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बिहार की भाषा : Bihar ki bhasha – Important facts

बिहार की भाषा : Bihar ki Bhasha

हालांकि सम्पूर्ण बिहार की संचार भाषा हिन्दी है, लेकिन इसके विभिन्न भागों में भोजपूरी, मैथिली, मगही, अंगिका, वज्जिका, संथाली, मुंडारी आदि बोलियां प्रमुखता से बोली जाती है। इनमे  से मैथिली को संविधान की 8 वीं अनुसूची में शामिल किया गया है। 

सदल मिश्र बिहार के एकमात्र ऐसे अध्यापक थे, जिन्हें फोर्ट विलियम कॉलेज में देशी भाषा में पुस्तक तैयार करने हेतु चुना गया था। सदल मिश्र को बिहार में हिन्दी का पथ प्रशस्त करने वाला अग्रिम व्यक्ति माना जाता है।

स्वतंत्रता के पश्चात हिन्दी को बिहार की राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। वस्तुतः बिहार में एक हिन्दी-उर्दू मिश्रित भाषा शैली बोली जाती है, जिसे ‘बिहारी’ भाषा कहते है।

बिहार की बोलियों के विशेषज्ञ डॉ. जार्ज अब्राहम (गियर्सन) द्वारा भी वर्तमान बिहार की बोलियों को ‘बिहार’ नाम दिया गया है। भाषा परिवार की दृष्टि से बिहार में निम्नलिखित दो भाषा वर्ग की भाषाएं बोली जाती है-

(1) आर्य परिवार की भाषाएं और

(2) मुंडा परिवार की भाषाएं।

(1) आर्य परिवार की भाषाएं
बिहार में आर्य परिवार की भाषाओं को ‘बिहारी भाषा’ का नाम दिया गया है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित तीन भाषाएं प्रमुख हैं-

  • मगधी
  • भोजपुरी और
  • मैथिली।

मगधी भाषा

मगधी भाषा के प्रथम कवि ईशान माने जाते हैं, जिनकी रचनाओं का काल सातवीं शताब्दी माना जाता है। प्राचीन मगध जनपद की प्रमुख भाषा मगधी को वर्तमान में पटना और गया जिलों में प्रमुखता से बोला जाता है।

सिद्ध वंश की प्रारम्भिक रचनाएं भी मगधी भाषा में ही लिखी गई हैं। सर्वाधिक चर्चित मगधी साहित्यकार योगेश्वर सिंह ‘योगेश’ ने मगधी भाषा में एक महाकाव्य गौतम की रचना की है।

सुरेश दूबे को मगधी भाषा का ‘शेली’ कहा जाता है। आधुनिक युग में मगधी भाषा के विकास में लक्ष्मीनारायण पाठक का महत्वपूर्ण योगदान है।

इनके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रमुख मगधी साहित्यकार हैं- हरिहर पाठक, वेदनाथ, बाबा मनिराम, बाबा कदमदास, चतुर्भुज मिश्रा, श्रीधर मिश्रा आदि।

भोजपुरी भाषा

पश्चिमी बिहार एवं उत्तरी बिहार के कुछ क्षेत्रों में भोजपुरी एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भाषा है। बिहार के बक्सर, आरा, रोहतास, सारण, चम्पारण आदि जिलों में शुद्ध भोजपुरी बोली जाती है।

भोजपुरी का विकास सत्रहवीं शताब्दी में धरतीवास एवं दरियादास ने किया था, जबकि आधुनिक युग में बाबू रघुबीर नाथ, महेन्द्र मिश्रा एवं भिखारी ठाकुर ने इस भाषा को नवीन पहचान दी। भिखारी ठाकुर की सबसे प्रसिद्ध कृति ‘विदेसिया’ है।

भोजपुरी भाषा के महाकवि प. केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’ ने ‘कैकेयी’ व ‘ऋतुवंश’ नामक दो प्रसिद्ध महाकाव्यों की रचना की है, जबकि ‘ज्वाला’ उनके द्वारा रचित सशस्त्र क्रांति गीतों का एक संग्रह है।

भोजपुरी भाषा के लोकप्रिय साहित्य ‘फिरंगिया’ और ‘बरोहिया’ के रचयिता क्रमशः मनोरंजन जी और रघुबीर नारायण हैं। मॉरीशस, त्रिनीडाड, टोबैगो, फिजी, गुयाना, सुरीनाम आदि देशों में भी भोजपुरी भाषी लोगों की संख्या काफी अधिक है।

मैथिली भाषा

बिहार की भाषाओं में मैथिली भाषा सबसे उन्नत एवं विकसित है। यह मुख्यतः तिरहुत क्षेत्र के दरभंगा जिले में बोली जाती है। मैथिल ब्राह्मणों और कायस्थों ने मैथिली भाषा के प्रयोग के लिए एक पृथक लिपि का विकास किया है, जिसे मैथिली लिपि कहते हैं।

राजा जनक के काल से ही मैथिली भाषा बोली जाती है। मैथिली भाषा का वर्तमान स्वरूप दसवीं शताब्दी में उदित हुआ तथा इसी समय ज्योतिश्वर ठाकुर ने मैथिली की सबसे पहली रचना ‘वर्ण रत्नाकार’ की रचना की।

मैथिली भाषा में अनेक प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथ भी हैं। महाकवि विद्यापति की मैथिली भाषा का सबसे प्रमुख कवि माना जाता है।  बिहार सीमा से लगे हुए नेपाल के क्षेत्रों में भी मैथिली भाषा बोली जाती है।

(2) मुंडा परिवार की भाषाएं

मुंडा परिवार की भाषाएं आदिम जनजातियों की बोली और मगधी का एक मिश्रित रूप है, जिसे ‘नागपुरिया’ नाम से जाना जाता है। इस परिवार की दो प्रमुख भाषाएं हैं-

  • अंगिका और
  • वज्जिका।

अंगिका भाषा

भागलपुर जिले की मूल भाषा अंगिका वस्तुतः मैथिली भाषा का ही एक परिवर्तित रूप है, अंतः इसे मैथिली की उपभाषा भी कहा जाता है। अंगिका भाषा को भागलपुरी भी कहते हैं। अंगिका भाषा की एक प्राचीन लिपि है जिसमें छठी शताब्दी में ‘ललित विस्तार’ नामक बौद्ध ग्रंथ की रचना हुई है।

अंगिका भाषा भागलपुर एवं मुंगेर में बोली जाती है। डॉ. तेज नारायण कुशवाहा ने अंगिका भाषा का इतिहास लिखकर इसको लोकप्रिय बनाया।

वज्जिका भाषा

इस भाषा का विकास मैथिली भाषा से हुआ है तथा इसे मैथिली की पश्चिमी शैली माना जाता है। वज्जिका भाषा मुख्यतः वैशाली व मुजफ्फरपुर जिलों की भाषा है। इसके अतिरिक्त वज्जिका दरभंगा, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, शिवहर व मधुबनी में भी बोली जाती है।

 

उर्दू भाषा

बिहार में उर्दू भाषा का विकास बारहवीं शताब्दी से प्रारंभ हुआ तथा यह वास्तविक रूप में सत्रहवीं शताब्दी में विकसित हुई। फुलवारी के संत इमादुद्दीन कलंदर ने आमजनों के हित में ‘सिराते मुस्तकीम’ (सीधा रास्ता) की 1685 में रचना की।

इसी काल में लाला उजागर चंद ने ‘उल्फत’ तथा राजा रामनारायण ने ‘मौर्जू’ की रचना की थी। उर्दू भाषा में बिहार के इतिहास पर प्रथम ग्रंथ ‘नक्शे पायदार’ की रचना अली मुहम्मद शाह अजीमाबादी ने की थी।

डॉ. अजीमउद्दीन अहमद ने अंग्रेजी कविता शैली ‘सॉनेट’ का उर्दू भाषा ने सर्वप्रथम प्रयोग किया था। इनकी कविताओं का संकलन ‘गुल-ए-नग्मा’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ।

बिहार में प्रगतिशील उर्दू विचारधारा के प्रसार का श्रेय सुहैल अजीमाबादी को दिया जाता है। जबकि उर्दू साहित्य पर शोध को वैज्ञानिक आधार-प्रदान करने का श्रेय काजी अब्दुल बदीद को प्राप्त है। बिहार के प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार अब्दुल समद के उपन्यास ‘दो गज जमीन’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

 

बिहार के प्रमुख साहित्यकार एवं उनकी प्रमुख कृतियां:-

साहित्यकार कृतियां
चाणक्य अर्थशास्त्र
अश्वघोष महायान श्रद्धोत्पाद संग्रह, बुद्ध चरित, वज्र सूची
आर्यभट्ट आर्यभट्ट तंत्र
मंडन मिश्रा भाव विवेक, विधि विवेक
विद्यापति पदावली, कीर्तिलता, कीर्तिपताका, गौरक्षा विजय, भू-परिक्रमा
दाउद चंद्रायन
ज्योतिरीश्वर ठाकुर वर्ण रत्नाकार, दर्शन रत्नाकार
फणीश्वरनाथ रेणु मैला आंचल, जुलूस, पलटू बाबू रोड, दीर्घतया
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ प्राणभंग, उर्वशी, रेणुका, द्वन्दगीत, हुंकार, रसवंती, चक्रवाल, धूप-छांव, कुरूक्षेत्र, रश्मिरथी, सामधेनी, नील कुसुम, सीपी और शंख, परशुराम की प्रतिज्ञा, हारे को हरिनाम
बाबा नागार्जुन बाबा बटेश्वरनाथ, हजार-हजार बाहों वाली, पारो, कुम्भीपाक, तुमने कहा था, वरूण के बेटे, रतिनाथ की चाची, पुरानी जातियों का कोरस, बलचनमा
देवकीनंदन खन्नी चंद्रकांता संतति, भूतनाथ, काजर की कोठरी, नौलखाहार
राहुल सांकृत्यायन बुद्धचर्य्या, विनय-पिटक, धम्मपद, दर्शन-दिग्दर्शन
शाह अजीमाबादी (बिस्मिल अजीमाबादी) नक्शेपायदार
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इंडिया डिवाइडेड, चम्पारण में सत्याग्रह, बापू के कदमों में
केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’ ज्वाला, कैकयी, ऋतुवंश, शुभ्रा, श्वेत नील, कलापिनी, कम्पन,
शिवसागर मिश्र दूज जनम छायी
रामवृक्ष बेनीपुरी आम्रपालील, माटी की मूरतें, चिंता के फूल, संघमित्रा
वाचस्पति मिश्रा भाष्य भामति, ब्रहमसिद्धि के टीकाकार
डॉ. कुमार विमल मूल्य और मीमांसा, अंगार , छायावादी काव्य का सौंदर्यशास्त्रीय अध्ययन, सौंदर्यशास्त्र के तत्व, कला विवेचन, आलोचना और अनुशीलन, चिंतन मनन और विवेचन, महादेवी का काव्य सौष्ठव
राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह पुरूष और नारी, कुसुमांजलि, अपना पराया, गांधी टोपी, धर्मधुरी, पूरब और पश्चिम,
जानकी बल्लभ शास्त्री संस्कृत– काकली, बंदीमंदिरम लीलापदमम
हिन्दी– रूप-अरूप, कानन, अपर्णा,साहित्यदर्शन, गाथा, तीर-तरंग, शिप्रा, अवन्तिका, मेघगीत, चिंताधारा, प्राच्यसाहित्य, त्रयी, पाषाणी, तमसा, एक किरण सौ झाइयां, मन की बात, हंस बलाका, राधा आदि

 

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