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मौर्योत्तर काल (POST-MAURYA PERIOD in Hindi || Post-Mauryan history in Hindi)
- शक्तिशाली मौर्य काल के बाद केन्द्रीय सत्ता के आभाव के परिणामस्वरूप 187 ई०पू० से 240 ई० तक की अवधि में भारत की राजनीतिक एकता खण्डित रही जिसे मौर्योत्तर काल (Post-Maurya Period ) के नाम से जाना जाता है।
- इस काल में मगध सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न साम्राज्यों जैसे शुंग, कण्व, सातवाहन, वाकाटक, कलिंग आदि का उदय हुआ तथा इस काल में विदेशी आक्रमण भी हुए।
- इस काल में सशक्त केंद्रीय सत्ता के अभाव में क्षेत्रीय राजा स्वतंत्र होने लगे, जिनमें कलिंग का राजा खारवेल प्रमुख था
- इस काल के अध्ययन के लिए पुरातात्विक एवं साहित्यिक स्रोत उपलब्ध हैं।
मौर्योत्तर काल (Post-Mauryan history in Hindi) के अध्ययन के लिए प्रचुर मात्रा में साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोत उपलब्ध हैं।
मौर्योत्तर काल (Post-Maurya Period) : महत्वपूर्ण अभिलेख
अभिलेख | सम्बद्ध शासक | विशेषता |
शिनकोट अभिलेख | मिनांडर | इसे शिनकोट ताबूत अभिलेख भी कहा जाता है (खरोष्ठी लिपि में) |
तख्तेवही अभिलेख | गोंडफर्निस | पाकिस्तान के खैबर पख्तून क्षेत्र स्थित बौद्ध मठ से मिला, जो यूनेस्को वैश्विक धरोहर स्थल है |
पंजतर अभिलेख | कुषाण | इसमें “महाराज कुषाण का राज्य” लिखा है |
जूनागढ़ अभिलेख | रुद्रदामन | यह संस्कृत का पहला अभिलेख है, जिसमें सुदर्शन झील का सर्वप्रथम उल्लेख हुआ है. |
नानाघाट अभिलेख | नागिनका | अंकों के इतिहास की जानकारी मिलती है |
नासिक अभिलेख | गौतमी बलश्री | गौतमीपुत्र शातकर्णि से सम्बंधित है |
अयोध्या अभिलेख | धनदेव | संस्कृत में, पुष्यमित्र शुंग द्वारा अश्वमेघ यज्ञ करने की चर्चा |
बेसनगर अभिलेख | हेलियोडोरस | वासुदेव की चर्चा है |
मौर्योत्तर काल (Post-Mauryan history in Hindi) : महत्वपूर्ण साहित्यिक रचना
साहित्य | रचयिता | विशेषता |
चरक सहिंता | चरक | संस्कृत भाषा में लिखित आयुर्वेद का प्रमुख ग्रन्थ है |
महाभाष्य | पतंजलि | अष्टाध्यायी के कुछ चुने हुए सूत्रों पर लिखी भाष्य है |
नाट्यशास्त्र | भरत | इस ग्रन्थ में प्रत्यभिज्ञा दर्शन की छाप है। |
कामसूत्र | वात्स्यायन | धर्म-अर्थ-काम को नमस्कार करते हुए ग्रन्थारम्भ है। |
गाथासप्तशती | हाल | |
स्वप्नवासवदत्ता | भास | भास का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है। |
बुद्ध चरित्र सौंदरनंद | अश्वघोष | बुद्ध के भाई सुंदर नन्द के सन्यास ग्रहण की कथा है |
मृच्छकटिकम् | शूद्रक | मृच्छकटिकम् अर्थात् मिट्टी का खिलौना या मिट्टी की गाड़ी इस नाटक की पृष्ठभूमि पाटलिपुत्र है |
मिलिंदपन्हो | नागसेन | मिलिन्दपन्ह (अर्थात् मिलिन्द के प्रश्न) एक पालि भाषा में रचित बौद्ध ग्रन्थ हैं |
मौर्योत्तर काल : महत्वपूर्ण मौर्योत्तर कालीन बंदरगाह
बन्दरगाह | अवस्थिति |
सोपारा | पश्चिमी तट |
भड़ौच | गुजरात |
देवल | सिंध |
पोलूरा | उड़ीसा तट |
टेमाटाइल्स | निचली गंगा घाटी |
चौल (समिल्ला) | केरल तट |
नौरा (मंगलौर) | केरल तट |
टिंडीस | केरल तट |
मुजरिस | केरल तट |
कोल्वी (कोरकई) | तमिल तट |
पुहार (कावेरीपट्टनम) | तमिल तट |
नागपट्टनम | तमिल तट |
कमारा | तमिल तट |
मसूलीपट्टनम | आंध्र तट |
कौन्डोक | आंध्र तट |
साइला | आंध्र तट |
निट्रिग | आंध्र तट |
मौर्योत्तर काल : अंधकार युग
मौर्योत्तर काल भारत के लिए राजनैतिक रूप से विखंडन का काल था आंतरिक रूप से भारत के अलग अलग क्षेत्र में अलग अलग राज्य थे जैसे पूर्वी, मध्य और दक्कन के क्षेत्र में क्रमश: शुंग, सातवाहन और कण्व राज्य थे तो उत्तर पश्चिमी भारत में इंडोग्रीक या बैक्टेरियन शक, पार्थियन और कुषाण जैसे विदेशी राज्य थे।
कुछ इतिहासकार इस काल को अन्धकार युग कहते हैं जबकि कुछ इतिहासकार इसे निरंतरता और परिवर्तन का काल मानते हैं।
अंधकार के युग के रूप में प्रस्तुत करने वाले इसके लिए निम्न तर्क देते हैं-
यह काल राजनैतिक रूप से विखंडन का काल था एवं इस समय विदेशी आक्रमण भी हुए. इस काल में मौर्य साम्राज्य के समान संगठित, मजबूत और कुशल केन्द्रीय शासन का अभाव था।
सामाजिक जटिलता में वृद्धि हुई एवं इस अवधि में अस्पृश्यता और बाल विवाह जैसी कुरीतियों की शुरुआत हुई।
तीसरी शताब्दी ई० के मध्य में रोमन साम्राज्य द्वारा लगाये गए प्रतिबंधों के कारण आर्थिक पतन हुआ।
जबकि कुछ इतिहाकारों के अनुसार यह राजनीतिक प्रशासनिक दृष्टिकोण से उल्लेखनीय विकास का काल था।
सातवाहन साम्राज्य भौगोलिक रूप से एक बड़े क्षेत्र में विस्तृत था. दक्षिण भारत में चोल, चेर और पांड्य राज्य का उदय हुआ जिनमें से चोलों ने समुद्र पार श्रीलंका पर आक्रमण किया. भारतीय संस्कृति का विस्तार भारत से बाहर हुआ।
भारत के आक्रमणकारियों ने भारतीय संस्कृति को आत्मसात किया। कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई, वास्तुकला का विकास हुआ। रोमन साम्राज्य द्वारा व्यापार पर लगाये प्रतिबंध के नकारात्मक परिणाम स्पष्ट नहीं हैं बल्कि इस काल में बड़े पैमाने पर स्वर्ण सिक्के जारी किये गए थे।