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5 Archaeological sources in Hindi : पुरातात्विक स्रोत | पुरातात्विक साक्ष्य | Itihas ke puratatvik srot -Most Important

( Archaeological sources ) पुरातात्विक स्रोत | पुरातात्विक स्रोत क्या है | पुरातात्विक स्रोत का अर्थ, पुरातात्विक स्रोत का महत्व, पुरातात्विक स्रोत अन्वेषण, पुरातात्विक स्रोत कौन-कौन से है ? Archaeological sources in Hindi  (पुरातात्विक स्रोत – Itihas ke puratatvik srot)

भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए Archaeological sources in Hindi (पुरातात्विक स्रोत)  एवं  Sahityik srot in Hindi(साहित्यिक स्रोत)   महत्वपूर्ण हैं। Archaeological sources of History in Hindi  (पुरातात्विक स्रोत ) से प्रश्न तथ्यात्मक रहते हैं जिसमे उत्खनन से मिले पुरातात्विक स्रोत का प्राप्ति स्थल, उनकी विशेषताएं आदि से संबंधित प्रश्न अधिक पूछे जाते हैं। अभिलेख एवं सिक्के से अधिक प्रश्न पूछे जाते हैं। इन्ही को ध्यान में रखकर यह पोस्ट लिखा गया है। 

What is Archaeological sources in Hindi (पुरातात्विक स्रोत क्या है )? 

Meaning of Archaeological sources in Hindi (पुरातात्विक स्रोत का अर्थ): 

प्राचीन भारतीय इतिहास को उद्घाटित करने के लिए  सबसे महत्वपूर्ण स्रोत पुरातात्विक स्रोत (Archaeological sources) हैं। ऐतिहासिक काल से संबंधित सभी प्रकार के भौतिक अवशेष को पुरातात्विक स्रोत के रूप मे पहचाना जाता है। इन स्रोतों के आधार पर तत्कालीन समाज के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक पहलूओं की जानकारी प्राप्त होती है। 

Types of Archaeological sources in hindi (पुरातात्विक स्रोत कौन-कौन से है ) ?

प्राचीन भारत के इतिहास के अध्ययन हेतु पुरातात्विक सामग्रियाँ सर्वाधिक प्रमाणिक हैं। इसके अन्तर्गत मुख्यतः अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियाँ, चित्रकला आदि आते हैं। पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर इतिहास का निर्माण साक्ष्यों के गहन अन्वेषण व विश्लेषण से हो पाता है।

अभिलेख

  • अभिलेखों का अध्ययन पुरालेखशास्त्र अथवा पुरालिपि शास्त्र कहलाता है।
  • प्राचीन भारत के अधिकतर अभिलेख पाषाण शिलाओं, स्तम्भों, ताम्रपत्रों, दीवारों तथा प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं।
  • सबसे प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया के बोगजकोई नामक स्थान से लगभग 1400 ई.पू. के मिले हैं। इस अभिलेख में इन्द्र, मित्र, वरुण और नासत्य आदि वैदिक देवताओं के नाम मिलते हैं।
  • भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख  मौर्य शासक अशोक के मिले हैं; जो लगभग 300 ई.पू. के है।
  • सर्वप्रथम 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी लिपि में लिखित अशोक के अभिलेखों को पढ़ा था।
  • मास्की, गुज्जर्रा, निटूर एवं उदेगोलम से प्राप्त अभिलेखों में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख है।
  • इन अभिलेखों से अशोक के धर्म, करारोपण और राजत्व के आदर्श पर प्रकाश पड़ता है।
  • अशोक के अभिलेखों के प्राप्ति स्थल के आधार पर उसके राजनीतिक विस्तार एवं उसकी लिपि के आधार पर उस क्षेत्र के लोगों एवं अधिकारियों के विषय में जानकारी मिलती है।
  • अशोक के अधिकतर अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है। पश्चिमोत्तर भारत से प्राप्त कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में है।
  • लघमान एवं शरेकुना से प्राप्त अशोक के अभिलेख यूनानी तथा आरमेइक लिपियों में हैं जिन्हे दुभाषीय अभिलेख कहते हैं।
  • अशोक के अभिलेख मुख्यतः ब्राह्मी, खरोष्ठी, यूनानी तथा आरमेइक लिपियों में मिले हैं।
  • मौर्य एवं मार्योत्तर काल के अभिलेख अधिकांशत: प्राकृत भाषा में है; किन्तु इसके बाद अर्थात गुप्त तथा गुप्तोत्तर काल के अधिकतर अभिलेख संस्कृत में हैं।
  • कुछ गैर सरकारी अभिलेख, जैसे- यवन राजदूत हेलियोडोरस का वेसनगर (विदिशा) अभिलेख (गरुड स्तम्भ लेख), जिसमें द्वितीय शताब्दी ई.पू. में भारत में भागवत धर्म के साक्ष्य मिले हैं।
  • मध्य प्रदेश के एरण से प्राप्त बाराह प्रतिमा पर हूणराज तोरमाण के लेखों का विवरण है(एरण अभिलेख )

सिक्के

  • सिक्के के अध्ययन को मुद्राशास्त्र कहते हैं।
  • आहत सिक्के या पंचमार्क सिक्के भारत के प्राचीनतम सिक्के हैं, जो ई.पू. पाँचवी सदी के हैं। चूंकि इन्हे ठप्पा मारकर बनाये जाते थे इसलिए इन्हें आहत मुद्रा या पंचमार्क सिक्के कहते हैं।
  • आहत मुद्राओं की सबसे पुरानी निधियाँ पूर्वी उत्तर प्रदेश और मगध से मिली है।
  • पुराने सिक्के ताँबा, चाँदी, सोना और सीसा के बनते थे।
  • पकाई गई मिट्टी के बने सिक्कों के साँचे ईसा की  तीसरी शताब्दियों के है। इनमें से अधिकांश साँचे कुषाण काल के हैं।
  • सिक्कों के निर्माण में एक विकास क्रम मिलता है- आरम्भिक सिक्कों पर चिन्ह मात्र मिलते हैं, किन्तु बाद के सिक्कों पर राजाओं और देवताओं के नाम तथा तिथियाँ भी उल्लिखित मिलती हैं।
  • आरम्भिक सिक्के अधिकतर चाँदी के होते हैं, जबकि ताँबे के सिक्के बहुत कम मिले थे। इन सिक्कों पर पेड़, मछली, साँड़, हाथी, अर्द्धचन्द्र आदि आकृतियाँ बनी होती थीं।
  • सर्वाधिक सिक्के मौर्योत्तर काल में मिले हैं, जो मुख्यतः सीसे, चाँदी, ताँबा एवं सोने के हैं।
  • सातवाहनों ने सीसे तथा गुप्त शासकों ने सोने के सर्वाधिक सिक्के जारी किये।
  • सर्वप्रथम लेख वाले स्वर्ण सिक्के हिन्द-यूनानी ( इण्डो-ग्रीक) शासकों ने चलाए।

मूर्तियाँ

  • प्राचीन काल में हड़प्पा सभ्यता से ही मूर्तियों के साक्ष्य मिलते हैं।
  • प्राचीन काल में मूर्तियों का निर्माण कुषाण काल से स्पष्ट रूप मे मिलता है।
  • कुषाण कालीन गान्धार कला पर विदेशी प्रभाव है, जबकि मथुरा कला पूर्णतः स्वदेशी है।
  • भरहुत, बोध गया और अमरावती की मूर्ति कला में जनसाधारण के जीवन की सजीव झाँकी मिलती है।

स्मारक एवं भवन

  • प्राचीन काल में महलों और मंदिरों की शैली से वास्तुकला के विकास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
  • उत्तर भारत के मंदिर ‘नागर शैली’ दक्षिण के ‘द्रविड़ शैली’ तथा दक्षिणा पथ के मन्दिर ‘वेसर शैली’ में है।
  • दक्षिण पूर्व एशिया व मध्य एशिया से प्राप्त मन्दिरों तथा स्तूपों से भारतीय संस्कृति के प्रसार पर प्रकाश पड़ता है।

चित्रकला

  • चित्रकला से हमें उस समय के जीवन के विषय में जानकारी मिलती है।
  • अजन्ता के चित्रों में मानवीय भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है। इस चित्रकला में ‘माता और शिशु’ तथा ‘मरणासन्न  राजकुमारी’ जैसे चित्रों से गुप्तकाल की कलात्मक उन्नति का पूर्ण आभास मिलता है।
  • अवशेषों में प्राप्त मुहरों से प्राचीन भारत का इतिहास लिखने में बहुत सहायक मिलती है। हड़प्पा, मोहनजोदड़ों से प्राप्त  मुहरों से उनके धार्मिक अवस्थाओं का ज्ञान होता है। बसाढ़ से प्राप्त मिट्टी की मुहरों  से व्यापारिक श्रेणियों का ज्ञान होता है।

महत्वपूर्ण अभिलेख: स्मरणीय

क्र. सं. अभिलेख शासक विशेषता । जानकारी
1 हाथी गुंफा खारवेल (कलिंग) खारवेल के शासन का वर्णन
2 जूनागढ़/गिरनार रुद्रदामन(शक शासक) रुद्रदामन एवं उसके विजयों का विवरण
3 नासिक गौतमी बलश्री (सातवाहन) साटवाहनों एवं गौतमीपुत्र के सैनिक विजयों के  विषय में
4 प्रयाग प्रशस्ति समुद्रगुप्त (गुप्त शासक) समुद्रगुप्त की विजयों का विवरण
5 मंदसौर यशोधर्माण (मालवा) इसके विजयों का वर्णन
6 एहोल पुलकेशियन – II पुलकेशियन – II का हर्ष के साथ युद्ध का विवरण
7 ग्वालियर भोज (प्रतिहार) गुर्जर प्रतिहार के विषय में
8 जूनागढ़ स्कन्दगुप्त स्कन्दगुप्त के विषय में
9 देवपाड़ा विजयसेन विजय सेन के विषय में

FAQ: पुरातात्विक स्रोत/ Puratatvik srot

Q. पुरातात्विक स्रोत कौन कौन से हैं (Puratatvik srot kya hai) ?

Ans. प्राचीन काल को उद्घाटित करने वाले भौतिक स्रोत जिनमें मुहरें, भवन तथा स्मारक, अभिलेख,नगर, सिक्के, मूर्तियाँ, चित्र, गुहा स्थापत्य आदि को शामिल किया जाता है।

Q. भारतीय पुरातत्व शास्त्र का जनक किसे कहा जाता है ?

Ans. कनिंघम को भारतीय पुरातत्व शास्त्र का जनक कहा जाता है, जो भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम महानिदेशक थे।

Q. पुरातात्विक अन्वेषण क्या है ?

Ans. किसी स्थान विशेष के अध्ययन के लिए उस स्थान से पुरातात्विक साक्ष्यों के संग्रह के लिए की जाने वाली खुदाई को ही पुरातात्विक अन्वेषण कहा जाता है। पुरातात्विक अन्वेषण के माध्यम से उस स्थान के विभिन्न स्तरों का खुदाई कर अध्ययन किया जाता है। पुरातात्विक अन्वेषण क्षैतिज अथवा लंबवत किया जाता है।

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