Sri Lanka crisis in hindi (श्रीलंका आर्थिक संकट) | Sri Lanka aarthik snkat (श्री लंका क्राइसिस) | sri lanka me mahangai |

Sri Lanka crisis in hindi श्रीलंका आर्थिक संकट

Sri Lanka crisis in hindi (श्रीलंका आर्थिक संकट) के इस पोस्ट में श्रीलंका आर्थिक संकट (श्री लंका क्राइसिस) के विभिन्न पहलूओं का विश्लेषण किया गया है जो मूल रूप में ‘द हिन्दू’, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, प्रभात खबर, TOIआदि में प्रकाशित संपादकीय एवं न्यूज पर आधारित है।

67 BPSC मुख्य परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, जिसके लिए अभ्यास प्रश्न भी दिया गया है।  

Sri Lanka crisis in hindi (श्रीलंका आर्थिक संकट)

श्रीलंका अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहा है।लोगों को भोजन नहीं मिल रहा है समान के भाव आसमान छू रहे हैं।  हालात इतना खराब हो गया है कि ईंधन को सेना की निगरानी में वितरित किया जा रहाहै, राजपक्षे की सरकार के खिलाफ लगातार लोगों का विरोध प्रदर्शन हो रहा है।

राष्ट्रीय सरकार बनाने की कवायद भी असफल हो चुकी है। नए नियुक्त वित्त मंत्री 24 घंटे मे इस्तीफा दे चुके हैं। 

Sri Lanka crisis in hindi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रमुख सचिवों की एक बैठक में कुछ राज्यों में चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा की गयी मुफ्त वितरण योजनाओं पर चिंता प्रकट की. उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी योजनाएं पंजाब, राजस्थान पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में श्रीलंका जैसा आर्थिक संकट खड़ा कर सकती है.  

क्या श्रीलंका आर्थिक संकट के लिए चीन जिम्मेवार है?

आम धारणा यह है कि यह संकट चीन के कर्ज से पैदा हुआ है. श्रीलंका ने विभिन्न परियोजनाओं के लिए और कर्ज की किस्तें चुकाने के लिए चीन से लगभग पांच अरब डॉलर का कर्ज लिया है जो श्रीलंका के कुल विदेशी कर्ज का लगभग 10 प्रतिशत ही है. कुल कर्ज का लगभग आधा हिस्सा श्री लंका ने अंतरराष्ट्रीय बाजार से लिया है.

श्री लंका ने चीन के जितना ही कर्ज जापान, एशियन विकास बैंक और विश्व बैंक से भी ले रखा है। संकट की असली वजह राजपक्षे और जयवर्धने सरकारों की भ्रष्टाचार, अविवेकपूर्णआर्थिक नीतियां और फिजूलखर्ची हैं. 

प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस द्वीपीय देश में राजनीतिक स्थायित्व रहा है. लंबे समय तक गृहयुद्ध से ग्रसित रहने के बावजूद उसकी अर्थव्यवस्था कई देशों से बेहतर प्रदर्शन करती रही. यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक (HDI) में भी श्रीलंका का प्रदर्शन बेहतर रहा है. 

फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि श्रीलंका आर्थिक दिवलीयपन के कगार पर पहुंच गया ? 

गृह युद्ध के बाद श्रीलंका का जीडीपी 2012 तक 8-9% की दर से वृद्धि कर रही थी, किन्तु इसके बाद निर्यात में कमी, आयात में वृद्धि तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोमोडिटी के मूल्यों में गिरावट के कारण जीडीपी का विकास दर गिरकर आधा हो गया।   

विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि यह सब अचानक नहीं हुआ. इसमें कुछ भूमिका तात्कालिक रूप में कोविड की रही. इसके अलावा श्रीलंका की अन्य नीतियाँ भी जिम्मेदार रही है. वास्तव में इन नीतियों के चलते आर्थिक संकट की शुरुआत तो बहुत पहले ही हो गई थी. जो अब जाकर अपना वास्तविक रूप में प्रकट हुआ.

श्रीलंका आर्थिक संकट के कारण (Causes of Sri Lanka crisis in hindi)

श्रीलंका आर्थिक संकट का बीजारोपण काफी पहले ही हो चुकी थी जिसमें कुछ कारणों ने वृद्धि की तथा कोविड उसका एक तात्कालिक कारण बना। 

श्रीलंका ने चीन से भी पहले सत्तर के दशक में ही आर्थिक सुधार शुरू कर दिया था। मुक्त बाजार व्यवस्था के शुरू होते ही तेजी से विदेशी निवेश श्री लंका में हुआ और पर्यटन उद्योग का तीव्र विकास हुआ.

बुनियादी सुविधाएं बेहतर हुई, लेकिन सरकार ने खेती, ऊर्जा और औद्योगिक निर्माण जैसे अर्थव्यवस्था को स्थिरता देनेवाले क्षेत्रों के विकास पर ध्यान नहीं दिया.

विशेषज्ञों के मुताबिक़ गलत आर्थिक नीतियों ने श्रीलंका को इस स्तर पर पहुच दिया, पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंका की सरकार ने लोकल्याणकारी सार्वजनिक सेवाओं के लिए विदेशों से बड़ी रकम कर्ज़ के रूप में ली.

बढ़ते कर्ज़ के अलावा कई दूसरी चीज़ों जैसे भारी बारिश, रासायनिक उर्वरकों पर सरकारी प्रतिबंध आदि ने भी देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा.इन सबने मिलकर किसानों की फसल को बर्बाद कर दिया.

गृहयुद्ध के दौरान श्रीलंका का बजट घाटा बहुत अधिक था और वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के कारण श्रीलंका को वर्ष 2009 में IMF से 2.6 बिलियन डॉलर का ऋण लेना पड़ा था।

वर्ष 2016 में श्रीलंका पुन: 1.5 बिलियन डॉलर के ऋण के लिये IMF के पास पहुँचा, किन्तु IMF की शर्तों ने श्रीलंका के आर्थिक व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डाला।

2018 स्थितियाँ और बदतर हो गई, जब राष्ट्रपति के प्रधानमंत्री को बर्खास्त किया जिसके बाद एक संवैधानिक संकट खड़ा हो गया. इसके बाद 2019 के ईस्टर धमाकों में में सैंकड़ों लोग मारे गए. और 2020 के बाद से कोविड-19 महामारी ने प्रकोप दिखाया.

साल 2019 के आतंकवादी बम कांड ने और उसके बाद कोविड महामारी ने पर्यटन को ठप्प कर दिया. 

श्रीलंका की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन पर आधारित है जिसका श्रीलंकाई जीडीपी में लगभग 12.5% का योगदान रहा  है और कोविड के पहले के दौर में पर्यटन का  क्षेत्र श्रीलंका में सबसे तेजी से वृद्धि दर्ज कर रहा था, लेकिन कोविड ने पर्यटन गतिविधियों पर विराम लगा दिया. 

बाकी कसर श्रीलंकाई सरकार की नीतियों ने पूरी कर दी. लोकलुभावन राजनीति के लोभ में सरकार ने सार्वजनिक कर की दरों में भारी कटौती कर दी जिससे राजस्व की क्षति हुई। 

सरकार के सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटा 10% से अधिक हो गया।  श्रीलंका का ‘ऋण-जीडीपी अनुपात’ वर्ष 2019 में 94% था जो बढ़कर वर्ष 2021 में 119% हो गया।

दूसरी ओर सरकारी ख़जाने के गड़बड़ाते वित्त प्रबंधन को देखते हुए वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका की साख पर सवाल खड़े किए जिसके परिणामस्वरूप  श्रीलंका के लिए अंततराष्ट्रीय वित्तीय तंत्र (संस्थान) से किफायती दर पर वित्तीय सहायता मिलना मुश्किल हो गया। 

ऋण के लिए वह चीन पर और निर्भर होता गया, जिसका उस पर पहले से कड़ी शर्तो वाले क़र्ज़ था. 

जब कर्ज के भुगतान के लिए भी कर्ज लेने की नौबत आ गयी, तब सरकार ने रासायनिक खाद के आयात पर खर्च होनेवाली  विदेशी मुद्रा को बचाने के लिए खेती को पूरी तरह ऑर्गेनिक बनाने का फैसला लिया. इसका परिणाम भयावह हुआ और खेती की उपज आधी हो गयी.

हालांकि बाद में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर ऑर्गैनिक खादों के उपयोग संबंधी फैसले को पलट दिया गया, लेकिन तब तक काफी देर हो गई थी और एक विकराल खाद्य संकट का आरंभ हो चुका था. यही कारण है कि आज श्रीलंका वित्तीय एवं खाद्य संकट से जूझ रहा है तथा उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है.

क्या भारत/भारतीय राज्य श्रीलंका के समान आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहे हैं ?

क्या भारत के कुछ राज्यों की आर्थिक दशा इतनी खराब हो चुकी है कि कर्ज माफी, मुफ्त बिजली, गैस सिलिंडर और कंप्यूटर तथा पेंशन जैसी चुनावी योजनाओं से उनका हाल श्रीलंका जैसा हो सकता है?

इसका सीधा उत्तर तो यह है कि आमदनी बढ़ाये बिना अंधाधुंध खर्च करने से किसी भी राज्य का दिवाला निकल सकता है, पर भारतीय राज्यों की दशा अभी इतनी खराब नहीं हुई है और अर्थव्यवस्था भी कुछ ही स्रोतों पर इतनी निर्भर नहीं है कि श्रीलंका जैसा हाल हो सके. 

कुछ राज्यों की स्थिति खतरे के निशान तक जरूर जा पहुंची है, जिनमें पंजाब, राजस्थान, केरल, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश मुख्य हैं. इनके कर्ज निर्धारित सीमा से लगभग दोगुने हो चुके हैं. 

राजस्व विधेयक समीक्षा समिति के अनुसार केंद्र सरकार का कर्ज जीडीपी के 40 प्रतिशत से और राज्यों का कर्ज उनकी जीडीपी के 20 प्रतिशत से ऊपर नहीं जाना चाहिए. 

मुद्रा की साख और ऋणदाताओं का भरोसा कायम रखने के लिए वित्तीय संयम और संतुलन रखना जरूरी होता है. केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. 

रिजर्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्टों के अनुसार केंद्र सरकार का कर्ज जीडीपी के 60 प्रतिशत से ऊपर जा चुका है और राज्य सरकारों का कर्ज जीडीपी के 30 प्रतिशत से ऊपर चल रहा है. इस प्रकार कुल राष्ट्रीय कर्ज जीडीपी  के 90 प्रतिशत से ऊपर है. 

फिर भी, श्रीलंका की तुलना में भारत का कर्ज अब भी काफी कम है कर्ज के बोझ के कारण कर्ज माफ करने, महिलाओं और वृद्धों को पेंशन देने, मुफ्त बिजली देने और सरकारी नौकरियां बढ़ाने जैसी योजनाओं से राज्यों के घाटे और बद सकते हैं. 

इसमें कोई दो राय नहीं कि कोविड और महंगाई की मार से जूझते गरीब लोगों को आर्थिक मदद देने की भी जरूरत है. इसके बिना मांग नहीं बढ़ती और बिना मांग के अर्थव्यवस्था की गति तेज नहीं हो सकती. मांग को शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचा बेहतर कर भी बढ़ाया जा सकता है और मुफ्त योजनाओं में पैसा बांट कर भी. 

उन मदों में पैसा लगाने के लिए बड़ी पूंजी की जरूरत पड़ती है और प्रभाव दिखने में समय लगता है. इसलिए सरकारें लोकलुभावन योजनाएं लाकर वोट बटोरती हैं, जो आसान है, पर ये अर्थव्यवस्था को श्रीलंका की राह पर भी धकेल सकती हैं. 

इसका असली हल टैक्स नीति के सुधार में छिपा है. शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए सरकारों को सेस कर लगा कर पैसा जुटाने के बजाय उन्हें सामाजिक सुरक्षा कर लगाने के बारे में सोचना चाहिए, अमेरिका और यूरोप से लेकर रूस और चीन तक हर देश में बुनियादी मदों का खर्च ऐसे करों से चलता है. 

इसी तरह केंद्र सरकार को परोक्ष करों पर निर्भरता कम करते हुए आयकर और लाभांश कर जैसे करों का दायरा बढ़ाना चाहिए, खर्च पर कर लगा कर उगाहना आसान जरूर है, लेकिन इससे मांग घटती है और अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ती है, जबकि आमदनी पर लगने वाले करों से थों ऐसा कोई दुष्प्रभाव नहीं होता.

श्रीलंका आर्थिक संकट एवं भारत

भारत श्रीलंका के मदद के लिए आगे आया जबकि चीन, जिसके बारे में लगातार विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे थे, ने इस समय श्रीलंका को मदद करने तथा ऋण के शर्तों में ढील देने से इनकार कर दिया।

भारत ने श्रीलंका को उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए क्रेडिट लाइन उपलब्ध कराया है। श्रीलंका में खाद्यान एवं ईंधन संकट को देखते हुए भारत सरकार ने चावल एवं डीजल उपलब्ध कराया है। मानवीय सहायता के दृष्टि से भारत सरकार दवाइयों जैसी सामग्री भी उपलब्ध करवा रही है।

श्रीलंका में संकट गहराने पर भारत में शरणार्थियों की समस्या उत्पन्न हो सकती है। साथ ही भारत को श्रीलंका की मदद करते हुए सतर्क रहने की जरूरत है कि वह सीधा हस्तक्षेप करता हुआ न दिखे। श्रीलंका के विकास हेतु प्रयास किए जाने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहायता का प्रयास किया जाना चाहिए।

अभ्यास प्रश्न

Q. आर्थिक संकट के कारणों का विश्लेषण करें? क्या श्रीलंका चीन की नीतियों  का शिकार हो गया ?

Q. लोक लुभावन वादे लोकतंत्र के लिए घातक होते हैं। इस कथं की विवेचना श्री लंका के हाल के संकट के संदर्भ में करें।

Q. भारत के कुछ राज्यों के द्वारा अपनाए जाने वाले लोक लुभावन कार्यक्रम किस प्रकार श्री लंका से साम्यता रखते हैं तथा क्या  भारत एक संकट की ओर बढ़ रहा है ? टिप्पणी करें।

Q.  लोक वित्त प्रबंधन एक गंभीर विषय है जिसका प्रबंधन सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।  श्री लंका का उदाहरण देते हुए उक्त कथंन का विश्लेषण करें।

 

 

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