बिहार का प्राचीन इतिहास -1: Most Important fact Ancient History of Bihar

बिहार का प्राचीन इतिहास

बिहार का प्राचीन इतिहास – पार्ट –1

बिहार का प्राचीन इतिहास – पूर्व ऐतिहासिक काल 

# मुंगेरके भीमबांध एवं गया के जेठियनसे आरंभिक पुरापाषाण काल के औजार मिले हैं.

# मुंगेरसे मध्य पाषाण युग (1,00,000 से 40, 000 ई० पू०) के अवशेष प्राप्त हुए हैं। ये औजार छोटे आकार के पत्थर के बने तेज धार एवं नोक वाले हैं.

# चिरांद (सारज जिला) और चेचर (वैशाली जिला) से नवपाषाण युग(2,5,00 ई०पू० से 1,5,00 ई०पू०) के अवशेष मिले हैं।

# चिरांद पूरे देश में हड्डी के उपकरणों के लिय प्रसिद्ध है.

# ताम्रपाषाण काल एवं उसके परिवर्ती चरण के अवशेष चिरांद,चेचर, सोनपुर, गया एवं मनेर से प्रपात हुआ है.

# ब्राह्मण ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि आर्यों के आने के पूर्व बिहार के क्षेत्र में संस्कृति का विकास था.

# ऋग्वेद में बिहार क्षेत्र के लिए कीकट एवं व्रात्य शब्द का प्रयोग हुआ है.

# अथर्ववेद में अंग एवं मगध का उल्लेख मिलता है.

# वाल्मीकि रामायण में मलद एवं करुना शब्द का प्रयोग सम्भवतःबक्सर क्षेत्र के लिए हुआ है.

#वायुपुराण के अनुसार गया में असुरों का शासन था.

बिहार का प्राचीन इतिहास- आर्यों का आगमन

# भारत में लोहे का उपयोग लगभग 1000 ई०पू० से 800 ई०पू० में हुआ और इसी समय आर्यों का बिहार में विस्तार आरम्भ हुआ.

# विदेह माधव की कहानी शतपथ ब्राह्मण में मिलती है जिसमें विदेह माधव सरस्वती के तट पर रहते थे तथा वैश्वानर (अग्नि) को मुख में धारण किए हुए थे। घृत का नाम लेते ही अग्नि मुख से बाहर आ गयी तथा नदियों को जलाती हुई सदानीरा (बिहार की वर्तमान गंडक नदी) के तट पर ठहर गयी। विदेह माधव आदि अग्नि के पीछे-पीछे अपने गुरु गौतम राहुगण के साथ यहां तक आ गए। अग्नि ने सदानीरा के पूर्व विदेह को निवास स्थान बनाया। सदानीरा नदी कोसल और विदेह की सीमा थी।

#  शतपथ ब्राह्मण में विदेह के जनक का उल्लेख सम्राट के सम्राट के रूप मे किया गया है।

# वराह पुराण में कीकट क्षेत्र की चर्चा अपवित्र क्षेत्र जबकि गया की चर्चा पवित्र क्षेत्र के रूप में किया गया है।

बिहार का प्राचीन इतिहास -छठीं शताब्दी ई.पू.

# छठीं शताब्दी ई.पू. के 16 महाजनपदों में से 3 महाजनपदों मगध, वज्जि और अंग का वर्णन अंगुत्तर निकाय (बौद्ध साहित्य) एवं भगवती सूत्र (जैन साहित्य) में मिलता है।

बिहार का प्राचीन इतिहास

विदेह

यजुर्वेद में सबसे पहले विदेह राज्य का उल्लेख मिलता है इस राजवंश की शुरुआत इक्ष्वाकु के पुत्र नीमीविदेह  से मानी जाती है, जो सूर्यवंशी थे। इसी वंश के दूसरे राजा मिथी जनक विदेह ने मिथिला की स्थापना की थी। इस वंश के 25 वें राजा सिरध्वज जनक थे जिनकी पुत्री सीता का विवाह राम से हुआ था। इस वंश के राजाओं में जनक विदेह  अपने विद्वता एवं विद्वानों के संरक्षण के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए।  विदेह अपने दार्शनिक राजाओं के लिए प्रसिद्ध था। इसकी राजधानी मिथिला थी। बृहदारण्यक उपनिषद के अनुसार जनक विदेह  के दरबार में विद्वानों की एक प्रतियोगिता में याज्ञवल्क्य विजय हुए। मगध ने विदेह राज्य को अपने में मिला लिया। 

वैशाली 

मनु के पुत्र नभनेदिष्ट ने वैशालीका अथवा विशाल राजवंश की शुरुआत की, इस वंश के 24 वे राजा विशाल ने वैशाली शहर की स्थापना की।इस वंश  का नटीं शासक सुमति अथवा प्रमिति था। 

अंग

#अथर्ववेद में अंग राज्य का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है,  एक  कथा के अनुसार यहां के शासकों की जांघ  सुंदर होने के कारण इस क्षेत्र का नाम अंग पड़ा। इसकी प्रारंभिक राजधानी मालिनी थी जिसका नाम बाद में चंपा या चंपावती रखा गया।

#चंपा को  हवेनसांग  ने   चेन्नपो कहा है। तीतुक्षी  अंग राज्य का पहला  एवं  कर्ण  अंतिम आर्य राजा था। अंग के राजा दधिवाहन की पुत्री चंदना महावीर से प्रेरित होकर  जैन धर्म को स्वीकार करने वाली प्रथम महिला थी इसी के समय वत्स के राजा ने चंपा पर आक्रमण किया। 

#अंग के शासक द्रधबर्मन ने अपनी पुत्री का विवाह उदयन के साथ किया था। अंग के अंतिम राजा ब्रह्मदत्त के समय मगध के राजा बिंबिसार ने अंग पर आक्रमण कर इसे अपने राज्य में मिला दिया । बौद्ध साहित्य में चंपा को तत्कालीन छह प्रमुख नगरों में माना गया है। 

वज्जी संघ

# गंगा के उत्तर में तिरहुत प्रमंडल में स्थित वज्जी संघ में संभवत: आठ सदस्य थे जिनमें सबसे प्रबल सदस्य लिच्छवी राज्य था। इसकी राजधानी वैशाली थी जिसकी पहचान वसाढ़ नामक गाँव से की गई है।

# कौटिल्य ने लिच्छवी राज्य का उल्लेख ‘राजशब्दोपजीवी संघ’ के रूप में किया है।

# शातृक या ज्ञातृक एक अन्य सदस्य था जिसका प्रमुख सिद्धार्थ थे। कुंडग्राम में सिद्धार्थ के पुत्र महावीर का जन्म 540 ई०पू० में हुआ जो जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर बने। महावीर की माता त्रिशला लिच्छवी राज्य प्रमुख चेटक की बहन थी।

# वज्जी संघ के अन्य सदस्य – उग्र, भोग, ईक्षवाकू, कौरव, विदेह आदि थे। 

# वज्जी संघ का संविधान एवं प्रशासन कुलीनतंत्र की तरह था जिसमें राजाओं की सभा ‘संस्था’ प्रशासन विचार-विमर्श से देखती थी इसमें सभी राजाओं को समान अधिकार था किन्तु बुजुर्गों को विशेष अधिकार प्राप्त था।

# वज्जी संघ के प्रधान चेटक की पुत्री का  विवाह   मगध नरेश अजातशत्रु के साथ हुआ था।

# वज्जी संघ में वैशाली की नगरवधू के पद पर प्रसिद्ध नर्तकी आम्रपाली की नियुक्ति की गई थी जिसका संबंध मगध नरेश बिंबिसार के साथ था तथा इन दोनों का संतान अभय कुमार था। महात्मा बुद्ध ने आम्रपाली के यहाँ भोजन किया था तथा आम्रपाली ने बौद्ध संघ को एक उद्यान समर्पित किया था।

# अजातशत्रु ने वज्जी संघ में फूट डलवाकर मगध में मिला  लिया। 

# जैन ग्रंथ अंगुत्तर निकाय मे इन 16  महाजनपदों की सूची दी गई है जबकि बौद्ध ग्रंथ में भी इनका उल्लेख है। अंग,मगध एवं  लिच्छवी   का संबंध बिहार से था। 

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