारिशें सरकार पर बाध्यकारी नहीं होती हैं।
  • अंतरराज्यीय परिषद की नियमित बैठकें नहीं होती हैं। हाल ही में अंतरराज्यीय परिषद की बैठक 12 वर्षों के बाद हुई है।
  • अंतरराज्यीय परिषद का सचिवालय केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करता है, जिसके कारण अंतरराज्यीय परिषद को राजनीतिक रूप से प्रभावित की जा सकती है।
  • सामान्य तौर पर अंतरराज्यीय परिषद में प्रशासनिक मुद्दों पर अधिक विचार विमर्श किया जाता है, जबकि राजनीतिक एवं विधायी विषयों पर कम चर्चा होती है, जबकि यह एक बेहतर मंच हो सकता है जहां, विशेषकर वैसे विषय जिसे राज्य सूची से समवर्ती सूची में शामिल किया गया है उसपर विधि बनाने से पहले बेहतर विचार विमर्श किया जा सकता है।

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