तकनीकी रूप से ताम्रपाषाण काल (Chalcolithic period in Hindi) को कांस्ययुगीन हड़प्पा सभ्यता के पहले होना चाहिए किन्तु अधिकांश ताम्रपाषाण कालीन संस्कृतियाँ हड़प्पा सभ्यता के बाद की है। हालांकि कुछ स्थल पूर्व हड़प्पा काल से भी संबंधित हैं। इनहें निम्न चार्ट से समझा जा सकता है:-
हड़प्पा पूर्व | हड़प्पा के दौरान | हड़प्पा के बाद |
सोथी संस्कृति | आहड़ संस्कृति | मालवा, कायथा, जोरवे संस्कृति |
झूकर-झांगर संस्कृति | गणेश्वर संस्कृति, गैरिक मृदभांड संस्कृति | एरण,मृदभांड संस्कृति-PRW,BRW,NBPW |
ऐसा माना जाता है कि ताँबे का सर्वप्रथम प्रयोग लगभग 5000 ई.पू. में किया गया।
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ताम्रपाषाण काल (Chalcolithic period in Hindi)
जिस काल में मनुष्य ने पत्थर एवं ताँबे के औजारों का प्रयोग किया, में उस काल को ताम्र पाषाण काल (Chalcolithic period) कहते हैं। सर्वप्रथम जिस धातु को औजारों में प्रयुक्त किया गया, वह ताँबा था।
ताम्र पाषाण काल (Chalcolithic period in Hindi) में लोग मुख्यतः ग्रामीण समुदाय के थे।
भारत में ताम्र पाषाण अवस्था के मुख्य क्षेत्र दक्षिण-पूर्वी राजस्थान (अहार एवं गिलुंड) पश्चिमी मध्य प्रदेश (मालवा, कयथा और एरण) पश्चिमी महाराष्ट्र तथा दक्षिणी-पूर्वी भारत है।
तिथिक्रम के अनुसार भारत में ताम्रपाषाण काल (Chalcolithic Period in India) के बस्तियों की अनेक श्रृंखलाएं हैं। कुछ तो प्राक् हड़प्पीय हैं, कुछ हड़प्पा संस्कृति की समकालीन हैं तथा कुछ हड़प्पोत्तर काल की हैं।
चित्रित मृदभाण्डों का प्रयोग सर्वप्रथम इसी युग के लोगों द्वारा किया गया।
ताम्रपाषाण काल (Chalcolithic period in Hindi) की विभिन्न संस्कृतियाँ
भारत में उत्खनित पुरावशेषों के आधार पर प्रमुख ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति निम्न है-
- कायथा ताम्रपाषाणिक संस्कृति – 2000-1800
- आहाड़ ताम्रपाषाणिक संस्कृति – 2100-1500
- मालवा ताम्रपाषाणिक संस्कृति – 1700-1200
- जोर्वे ताम्रपाषाणिक संस्कृति – 1400-700
- उत्तर भारत की ताम्रनिधियाँ –
कायथा ताम्र पाषाणिक संस्कृति–
कायथा की पहचान ‘कपित्थक’ (वाराहमिहिर की जन्मस्थली) से की जाती है।
- कायथा संस्कृति के लोग मालवा क्षेत्र के पहले निवासी थे जिन्होंने मकान बनाना आरंभ कर दिया था। यह मकान सामान्यत: बांस बल्ली के सहारे बनाए जाते थे जिसमें दीवारों पर मिट्टी का लेप लगा होता था तथा छत को बांस की टहनियों एवं घास पतवार से ढंका जाता था।
- कायथा संस्कृति से लाल मृदभांड की प्राप्ति बहुतायत में हुई है।
- कायथा संस्कृति के लोगों की मिश्रित अर्थव्यवस्था थी जिसमें कृषि, पशुपालन सहित मत्स्य एवं शिकार भी शामिल था।
- कायथा के उत्खनन से तांबे की 2 कुल्हाड़िया मिली हैं जो साँचे में निर्मित है।
आहाड़ ताम्रपाषाणिक संस्कृति-
- अहार का प्राचीन नाम ताम्बवती अर्थात् ताँबा वाली जगह इस संस्कृति का काल 2100 से 1500 ई.पू. के बीच।
- गिलुन्द इस संस्कृति का स्थानीय केन्द्र माना जाता है। यहाँ एक प्रस्तर फलक उद्योग के अवशेष मिलते हैं।
- इस काल के लोग गेहूँ, धान और दाल की खेती करते थे। लगभग ये सभी अनाज महाराष्ट्र में नर्मदा नदी के तट पर स्थित नवदाटोली में भी पाये गये हैं।
- खुदाई के परिणामस्वरूप इतने सारे अनाज भारत के अन्य किसी भी स्थान में शायद नहीं मिले हैं।
- अहार के लोग पत्थर के बने घरों में रहते थे।
- अहाड़ एवं बालाथल से प्रस्तर उपकरण काफी कम मात्रा में मिले हैं जिससे लगता है कि यहाँ के लोग ताम्र उपकरण का ज्यादा उपयोग करते थे।
- अहाड़ के उत्खनन से तांबे के उपकरण जैसे, चाक,कुल्हाड़ी,चूड़ी,छल्ले, छड़े आदि एवं आभूषण मिले हैं।
- अहाड़ संस्कृति के लोग कृषि एवं पशुपालन से जुड़े हुए थे।
- अहाड़ से प्राप्त मृदभांड़ों के टुकड़े से धान के अधजले दाने, भूसी और पुआल मिले हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि धान की खेती प्रमुखता से की जाती होगी।
मालवा ताम्रपाषाणिक संस्कृति-
- मालवा के ताम्रपाषाणिक संस्कृति की जानकारी ‘नवदाटोली और माहेश्वर‘ के उत्खननों से सर्वप्रथम हुई इस संस्कृति का विकास मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में हुआ।
- मालवा संस्कृति के लोगों को तांबा का ज्ञान था किंतु इसका सीमित उपयोग होता था।
- मालवा संस्कृति में लोग रहने के लिए घास-फूस की झोपड़ियाँ बनाते थे जिसके फर्श मिट्टी और गोबर से बनाये गए थे तथा दीवाल बांस की सहायता से बनाए जाते थे।
- इनाम गाँव से 32 मकानों के तथा दायमबाद से 28 मकानों के अवशेष मिले हैं।
- इनामगाँव के उत्खनन से मकान के गोल आकार में निर्मित होने का साक्ष्य प्राप्त हुआ है।
- मालवा संस्कृति में एरण और नागदा पुरास्थलों से कीलेबंद बस्तियों के साक्ष्य मिले हैं।
- दायमाबाद (Daimabad) के उत्खनन से तांबे का एक गैंडा, एक हाथी, एक भैंसा व एक रथ जिस पर एक व्यक्ति खड़े मुद्रा में है, प्राप्त हुआ।
- मालवा ताम्रपाषाण संस्कृति की एक विलक्षणता उसके मृदभांड हैं जिसे ताम्र पाषाण मृदभाण्डों में उत्कृष्टतम् माना गया है।
जोर्वे ताम्रपाषाणिक संस्कृति-
- मालवा मृदभांड की चार परंपराएँ मिलती है जिसमें से चौथी परंपरा का संबंध जोरवे मृदभांड परंपरा अथवा संस्कृति से है।
- महाराष्ट्र के उत्खनन स्थल हैं- अहमदनगर को जोर्वे, नेवासा एवं दैमाबाद, पुणे में चन्दोली, सोनगाँव एवं इनामगाँव आदि। ये सभी स्थल जोर्वे संस्कृति से संबंधित हैं।
- जोर्वे संस्कृति ग्रामीण थी फिर भी इसकी कई बस्तियाँ जैसे- दायमाबाद और इनाम गाँव में नगरीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई थी। जोर्वे स्थलों में सबसे बड़ा दैमाबाद है।
- दायमाबाद की ख्याति भारी संख्या में काँसे की वस्तुओं की उपलब्धि के लिए है। इनमें से कुछ वस्तुओं पर हड़प्पा संस्कृति का प्रभाव लक्षित होता है।
उत्तर भारत की ताम्रनिधियाँ-
- भारत में ताम्र निधियों का प्रथम साक्ष्य कानपुर के बिठूर नामक स्थान से 1822 ई० में प्राप्त हुआ। आगे कई स्थलों से ताम्र औज़ार/उपकरण प्राप्त हुए हैं।
- उत्खनन के दौरान ताम्र उपकरण कई स्थानों पर ढेर के रूप में मिले हैं इसलिए इन्हे ‘ताम्रनिधि’ की संज्ञा दी जाती है।
- भारत में ताम्रनिधियों का विस्तार राजस्थान, हरियाणा उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश,पश्चिम बंगाल,ओडिशा तथा कर्नाटक से प्राप्त हुए हैं।
- ताम्रनिधियों से प्राप्त उपकरणों का निर्माण शुद्ध रूप से ताम्र से किया गया इसमें किसी भी अन्य धातु का मिश्रण नहीं है।
- ताम्रनिधियों के समीप आवासीय क्षेत्रों का अभाव है इससे प्रतीत होता है कि इनका निर्माण किसी वर्ग विशेष अर्थात स्वतंत्र शिल्पियों के द्वारा किया गया है।
- सामान्यत: ताम्रनिधियों का संबंध गैरिक मृदभांड परंपरा से जोड़ा जाता है किन्तु इसके निर्माता को लेकर विद्वानों में मतभेद है- कुछ लोग आर्य, तो कुछ सिंधु सभ्यता के विस्थापित लोग तो कुछ लोग आदिम कबीले को मानते हैं।
ताम्र पाषाण काल से संबंधित तथ्यों एवं सामान्य अध्ययन के अध्ययन के लिए गाइड बुक का अध्ययन किया जा सकता है:
ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं:
- ताम्र पाषाण के लोग वस्त्र निर्माण से सुपरिचित थे। इसके अतिरिक्त इनामगाँव में कुम्भकार, धातुकार, हाथी दाँत के शिल्पी, चूना बनाने वाले और खिलौने की मिट्टी की मूर्ति (टेराकोटा) बनाने वाले कारीगर भी दिखाई दिये हैं।
- इस काल के लोगों में संस्कारों और धार्मिक सम्प्रदायों के बारे में कुछ आभास मिलता है। महाराष्ट्र में लोग मृतक को अस्थिकलश में रखकर अपने घर के फर्श के अन्दर उत्तर-दक्षिण दिशा में गाड़ते थे।
- ताम्र पाषाण के लोग मातृदेवी की पूजा करते थे तथा वृषभ धार्मिक सम्प्रदाय का प्रतीक था।
- इस काल में सामाजिक असमानता आरम्भ हो चुकी थी। महाराष्ट्र में पाई गई, कई जोर्वे बस्तिस्यों में एक तरह का निवासगत अधिक्रम (ऊँच-नीच का क्रम) दिखाई देता है। इससे जोरवे में द्विस्तरीय निवास का आभास मिलता है।
- सभी ताम्र पाषाण समुदाय चाकों पर बने काले व लाल मृद्भाण्डों का प्रयोग करते थे।
- चित्रित मृद्भाण्डों का प्रयोग सर्वप्रथम ताम्र पाषाणिक लोगों ने ही किया था।
- दक्षिण भारत में नव पाषाण अवस्था अलक्षित रूप से ही ताम्र पाषाण अवस्था में परिणत हो गई, अतः इन संस्कृतियों को नव पाषाणीय ताम्र पाषाण संस्कृति का नाम दे दिया गया।
- मालवा एवं मध्य भारत में जैसे- कायथा और एरण की बस्तियाँ ताम्र पाषाण काल की सबसे प्राचीन बस्ती है। पश्चिमी महाराष्ट्र की बस्तियों के बाद की मालूम होती हैं।
- सर्वप्रथम ताम्र पाषाण के लोगों ने ही प्रायद्वीपीय भारत में बड़े- बड़े गाँव बसाए।
- मध्य प्रदेश में कायथा एवं एरण की और पश्चिमी महाराष्ट्र में इनाम गाँव की बस्तियाँ किलाबन्द हैं।
- पश्चिमी भारत में सम्पूर्ण शवाधान तथा पूर्वी भारत में आंशिक शवाधान प्रचलित था।
- ताम्र पाषाण स्थलों से हल और फावड़ा भी पाया गया है।
- ताम्र पाषाण युग के लोग लेखन कला से अनभिज्ञ थे तथा न ही नगरों में रहते थे; जबकि कांस्य युगीन (हड़प्पा कालीन) लोग नगरवासी हो गये थे।
- सबसे बड़ी ताम्र निधि मध्य प्रदेश के गुंगेरिया से प्राप्त हुई है। इसमें 424 ताँबे के औजार एवं हथियार तथा 102 चाँदी के पतले पत्तर हैं।
सैन्धव पूर्व ताम्र पाषाण कालीन संस्कृतियाँ | |||
1 | क्वेटा संस्कृति | बलूचिस्तान में | पांडुरंग के मृद्धांडों का प्रयोग। |
2 | कुल्ली संस्कति | बलूचिस्तान में | पांडुरंग के लेप पर काले रंग से चित्रण वाले मृद्भांड। |
3 | नाल-आर्मी संस्कृति | बलूचिस्तान एवं सिंध में | पांडुरंग के लेप परबहुरंगी अलंकरण वाले मृद्भांड। |
4 | झोब संस्कृति | बलूचिस्तान में | लाल रंग के लेप पर काले रंग से चित्रण वाले मृद्भांड। |
5 | कोटिदीजी संस्कृति | सिंध में | लाल रंग के लेप पर दुधिया रंग की पट्टी जिस पर बहुरंगी अलंकरण वाले मृद्भांड। |
6 | पूर्व हड़प्पा संस्कृति | पंजाब(पाकिस्तान) | लाल या बैंगनी रंग के में लेप पर काले रंग की धारियों वाला मृद्भांड। |
प्रमुख तथ्य | |||
सर्वाधिक पूर्व सैंधव ताम्र-पाषाणिक संस्कृतियां बलूचिस्तान से प्राप्त हुई हैं।
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FAQ: ताम्र पाषाण काल
Q. ताम्र पाषाण काल का समय क्या था?
Ans: अलग अलग कालखंड में अलग अलग ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति के साक्ष्य मिलते हैं जिन्हें सामान्यत: 3500 ई० पू० से 700 ई० पू० के बीच माना जाता है।सभी को एक ही काल खंड में नहीं रखा जा सकता बल्कि अलग अलग क्षेत्रों में ताम्र पाषाण काल का कालखंड अलग अलग था।
Q. ताम्र पाषाण कालीन प्रमुख स्थल कौन कौन सी हैं?
Ans: प्रमुख ताम्रपाषाण कालीन स्थल निम्न हैं- राजस्थान- आहार एवं गिलुण्ड, मध्य प्रदेश- मालवा, कायथा तथा एरण, महाराष्ट्र-जोरवे, नेवासा, दायमबाद, चंदौली, सोनगाँव, इनामगाँव, नवदाटोली।
Q. बिहार की ताम्र पाषाण कालीन स्थल कौन हैं?
Ans: बिहार में ताम्र पाषाण कालीन संस्कृति के साक्ष्य सोनपुर, ताराडीह, मनेर, चिराँद, चेचर आदि से प्राप्त हुए हैं।
Q. ताम्रपाषाण युग से क्या तात्पर्य है ?
Ans: ताम्रपाषाण युग का संबंध एक ऐसे युग से है जिसमें लोगों को तांबे के विषय में जानकारी थी तथा वे इसे पाषाण के साथ प्रयोग करते थे, अर्थात इस युग में मानव तांबे एवं पाषाण का उपयोग करता था।
Q. सर्वप्रथम मानव द्वारा प्रयुक्त धातु कौन सी है ?
Ans: मानव ने सबसे पहले तांबे का उपयोग किया था। इससे पहले मानव सिर्फ पाषाण एवं लकड़ी के उपकरण के उपयोग से परिचित था फिर तांबे का उपयोग किया उसके बाद कांसे का फिर लौह का उपयोग किया।
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