बिहार में सिंचाई के साधन : Irrigation facilities in Bihar – Most Important

बिहार में सिंचाई

बिहार में सिंचाई के साधन

बिहार में सिंचाई के साधन प्राकृतिक एवं गैर प्राकृतिक दोनों हैं, बिहार में सिंचाई के साधन के अभाव में बिहार का किसान मानसून के साथ जुआ खेलता है. सिंचाई के साधन की उपलब्धता एवं इसका बेहतर प्रबंधन बेहतर कृषि उपज का आधार होता है जिससे किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है. किसी भी प्रदेश की भौगोलिक विशेषता वहां के सिंचाई व्यवस्था को निर्धारितकरते हैं इसी प्रकार बिहार में सिंचाई के साधन बिहार के  भौगोलिक विशेषताओं के अनुरूप है. सरकारी आकड़ो के अनुसार बिहार में खेती किये गए क्षेत्र में लगभग 63% भूमि पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है.

बिहार में सिंचाई की आवश्यकता :-

बिहार में सिंचाई के साधनों के विकास की आवश्यकता क्यों हैं ? इसे निम्न बिन्दुओं से समझा जा सकता है :-

  • वर्षा की अनिश्चितता-बिहार में किस वर्ष कितनी बारिश होगी यह निश्चित नहीं है, यह प्रत्येक वर्ष बदलता रहता है कभी बारिश कम होती है तो कभ अधिक और कई बार जब देश में बेहतर मानसून की स्थिति होती है ऐसे में बिहार में औसत या औसत से कम बारिश होती है. 
  • वर्षा का असमान वितरण- पुरे बिहार में  वर्षा की  मात्रा एकसमान नहीं होती है. पूर्वी बिहार, उत्तर बिहार का तराई  का क्षेत्र अपेक्षाकृत अधिक मानसूनी वर्षा प्राप्त करता है तो दक्षिण बिहार में बारिश कम होती है, इसलिए सिंचाई के साधन का विकास किया जाना अति आवश्यक है. 
  • वर्षा का मौसमी स्वरुप-  बिहार में वर्षा पुरे वर्ष नहीं होती है. वर्षा की अधिकांश मात्रा सिर्फ मानसून के समय ही होती है जिससे शेष अवधि में सिंचाई के लिए व्यवस्था करना होता है.
  • मिट्टी की प्रकृति- बिहार एक मैदानी प्रदेश है जिसमें दोमट मृदा पाई जाती है, जहाँ बेहतर सिंचाई के द्वारा अच्छी उपज प्राप्त किया जा सकता है. 
  • व्यावसायिक फसलों का उत्पादन- व्यावसायिक फसलों की उत्पादकता में सिंचाई का महत्वपूर्ण स्थान होता है. 
  • जनसंख्या वृद्धि- बढती जनसँख्या के खाद्यान आवश्यकता की पूर्ति के लिए बेहतर कृषि उत्पादन आवश्यक है जो सिंचाई के साधन पर निर्भर करती है. 
  • चारागाह का विकास-पशुपालन का आधार चारागाह की उपलब्धता होता है, वैसे क्षेत्र जहाँ किसी कारण से गहन कृषि नहीं कि जा सकती है  चारागाह का विकास किया जा सकता है विशेषकर पठारी क्षेत्रों में. 

बिहार में सिंचाई व्यवस्था 

  • बिहार में सिंचाई के साधनों में प्रमुख हैं-नहर, नलकूप, तालाब एवं कुआं।
  • बिहार आर्थिक समीक्षा के अनुसार बिहार में नहरों से कुल सिंचित भूमि का 27.47% भाग सिंचित होता है।  नलकूपों द्वारा कुल सिंचित भूमि का लगभग 61.39% तथा तालाब एवं अन्य से 11.14%  भाग सिंचित होता है।
  • सिंचाई के विभिन्न साधनों से लगभग 47.94 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई सुविधाएं  उपलब्ध हैं।

बिहार ने सिंचाई के प्रमुख साधन

नलकूप

  • बिहार में नलकूप के माध्यम से सर्वाधिक सिंचाई किया जाता है,गंगा के मैदान में अवस्थित होने के कारण बिहार में नलकूप लगाना आसान है एवं सरकार भी इसके विकास के लिए सब्सिडी उपलब्ध करवाती है.
  • नलकूप से सिंचाई में डीजल की बढती कीमत एवं पम्प सेट की कम दक्षता दो प्रमुख सीमा हैं
  • विद्युतीकरण एवं सरकारी सब्सिडी ने हाल के दिनों में इलेक्ट्रिक पम्प को अधिक लोकप्रिय बनाया है.
  • बिहार में 3 प्रकारके नलकूप का उपयोग किया जाता है:-
    • डीजल पम्प
    • इलेक्ट्रिक पम्प
    • सोलर पम्प

नहर

गंगा एवं उसकी सहायक नदियों की उपलब्धता एवं इनमे लगभग सालों भर जल की उपलब्धता के कारण बिहार में नहरों का व्यापक विकास हुआ, हालांकि इनमें अधिकांश नहरों का विकास काफी पहले हो चुका है तथा अब नहरों की तुलना में नलकूप को अधिक वरीयता दिया जा रहा है.

बिहार में दो प्रकार की नहरें हैं-

  • सदावाही नहरें: ये नहरें बांधों पर निर्मित कृत्रिम जलाशयों या सतत वाहिनी नदियों से निकाली गई हैं जिनमें निरन्तर जल  प्रवाहित होता रहता है। उत्तर बिहार की  सभी नहरें इस श्रेणी में आती हैं।
  • अनित्यवाही नहरें: ये नहरें सीधी नदियों से निकाली जाती हैं जो वर्षा ऋतु में अधिक जल प्रवाहित करती हैं।
  • बिहार में सबसे प्राचीन सोन नहर है, जिसका 1876-77 में निर्माण पूरा हुआ था। पूर्वी सोन नहर बारून नामक स्थान से सोन नदी से  निकाली गई है तथा यह पटना के निकट  गंगा में विलीन हो जाती है। जबकि पश्चिमी सोन नहर डेहरी  (डालमियानगर) नामक  स्थान से सोन नदी के दक्षिणी ओर से  निकाली गई है।
  • बिहार की दूसरी सबसे प्राचीन नहर त्रिवेणी नहर है, जिसका निर्माण 1904 में पूरा हुआ था। यह नहर भारत-नेपाल सीमा के समीप पश्चिमी चम्पारण जिले के त्रिवेणी नामक  स्थान से गंडक नदी से निकाली गई है।
  • भारत सरकार तथा नेपाल सरकार की सहमति से 1954 में कोसी नदी परियोजना बनाई गई, जो 1965 में बनकर तैयार हुई। इस परियोजना से दो नहरे पूर्वी कोसी नहर और पश्चिमी कोसी नहर हनुमान नगर के निकट बने  बांध से निकाली गई है। पूर्वी कोसी नहर की एक उपशाखा राजपुर नहर है।
  • गंडक नदी पर त्रिवेणी नामक स्थान पर बने बांध के पश्चिम की ओर तिरहुत नहर तथा पूर्व की ओर सारण नहर निकाली गई है।
  • चम्पारण जिले के अंतर्गत गंडक नदी की  सहायक नदियों ललवाकिया एवं तिउर नदियों से क्रमशः ढाका एवं तिउर नहरें निकाली गई हैं।
  • तालाब द्वारा सीवान, भागलपुर, सहरसा,  मुजफ्फरपुर, औरंगाबाद एवं गया जिलों में सिंचाई होती है।
  • पटना, मुंगेर, शाहाबाद, दरभंगा आदि क्षेत्रों में आहर या पाइन द्वारा सिंचाई की जाती है।
  • राष्ट्रीय बाढ़ आयोग द्वारा देश का सर्वाधिक बाढ़ प्रवण क्षेत्र बिहार राज्य ही माना गया है।
  • बिहार में कुल सिंचाई क्षमता 102.64 लाख हेक्टेयर है जिसमें से 53.53 लाख हेक्टेयर बड़ी तथा मध्यम परियोजनाओं से और 48.97 लाख हेक्टेयर छोटी परियोजनाओं से जुटाई जाएंगी।
  • सिंचाई क्षमता को बढ़ाने के क्रम में ओढ़नी जलाशय परियोजना की अपर क्यूल जलाशय योजना को 2001 में पूरा किया गया।

बिहार की प्रमुख बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ निम्न हैं:-

  • कोसी परियोजना
  • गंडक परियोजना
  • सोन परियोजना
  • दुर्गावती जलाशय परियोजना
  • ऊपरी किउल जलाशय परियोजना
  • बागमती परियोजना
  • बरनार जलाशय परियोजना

बिहार में सिंचाई के साधन की समस्या

एक सर्वेक्षण में यह स्पष्ट हुआ है कि बिहार के गंगा के मैदान में टाल एवं दियारा क्षेत्र को छोड़कर खेती किये गए लगभग सभी खेत पर सिंचाई सुविधा उपलब्ध है. बिहार के किसानों तक सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, उन्हें आवश्यकता है किफायती दर पर सिंचाई का उपलब्ध होना।

अधिकांश किसान डीजल नलकूप का उपयोग सिंचाई के लिए करते हैं जो कम दक्ष होने के साथ डीजल की कीमतों के कारन महंगा भी है. एक किसान जो डीजल पम्प का उपयोग करता है उसको बिजलो के सिचाई साधन की तुलना में 3 से 4 गुणा अधिक महंगा पड़ता है।

सिंचाई की उच्च लागत एक कारण है जिससे कि बिहार में कृषि एक उच्च जोखिम, कम आय वाला उद्यम है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि किसानों की स्थिति आकलन सर्वेक्षण 2013 में पाया गया कि भारत के सभी राज्यों में, बिहार में सबसे अधिक प्रतिशत किसान थे जो अपने व्यवसाय से नाखुश थे।

बिहार में तीव्र विद्युतीकरण ने लोगों तक बिजली की उपलब्धता बेहतर किया है जिसका प्रभाव पम्प सेट पर दीखता है. 2014 में प्रदेश में लगभग 48,500 इलेक्ट्रिक पम्प सेट थे जो अब बढ़कर 3 लाख से अधिक हो गया है।

नहरी सिंचाई की अपनी समस्या है जैसे कि वर्ष भर इन नहरों में पानी नहीं रहता है तो दूसरी और बिहार के अधिकांश नहर कच्चे नाहर हैं जिससे नहरों के आस पास का क्षेत्र दलदली क्षेत्र में बदलता जा रहा है। 

हर खेत के लिए सिंचाई योजना

बिहार सरकार ने सात निश्चय पार्ट 2 के तहत प्रत्येक खेत को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. जिसके लिए निम्न काम किये जा रहें हैं:-

  • प्रत्येक खेत को जल उपलब्ध कराने के लिए एक सर्वेक्षण कराया जा रहा है, ताकि क्षेत्र विशेष की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई साधन उपलब्ध कराएँ जाये ।
  • जल संरक्षण कार्यक्रम को प्रोत्साहित किया जा रहा है ।
  • नदियों को जोड़ने की सम्भावना पर भी अध्ययन किया जा रहा है ।
  • किसानों को सस्ती दर पर उनके खेतों की  सिंचाई के लिए कृषि फीडर के माध्यम से बिजली कनेक्शन दिया जा रहा है।
  • बड़ी और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं की मदद से सिंचाई क्षमता वृद्धि पर बल।

 

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