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History ke srot | इतिहास के स्रोत | Itihas ke srot -Importance and Limits of 2 Sources

History ke srot | इतिहास के स्रोत | Itihas ke srot|इतिहास के साधन 

इतिहास शाब्दिक अर्थ में पुरानी कहानी अथवा अतीत की व्याख्या है। इस व्याख्या में उस समय की विशेषताओं जैसे सामाज, अर्थव्यवस्था, राजनीतिक प्रणाली, कला संस्कृति आदि को शामिल किया जाता है। वर्तमान के दृष्टिकोण से अतीत का निर्धारण अत्यंत दुष्कर कार्य है। अत: अतीत के निर्माण के लिए पर्याप्त स्रोत (History ke srot | इतिहास के स्रोत) की आवश्यकता होती है।

इतिहासकार ‘जी एच कार’ ने इतिहास के स्रोत / इतिहास के साधन  (History ke srot) के महत्व को एक कहानी के रूप में समझाया है, जिसे परिष्कृत रूप में निम्न रूप मे समझा जा सकता है:-

मान लीजिए कि एक सूनसान रात में एक सड़क पर एक व्यक्ति की  दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है। अगली सुबह वहाँ कुछ लोग जमा होते हैं तथा उसकी मृत्यु के संभावित कारणों पर विचार करते हैं। ये लोग इतिहासकार के समान हैं।

इनलोगों के सामने समस्या है, यह पता लगाना है कि वास्तव मे कल रात हुआ क्या था? सभी लोगों के अपने अपने विचार हैं जो किसी न किसी तर्क पर आधारित है जैसे एक व्यक्ति कहता है कि उस व्यक्ति को सामने से आती गाड़ी नहीं दिखी, तो कोई कहता है कि उसने आत्महत्या की है, तो किसी के नजर में सामने से आने वाली गाड़ी के ड्राइवर को नींद या गई थी वगैरह – वगैरह।

वास्तव में सच्चाई किसी को नहीं पता लेकिन साक्ष्यों के आधार पर सब सत्य जानने का प्रयास करते हैं। इतिहासकार इसी प्रकार से इतिहास का निर्माण करता है। 

इसलिए इतिहास का निर्माण बिना साक्ष्य के संभव नहीं है साक्ष्य यदि स्पष्ट एवं सत्य हो तो इतिहास की व्याख्या सही सही हो सकता है किन्तु यदि साक्ष्य में त्रुटि हो अथवा अस्पष्ट हो तो इतिहास का सही सही व्याख्या संभव नहीं है। इसलिए के लिए इतिहास के स्रोत / इतिहास के साधन  (History ke srot) अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

इतिहास के स्रोत | इतिहास के साधन  (History ke srot)

इतिहास के स्रोत / इतिहास के साधन  (History ke srot) जितना दोषमुक्त होंगे इतिहास का निर्धारण उतना ही सटीक होगा। वैसा कोई भी साक्ष्य जो किसी काल खंड के विषय में सूचना देता हो इतिहास का स्रोत है। स्रोतों के तार्किक विश्लेषण द्वारा इतिहास का निर्धारण किया जाता है।

इतिहास के निर्धारण के लिए स्रोतों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है:-

  1. पुरातात्विक स्रोत
  2. साहित्यिक स्रोत

इतिहास के स्रोत (History ke srot) : पुरातात्विक स्रोत

प्राचीन भारत के अध्ययन के लिए पुरातात्विक सामग्रियाँ सर्वाधिक प्रमाणिक हैं। इसके अन्तर्गत मुख्यतः अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियाँ, चित्रकला आदि आते हैं।

अभिलेख:- पुरातात्विक स्रोतों के अन्तर्गत सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत अभिलेख है। प्राचीन भारत के अधिकतर अभिलेख पाषाण शिलाओं, स्तम्भों, ताम्रपत्रों, दीवारों तथा प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं।

सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया के बोगजकोई नामक स्थान से लगभग 1400 ई.पू. के मिले हैं। इस अभिलेख में इन्द्र, मित्र, वरुण और नासत्य आदि वैदिक देवताओं के नाम मिलते हैं।

भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक के अभिलेख हैं; जो 300 ई.पू. के लगभग है।

पुरातात्विक स्रोत : महत्व

  • पुरातात्विक साक्ष्यों से तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं की जानकारी मिलती है।
  • पुरातात्विक साक्ष्य राज्य के भौगोलिक विस्तार को स्पष्ट करते हैं
  • पुरातात्विक साक्ष्यों में  छेड़ छाड़ की संभावना कम होती है
  • यह तत्कालीन मानवीय ज्ञान को दर्शाता है। उदाहरण के लिए बड़े बड़े मंदिर उस समय के भवन निर्माण के तकनीकी ज्ञान को प्रदर्शित करते हैं।
  • द्विभाषीय अभिलेखों के माध्यम से इतिहास अभिलेखों का पढ़ा जाना संभव हो पता है।

पुरातात्विक स्रोत : सीमाएं

  • पुरातात्विक साक्ष्यों को सामान्यत: स्थायी माना जाता है किन्तु संभव है कि इनके स्थान में परिवर्तन परवर्ती शासकों के द्वारा कर दिया जाए। उदाहरण के लिए दिल्ली टोपरा एवं मेरठ अभिलेख।
  • इसके साक्ष्यों/वर्णन को आंक मूंदकर स्वीकार नहीं किया जा सकता है, इनमें अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन मिलता है।
  • अपठनीय होने के कारण कई बार समस्या का कारण बन जाता है उदाहरण के लिए हड़प्पा सभ्यता के अभिलेख, जिसकी लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
  • प्राकृतिक रूप से अथवा कई अन्य कारणों से पुरातात्विक स्रोत समाप्त हो जाते हैं।
  • पुरातात्विक साक्ष्यों का विश्लेषण व्याकतनिष्ठ (Subjective) होता है अर्थात एक ही साक्ष्य से दो अलग अलग निष्कर्ष निकले जा सकते हैं।
  • पुरातात्विक साक्ष्यों के अध्ययन के लिए उचित तकनीक की उपलब्धता का अभाव।
  • पुरातात्विक साक्ष्यों  के उत्खनन में साक्ष्य नष्ट हो जाते हैं।

इतिहास के स्रोत (History ke srot) : साहित्यिक स्रोत

साहित्यिक स्रोतों को देशी एवं विदेशी के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। भारतीय साहित्यिक स्रोतों के विषय में अक्सर कहा जाता है कि भारत में इतिहास लेखन का अभाव रहा है। भारतीय साहित्यिक स्रोतों में पर्याप्त रूप मे ऐतिहासिक तथ्य मिलते हैं जिससे तत्कालीन समाज एवं जीवन के विषय में जानकारी मिलता है। 

देशी साहित्यिक स्रोत दो प्रकार के होते हैं-

(1) धार्मिक साहित्य

(2) लौकिक साहित्य या धर्मोत्तर साहित्य

साहित्यिक स्रोत : महत्व

  • साहित्यिक स्रोतों में तत्कालीन समय की राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक जीवन के विषय में विस्तार से जानकारी मिलती है जैसे वैदिक जीवन का निर्धारण पूर्णत: साहित्य के सहारे की गई है।
  • इसमें राज दरबार के विषय में विस्तार से जानकारी मिलती है।
  • इससे भाषाओं के विकास के विषय में जानकारी मिलती है।

साहित्यिक स्रोत : सीमाएं

  • इसमें क्षेपक जोड़े जा सकते हैं।
  • प्राचीन साहित्यिक स्रोत इतिहास के लिए नहीं लिख गया बल्कि इनका संबंध धार्मिक विषयों से अधिक था जिसके कारण धार्मिक पहलू अधिक प्रबल मिलता है
  • विदेशी लेखकों के विवरण से तत्कालीन समाज एवं राज के विषय में ज्ञान मिलता है किन्तु भारतीय विशेषताओं के विषय में उनके काम जानकारी के कारण उनका विवरण भी त्रुटिरहित नहीं है।
  • दरबारी लेखन की एक अपनी सीमा होती है इनमें विषयों को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है।

निष्कर्ष: इतिहास का निर्माण पुरातात्विक साक्ष्यों एवं साहित्यिक साक्ष्यों के विवरणों की संपुष्टि के बाद ही किया जाता है। सवाल यह है कि पाषाण काल के विषय में इतिहास का निर्माण कैसे किया गया ? पुरातात्विक साक्ष्यों एवं साहित्यिक साक्ष्यों के बीच जितनी साम्यता होगी उतना ही सटीक इतिहास का निर्माण हो पाएगा। 

भारतीय इतिहास के लिए महत्वपूर्ण पोस्ट:

पुरा पाषाण काल का इतिहास

मध्य पाषाण काल का इतिहास

नवपाषाण काल का इतिहास

इतिहास के स्रोत क्या-क्या है ?

प्राचीन काल के इतिहास के निर्धारण के लिए विभिन्न स्रोतों का उपयोग किया जाता है जैसे –औजार, स्मारक, जीवाश्म, मृद्भांड, भोजपत्र, ताम्रपत्र, सिक्के, आभूषण, इमारतें, अभिलेख, चित्र, विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरण, तत्कालीन साहित्य आदि हैं। इन साधनों को इतिहास के स्रोत कहते हैं। इन स्रोतों को 3 वर्गों में बाँटा जाता है-
पुरातात्विक स्रोत
साहित्यिक स्रोत
विदेशी यात्रियों के विवरण

प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण के मुख्य स्रोत क्या है ?

प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए उस काल के पुरातात्विक साक्ष्य के अलावे साहित्यिक स्रोतों की भूमिका होती है। पुरातात्विक साक्ष्य मे स्मारक, अभिलेख, सिक्के, शिलालेख, ताम्रपत्र, आभूषण, मृद्भांड आदि प्रमुख हैं तो साहित्यिक साक्ष्य में विदेशी साहित्य सहित देशी साहित्य में धार्मिक एवं गैर धार्मिक साहित्य शामिल हैं।

साहित्यिक स्रोत क्या हैं ?

साहित्यिक स्रोतों में विदेशी साहित्य सहित देशी साहित्य में धार्मिक एवं गैर धार्मिक साहित्य शामिल हैं। उदहारण के लिए मेगास्थनीज की इंडिका, पुराण, वेद, उपनिषद, अंगुत्तर निकाय, अर्थशास्त्र आदि को लिया जा सकता है।

पुरातात्विक स्रोत और साहित्यिक स्रोत में अंतर

पुरातात्विक स्रोत जैसे स्मारक, भवन, शिलाअभिलेख, सिक्के, मृदभांड आदि को साहित्यिक स्रोत जैसे पुराण, उपनिषद, अर्थशास्त्र आदि की तुलना में अधिक प्रमाणिक माना जाता है। पुरातात्विक स्रोतों में हेर फेर की गुंजाइश कम होती है जबकि साहित्यिक स्रोत में यह संभव है। साहित्य की रचना किसी शासक को महिमा मंडित करने के लिए की जा सकती है किन्तु पुरातात्विक साक्ष्य सत्य पर आधारित होते हैं। साहित्यिक स्रोतों में उसकाल के कलात्मक पहलुओं का सटीक विवरण नहीं मिलता किन्तु पुरातात्विक साक्ष्य इसकी पूर्ण जानकारी देते हैं। आर्थिक इतिहास अथवा आर्थिक प्रगति का आकलन करनें में उस समय के पुरातात्विक स्रोत जैसे महल/भवन, सिक्के आदि अधिक महत्वपूर्ण होते हैं जबकि साहित्य में इस संबंध में प्रमाणिक तथ्य का अभाव होता है।