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वैष्णव शैव शाक्त धर्म
वैष्णव शैव एवं शाक्त धर्म (vaishnava shaiva shakta in Hindi) प्राचीन ब्राह्मण धर्म से सम्बद्ध रहें हैं जिनका सम्बन्ध किसी खास देवी देवता के साथ है। वैष्णव का सम्बन्ध विष्णु से, शैव का सम्बन्ध शिव से जबकि शाक्त का सम्बन्ध शक्ति की देवी दुर्गा (प्राचीन ग्रन्थों में उमा, पार्वती आदि का नाम मिलता है) से है। प्राचीन भारत में प्रचलित प्रमुख गैर ब्राह्मण धर्म जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म था।
शैव धर्म
शैव धर्म का संबंध शिव से है। भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव एवं शिव से संबंधित धर्म को शैव धर्म कहा गया है।
शिव की उपासना एवं लिंगपूजा का साक्ष्य सर्वप्रथम सिंधु सभ्यता में मिलता है।
ऋग्वेद में शिव के लिए ‘रुद्र‘ नामक देवता का वर्णन मिलता है।
अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति एवं भूपति आदि कहा गया है।
लिंगपूजा का प्रथम स्पष्ट वर्णन मत्स्य पुराण में मिलता है।
ब्राह्मण ग्रंथों में रुद्र का उल्लेख ‘सहस्राक्ष’ एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता के रूप में मिलता है।
श्वेताश्वर एवं अथर्वागिरस उपनिषद में भगवान रुद्र की महानता को वर्णित किया गया है।
लिंगपूजा का वर्णन महाभारत के शांतिसर्च में भी मिलता है।
‘वामन पुराण‘ में शैव संप्रदाय की संख्या चार बतलायी गई है।
- पाशुपत
- कापालिक
- कालामुख
- लिंगायत
पाशुपत संप्रदाय शैव मत का सर्वाधिक प्राचीन संप्रदाय है इसके संस्थापक लकुलीश थे, जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है।
लकुलीश के अनुयायी ‘पंचर्थिक‘ कहलाते हैं। इस मत का प्रमुख सैद्धांतिक ग्रंथ ‘पाशुपत सूत्र’ है।
कापालिक संप्रदाय के इष्टदेव ‘भैरव’ थे जो शिव के अवतार माने जाते थे। इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र ‘श्री शैल’ नामक स्थान था।
इसका प्रमाण भवभूति के ‘मालतीमाधव‘ में मिलता है।
कालामुख संप्रदाय के अनुयायियों को शिवपुराण में ‘महाव्रतधर‘ कहा गया है। इस मत के अनुयायी नरकपाल में भोजन, जल तथा सुरापान करते थे तथा शरीर पर भस्म लगाते थे।
लिंगायत (वीरशैव) संप्रदाय की स्थापना अल्लभप्रभु तथा उनके शिष्य बसव ने की थी। ये जंगम भी कहे जाते हैं।
लिंगायत संप्रदाय चार भागों में विभाजित हो गया
- जंगम
- शीलवंत
- वणिक
- पंचमशाली
कश्मीरी शैव संप्रदाय के संस्थापक वसुगुप्त थे। यह संप्रदाय शुद्ध रूप से दार्शनिक एवं ज्ञानमार्गी था।
दक्षिण भारत में शैव मत का प्रचार नायनार या अडयार संतों द्वारा किया गया। इस समय दक्षिण में पल्लवों का शासन था।
दक्षिण भारत में शैव धर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव एवं चोलों के समय अत्यधिक लोकप्रिय हुआ।
शिव की प्राचीनतम मूर्ति गुडीमल्लम लिंग रेनुगुंटा से प्राप्त हुई है।
पतंजलि के महाभाष्य से शिव की मूर्ति बनाकर पूजा करने का उल्लेख मिलता है।
शिव एवं पार्वती की संयुक्त मूर्तियों के निर्माण के प्रमाण सर्वप्रथम गुप्तकाल में मिलते हैं।
गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल में करमदंडा एवं खोह में शिवलिंग की स्थापना की गई।
गुप्तकाल में ही भूमरा एवं नचना कुठार में शिव एवं पार्वती के मंदिरों का निर्माण हुआ।
खजुराहो में कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण चंदेलों ने करवाया।
राष्ट्रकूटों ने ऐलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण करवाया।
चोलशासक राजराज प्रथम ने तंजौर में प्रसिद्ध राजराजेश्वर अथवा वृहदेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया।
उसके पुत्र राजेंद्र प्रथम ने अपनी नई राजधानी गंगैकोंडचोलपुरम में गंगैकोंडचाल मंदिर का निर्माण करवाया।
गुप्तकाल में शिव के अर्द्धनारीश्वर, त्रिमूर्ती एवं हरिहर स्वरूप का आरंभ हुआ।
शक शासक मोग के सिक्कों पर त्रिशूलधारी शिव का अंकन मिलता है।
कुषाण शासक विम कडफिसस के सिक्कों पर नन्दी एवं शिव का अंकन मिलता है।
कुषाण शासक हुविष्क के सिक्कों पर शिवलिंग का अंकन मिलता है।
दसवीं शताब्दी में मत्स्येन्द्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की।
इस संप्रदाय का सर्वाधिक प्रचार बाबा गोरखनाथ के समय हुआ। महाभारत के अनुशासन पर्व में शिव के शिव के 10008 नामों का उल्लेख मिलता है।
वायुपुराण में शिव को देवों का देव महादेव कहा गया है।
शक, पल्लव एवं कुषाण शासकों के सिक्कों पर शिव की मूर्तियां या प्रतीक चिह्न अंकित हैं।
वाजसनेयी संहिता, तैतरीय एवं शतपथ ब्राह्मण में अंबिका को रूद्र की बहन बताया गया है।
वैष्णव (भागवत) धर्म
वैष्णव धर्म की प्रारंभिक जानकारी उपनिषदों में मिलती है। यह भागवत धर्म से ही विकसित हुआ है।
वैष्णव धर्म के प्रवर्तक कृष्ण थे जो वृष्णि कबीले के थे, इनका निवास स्थान मथुरा था।
कृष्ण का उल्लेख सर्वप्रथम छांदोग्य उपनिषद में देवकी पुत्र एवं अंगिरस के शिष्य के रूप में मिलता है।
ऐतरेय ब्राह्मण में विष्णु का उल्लेख सर्वोच्च देवता के रूप में किया गया है।
ब्राह्मण ग्रंथों में सर्वप्रथम ‘नारायण‘ का उल्लेख मिलता है।
मत्स्य पुराण में विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख मिलता है।
दस अवतार निम्न हैं – मत्स्य, कूर्म, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम, बुद्ध एवं कल्कि।
वैष्णव धर्म में ईश्वर की प्राप्ति के लिए सर्वाधिक महत्व भक्ति को दिया जाता है।
भगवद् गीता में सर्वप्रथम अवतारवाद का उल्लेख मिलता है।
ऋग्वेद में विष्णु को सूर्य का पर्यायवाची माना गया है।
गुप्तकाल में निर्मित देवगढ़ (झांसी) में स्थित पंचायतन श्रेणी का दशावतार मंदिर वैष्णव धर्म से संबंधित है।
राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग ने एलोरा में कैलाश मंदिर का निर्माण कराया।
दक्षिण भारत में वैष्णव धर्म का प्रचार वेंगी के पूर्वी चालुक्य एवं राष्ट्रकूटों के समय में हुआ।
रामानुज, वल्लभाचार्य एवं चैतन्य ने वैष्णव धर्म में भक्ति को अधिक महत्व प्रदान किया।
पहली शताब्दी ई.पू. के नानाघाट अभिलेख में संकर्षण और वासुदेव का उल्लेख मिलता है।
शतपथ ब्राह्मण में मत्स्य अवतार एवं तैतरीय आरण्यक में नृसिंह अवतार की अवधारणा मिलती है।
नारायण और विष्णु को बौधायन धर्मसूत्र में एक ही माना गया है।
तैतरीय आरण्यक में नारायण, विष्णु एवं वासुदेव तीनों का तादात्म्य स्थापित किया गया है।
हर्षकालीन बाणभट्ट के हर्षचरित में पांचरात्रिक एवं भागवत संप्रदायों का वर्णन मिलता है।
प्रतिहार शासक भोज के अभिलेख में विष्णु को ऋषिकेश के रूप में वर्णित किया गया है।
बटेश्वर अभिलेख (चंदेल शासक परमार्दिदेव) एवं खजुराहो अभिलेख में भी विष्णु मंदिर के प्रमाण मिलते हैं।
शाक्त संप्रदाय
शक्तियों के रूप में देवियों की उपासना करने वाला शक्ति संप्रदाय एवं उसको मानने वाले लोग शाक्त कहलाते हैं।
उमा, पार्वती, अम्बिका, हैमवती, रूद्राणी और भवानी आदि का वर्णन वैदिक साहित्य में ही मिलने लगता है
ऋग्वेद के दसवें मंडल का पूरा एक सूक्त (देवी सूक्त) शक्ति की उपासना से संबंधित है।
केन उपनिषद में उमा का वर्णन हेमवती (हिमालय की पुत्री) के रूप में मिलता है।
देवी के तीन रूपों महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती का वर्णन मार्कण्डेय पुराण में है।
प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल को उसके अभिलेखों में दुर्गा का उपासक अथवा भक्त बताया गया है।
सूर्य संप्रदाय
सूर्य की पूजा-अर्चना वैदिक काल से ही प्रचलित है।
भविष्य पुराण में वर्णित है कि जांबवती के पुत्र सांब ने चंद्रभागा नदी (सिन्ध प्रांत) के तट पर सूर्य का पहला मंदिर निर्मित करवाया था।
हवेनसांग ने भी चंद्रभागा नदी के तट पर मुल्तान के सूर्य मंदिर जिसमें सोने की मूर्ति थी, का उल्लेख किया है।
गुप्त शासक कुमारगुप्त के शासनकाल में रेशम बुनकर संघ ने मंदसौर के निकट दशपुर में एक सूर्य मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर 13वीं सदी के हैं।
मार्कण्डेय पुराण में सूर्य की पत्नियों एवं उनकी संतानों का वर्णन मिलता है।
गणपति संप्रदाय
गणपति का प्रारंभिक उल्लेख वेदों में मिलता है।
ऋग्वेद में गणपति को महाहस्ति कहा गया है।
तैतरीय आरण्यक में गणपति को एकदंत, वक्रतुंड और दंती कहा गया है।
पाणिनी ने शिवस्कंद और विशाख की मूर्तियों का वर्णन किया है।
कार्तिकेय संप्रदाय
वायुपुराण और विष्णुपुराण में कार्तिकेय को सूरसेनापति एवं सेनापति कहा गया है।
कदंब और यौधेय शासक कार्तिकेय की उपासना करते थे।
कार्तिकेय की दो पत्नियां देवसेना एवं वल्ली का उल्लेख मिलता है।
प्रमुख संप्रदाय के विभिन्न मत एवं उसके प्रवर्तक आचार्य :
क्रमांक | संप्रदाय | मत | आचार्य |
1 | वैष्णव | विशिष्टा द्वैत | रामानुज |
2 | ब्रहम | द्वैतवाद | आनंदतीर्थ |
3 | रुद्र | शुद्धाद्वैतवाद | वल्लभाचार्य |
4 | सनक | द्वैताद्वैतवाद | निम्बार्क |