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आधुनिक बिहार का इतिहास : महत्वपूर्ण तथ्य
आधुनिक बिहार का इतिहास: यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों की गतिविधियाँ
$ बिहार के क्षेत्र में सर्वप्रथम पूर्तगाली आए थे।
$ बिहार शोरा व्यापार के लिए प्रसिद्ध था, जिसपर डच व्यापारियों का प्रभुत्व था। वर्तमान पटना कालेज की उत्तरी इमारत में 1632 ई. में डच फैक्ट्री स्थापित थी।
$ शोरा के व्यापार से लाभ उठाने के लिए अंग्रेजों ने 1620 ई. में पटना के आलमगंज में अपनी प्रथम फैक्ट्री स्थापित की। तत्कालीन बिहार के सुबेदार ‘मुबारक खान’ ने अंग्रेजों के रहने की व्यवस्था कराई, लेकिन 1621 ई. में यह फैक्ट्री बंद हो गई।
$ 1664 ई. में जाब चार्नाक को पटना फैक्ट्री का प्रधान बनाया गया जो इस पद पर 1680-81 तक बना रहा।
$ 1680 ई. में बिहार के सुबेदार शाइस्ता खां ने अंग्रेजों की कंपनी के व्यापार पर 3.5 % कर लगा दिया था।
$ 1707 ई. में मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही अंग्रेजों की व्यापारिक गतिविधियों में रूकावट आ गई। 1713 ई. में पटना फैक्ट्री को बंद कर दिया गया।
$ 1717 ई. में फर्रूखसियर ने अंग्रेजों को बिहार एवं बंगाल में व्यापार करने की पुनः स्वतंत्रता प्रदान कर दी।
$ 23 जून, 1757 ई. को प्लासी के युद्ध के पश्चात लार्ड क्लाइव ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब नियुक्त किया और उसके पुत्र मीरन को बिहार का उप नवाब नियुक्त किया। लेकिन बिहार में वास्तविक सत्ता बिहार के नायब नाजिम राजा रामनारायण के हाथों में थी।
$ 1760 ई. में अली गौहर ने पटना पर घेरा डाला था, जिसे कैप्टन नाॅक्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने मार भगाया।
$ मुगल सम्राट आलमगीर द्वितीय की मृत्यु के बाद अली गौहर का पटना में अंग्रेजों की फैक्ट्री में राज्याभिषेक किया गया।
$ अंग्रेजों के हस्तक्षेप से मुक्त रहने के उद्देश्य से बंगाल के नवाब मीर कासिम ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से हटाकर मुंगेर में स्थापित की थी।
$ 1764 ई. में बक्सर का युद्ध हुआ। इस युद्ध में बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना को सर हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजों की सेना ने पराजित किया।
$ 1765 ई. में शाह आलम द्वितीय ने बिहार, बंगाल व उड़ीसा के क्षेत्रों में दीवानी (लगान-वसूली) का अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी को प्रदान किया।
ऽ बंगाल एवं बिहार के क्षेत्र में द्वैध शासन 1765 में लागू किया गया। इस समय बिहार का प्रशासन मिर्जा मोहम्मद कजीम खां था तथा उपसुबेदार धीरज नारायण था।
$ 1766 ई. में पटना स्थित अंग्रेजों की फैक्ट्री (व्यापारिक केंद्र) के मुख्य अधिकारी मिडलटन को राजा धीरज नारायण और राजा शिताब राय के साथ एक प्रशासन मंडली का सदस्य नियुक्त किया गया।
$ 1770 ई. में बिहार में शीषण अकाल पड़ा। पटना, भागलपुर और दरभंगा जिलों में अकाल का प्रकोप सबसे अधिक रहा।
$ 1770 ई. में बिहार के लिए पटना में एक लगान परिषद का गठन किया गया। इसका अध्यक्ष जेम्स अलेक्जैंडर था और इसके सदस्य थे- राबर्ट पाल्क एवं जार्ज वैनसिटार्ट।
$ लगान वसूली का कार्य अब लगान परिषद द्वारा देखा जाने लगा, जबकि शिताब राय के अधीन निजामत (सामान्य प्रशासन)के कार्य रहे।
$ 1774 ई. के रेग्यूलेटिंग एक्ट पारित होने के बाद निरीक्षक और बिहार परिषद दोनों को समाप्त कर बिहार के लिए एक प्रांतीय सभा का गठन किया गया।
$ 1790 ई. तक अंग्रेजों ने बिहार में फौजदारी प्रशासन को भी अपने नियंत्रण में ले लिया। पटना के प्रथम अंग्रेज मजिस्ट्रेट के पद पर चाल्र्स फ्रांसिस ग्रांड की नियुक्ति हुई।
आधुनिक बिहार का इतिहास: वहाबी आन्दोलन
$ भारत में वहाबी आंदोलन के प्रवर्तक रायबरेली (उ.प्र.) के सैयद अहमद बरेलवी थे, जो 1821 में पटना आए थे। पटना में सादिकपुर एवं ननमोहिया मोहल्ले के फतह अली एवं इलाही बख्श के परिवार ने उनके विचारों को स्वीकार किया। पटना में ही प्रथम बार इसका एक सांगठनिक आधार तैयार करने का प्रयास किया गया। मोहम्मद हुसैन को खलीफा नियुक्त किया गया। इस प्रकार वहाबी आंदोलन के लिए पटना सदैव एक महत्त्वपूर्ण केंद्र रहा।
$ बिहार में वहाबी आंदोलन का दमन 1863 के अम्बेला अभियान के पश्चात् हुआ। 1865 में पटना में वहाबियों पर राजद्रोह के मुकदमें चलाए गए। बिहार से अहमदुल्लाह, अब्दुर रहीम आदि को आजीवन कारावास की सजा देकर कालापानी (अंडमान द्वीप) भेज दिया गया।
$ वहाबी आंदोलन का बिहार में प्रमुख नेता मौलवी विलायत अली थे। इस आंदोलन के अंतर्गत सैयद अहमद बरेलवी द्वारा पटना में निम्नलिखित चार खलीफा नियुक्त किए गए थे- विलायत अली, इनायत अली, शाह मोहम्मद हुसैन और फरहात हुसैन।
आधुनिक बिहार का इतिहास: आरम्भिक विद्रोह- बिहार में 1857 की क्रांति
$ संथाल विद्रोह के दो प्रमुख नेता चांद और भैरव भागलपुर के समीप युद्ध में शहीद हुए थे।
$ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का प्रारम्भ पटना सिटी में गुरहट्टा मोहल्ले के एक पुस्तक विक्रेता पीर अली के नेतृत्व में 3 जुलाई, 1857 को हुआ। इस विद्रोह में बिहार में अफीम व्यापार का एजेंट लायल अपने सैनिकों सहित मारा गया।
$ कमिश्नर टेलर ने पटना सिटी के विद्रोह का बलपूर्वक दमन किया। पीर अली के घर को पूर्णतः नष्ट कर दिया गया, 17 व्यक्तियों को फांसी की सजा दी गई तथा खाजेकलां थाना के दरोगा को स्थिति की पूर्व सूचना नहीं देने के आरोप में स्थानांतरित कर दिया गया।
$ 25 जुलाई, 1857 को मुजफ्फरपुर में कुछ अंग्रेज अधिकारियों की असंतुष्ट सैनिकों ने हत्या कर दी। इस दिन दानापुर में तीन रेजीमेंटो सातवीं, आठवीं तथा चालीसवीं का सैनिक विद्रोह हुआ। ये रेजीमेंट जगदीशपुर के जमींदार कुंवर सिंह से मिल गई तथा इनके सहयोग से कुंवर सिंह ने आरा नगर की कचहरी और राजकोष पर अधिकार कर लिया।
$ आरा को मुक्त कराने के उद्देश्य से दानापुर से आया कैप्टन डनवर संघर्ष में मारा गया।
$ 2 अगस्त, 1857 ई. को कुंवर सिंह एवं मेजर आयर की सेनाओं के बीच बीबीगंज के निकट भयंकर संघर्ष हुआ, जिसमें कुंवर सिंह के नेतृत्व में विद्रोहियों को आरा छोड़ना पड़ा।
$ दिसम्बर, 1857 में कुंवर सिंह ने रीवा में नाना साहब के साथ मिलकर अंग्रेजों से युद्ध किया। तत्पश्चात् उन्होंने आजमगढ़ (उ.प्र.) में अंग्रेजों को पराजित किया।
$ बलिया (उ.प्र.) के समीप अंग्रेजों के साथ युद्ध में विजयी होने के बाद जगदीशपुर की ओर लौटने के प्रयास में कुंवर सिंह ने 23 अप्रैल, 1858 को कैप्टन ली ग्रांड के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना को बुरी तरह पराजित किया। लेकिन कुंवर सिंह इस युद्ध में घायल हो गए और दो दिन पश्चात उनकी मृत्यु हो गई।
$ कुंवर सिंह के बाद संघर्ष का क्रम उनके भाई अमर सिंह ने आगे बढ़ाया। शाहाबाद क्षेत्र में उनका नियंत्रण बना रहा। नवम्बर, 1858 तक इस क्षेत्र पर अंग्रेजों का अधिकार पुनः स्थापित नहीं हो सका।
$ गया तथा समीपवर्ती क्षेत्रों नवादा, जहानाबाद, राजगीर, अमरथू आदि में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व हैदर अली खां, मेहंदी अली खां, अहमद खां, गुलाम अली खां, हुसैन बख्श खां, हक्कू सिंह, नन्हकू सिंह, फतह सिंह आदि ने किया था।
$ छपरा में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व मोहम्मद हुसैन खां ने किया।
$ बिहार में 1857 ई. के विद्रोह के प्रमुख केंद्र थे-दानापुर, सारण, तिरहुत, चम्पारण, शाहाबाद, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, गया, रोहतास, सहसराम, राजगीर, बिहार शरीफ आदि।
$ 30 जुलाई, 1857 में को ब्रिटिश सरकार ने सारण, तिरहुत, चम्पारण और पटना जिलों में सैनिक शासन लागू किया था।
$ अगस्त, 1857 में भागलपुर में विद्रोह भड़क उठा तथा विद्रोहियों ने गया पहुंचकर वहां कैद 400 लोगों को मुक्त करा दिया। इसके अतिरिक्त टिकरी राज पर भी हमला हुआ और वहां से 10,000 रूपए लूट लिए गए।
आधुनिक बिहार का इतिहास: बंगभंग एवं स्वदेशी आंदोलन
$ बिहार में बंगभंग आंदोलन के दौरान 16 अक्टुबर, 1905 को सतीशचंद्र चक्रवर्ती की प्रेरणा से राखी बंधन दिवस मनाया गया।
$ बिहार में तरूण स्वदेशी आंदोलन से प्रभावित होकर 1906 में बिहारी स्टुडेंट कांफ्रेस की स्थापना की गई थी।
आधुनिक बिहार का इतिहास: क्रांतिकारी आन्दोलन
$ 1906-07 में बाबाजी ठाकुरदास ने पटना में रामकृष्ण सोसाइटी की स्थापना की तथा क्रांतिकारी विचारों के प्रचार के लिए ‘द मदरलैंड’ पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया।
$ 30 अप्रैल, 1908 को मुजफ्फरपुर के प्रमुख वकील प्रिंग्ले केनेडी की गाड़ी पर खुदीराम बोस तथा प्रफुल्ल चाकी द्वारा जज डी.एच. किंग्सफोर्ड की हत्या के उद्देश्य से बम फेंका गया। इसमें श्रीमती केनेडी तथा उनकी पुत्री की मृत्यु हो गई।
$ प्रफुल्ल चंद चाकी ने 2 मई, 1908 को आत्महत्या कर ली।
$ खुदी राम बोस पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी दे दी गई। इस मुकदमें में कालीदास बसु बोस के वकील थे।
$ 1907 में शांति नारायण ने ‘स्वराज’ नामक एक समाचार पत्र निकाला जिसमें मुजफ्फरपुर बम कांड का जिक्र था और इसके लिए शांति नारायण को लंबी कैद हुई।
आधुनिक बिहार का इतिहास: अलग प्रान्त में सृजन
$ 1906 में सच्चिदानंद और महेश नारायण के द्वारा पृथक बिहार की मांग के समर्थन में एक पुस्तिका प्रस्तुत की गई।
$ राजेंद्र प्रसाद के द्वारा 1906 ई. में पटना में बिहारी छात्र सम्मेलन का आयोजन हुआ तथा ‘बिहार स्टूडेण्ट्स कान्फ्रेंस’ गठित की गई।
$ बिहार प्रादेशिक सम्मेलन का प्रथम अधिवेशन पटना में 1908 ई. सम्पन्न हुआ। इस अधिवेशन में मोहम्मद फखरूद्दीन ने बिहार को बंगाल से पृथक कर एक नए प्रांत के रूप में संगठित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से मान लिया गया।
$ 12 दिसम्बर, 1911 को दिल्ली में आयोजित शाही दरबार में बिहार और उड़ीसा के क्षेत्रों को बंगाल से पृथक कर एक नए प्रांत में संगठित करने की घोषणा साम्राज्ञी द्वारा की गई। नया प्रांत 1 अप्रैल, 1912 को विधिवत स्थापित हो गया।
आधुनिक बिहार का इतिहास: स्वतंत्रता आन्दोलन
$ 1908 ई. में नवाब सरफराज हुसैन खां की अध्यक्षता में बिहार में कांग्रेसियों की एक सभा का आयोजन हुआ। इसमें बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ तथा इसका प्रथम अध्यक्ष हसन इमाम को बनाया गया। इसके कोषाध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा थे।
ऽ बाबू दीपनारायण सिंह के प्रयत्नों से बिहार कांग्रेस कमेंटी का दूसरा सम्मेलन भागलपुर में सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में 1909 में सम्पन्न हुआ।
$ 1912 ई. में पटना में कांग्रेस का 27वां सम्मेलन आयोजित हुआ। इसके अध्यक्ष आर.एन.मुधोलकर थे, जबकि महामंत्री सच्चिदानंद सिन्हा और स्वागत समिति के अध्यक्ष मजहरूल हक थे।
ऽ बिहार से मजहरूल हक और सच्चिदानंद सिन्हा 1914 में कांग्रेस द्वारा ब्रिटेन भेजे जाने वाले शिष्टमंडल के सदस्य चुने गए थे।
ऽ सर शंकरण नायर द्वारा केन्द्रीय विधायिका परिषद में पटना विश्वविद्यालय विधेयक 1916 में प्रस्तुत किया गया था।
$ 1916 ई. में पटना उच्च न्यायालय तथा 1917 ई. में पटना विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।
$ 1918 में अंग्रेज सरकार ने मुजफ्फरपुर के रत्नाकर प्रेस से मुद्रित पुस्तक ‘मां की पुकार’ तथा 12 जुलाई, 1919 को प्रकाशित कविता ‘खूनी कफन’ जब्त कर ली थी।
$ 16 दिसम्बर, 1916 ई. को बांकीपुर (पटना) की सभा में बिहार में पहली होमरूल लीग की स्थापना हुई थी, इसके अध्यक्ष मजहरूल हक, उपाध्यक्ष सरफराज हुसैन तथा मंत्री चंद्रवंशी सहाय थे।
$ श्रीमती एनी बेसेंट ने होमरूल लीग के कार्यकलापों के सिलसिले में दो बार (18 अप्रैल, 1918 तथा 25 जुलाई, 1918) पटना का दौरा किया।
आधुनिक बिहार का इतिहास: बिहार में चंपारण आन्दोलन
$ कर्नल हिक्की ने बारा में 1813 में नील की कोठी खोली थी जो बाद में अन्य जगहों पर भी खोली गई।
$ यूरोपीय निलहे उत्तर बिहार में दो प्रकार से नील की खेती करते थे- जीरात एवं आसामीबार।
$ जीरात के अंतर्गत अंग्रेज अपनी देख-रेख में हल-बैल की सहायता से नील की खेती कराते थे।
$ नील की आसामीवार खेती के तीन तरीके थे- कुरतौली, खुश्की और तीनकठिया। कुरतौली में आसामी का खेत व घर दीर्घकाल के लिए बंधक रखा जाता था। खुश्की में कोटी की रैयत न होने वालों के साथ पट्टा किया जाता था। तीनकठिया में आसामी अपने खेत में प्रति बीघा तीन कठ्ठे के हिसाब से नील की खेती करता था।
$ कुरतौली पद्धति में किसानों का सबसे अधिक शोषण होता था।
$ हिन्दु पैट्रियाट के संपादक हरीशचंद्र मुकर्जी ने किसानों का पक्ष लिया जिसका बिहार, बंगाल के किसानों पर व्यापक प्रभाव पड़ा।
$ दीन बंधु मित्र ने अपने बंगला नाटक नील दर्पण में नील उत्पादन की शोषणकारी व्यवस्था का 1860 में सजीव चित्रण किया।
$ 1916 में लखनऊ में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 31वें अधिवेशन में बिहार से संबंधित दो प्रस्तावों को प्रस्तुत किया गया- (1) पटना विश्वविद्यालय विधेयक (2) चम्पारण के किसानों से संबंधित प्रस्ताव।
$ दिसम्बर, 1916 ई. के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में बिहार के राजकुमार शुक्ल ने महात्मा गांधी को चम्पारण आने का निमंत्रण दिया।
$ 1916 ई. के कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में ब्रज किशोर प्रसाद ने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसमें इन समस्याओं के निदान के लिए एक समिति के गठन की बात कही गई थी।
$ अप्रैल, 1917 ई. में महात्मा गांधी पटना और मुजफ्फरपुर होते हुए चम्पारण पहुंचे।
$ गांधीजी चम्पारण आए और 1917 में उन्होंने सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग किया। चम्पारण सत्याग्रह तीन कठिया नील व्यवस्था के विरूद्ध था।
$ चम्पारण के जिला मजिस्ट्रेट डब्ल्यू.बी. हाडकाक ने 16 अप्रैल, 1917 को गांधी को चम्पारण छोड़ देने का आदेश दिया था।
$ बिहार के उपराज्यपाल एडवर्ड गेट ने गांधीजी को वार्ता के लिए बुलाया और किसानों की समस्या की जांच के लिए एक समिति के गठन का प्रस्ताव रखा जो ‘चम्पारण एग्रेरेरियन समिति’ कहलाई। महात्मा गाँधी भी इस समिति के सदस्य थे। इस समिति के अध्यक्ष एफ.जी. स्लाई थे।
$ चम्पारण आंदोलन में महात्मा गांधी के अन्य सहयोगी थे- राजेंद्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद, धरणीधर, अनुग्रह नारायण सिंह, महादेव देसाई, नरहरि पारिख, जे. बी. कृपलानी आदि थे।
$ जून, 1919 ई. में मधुबनी जिले के किसानों को स्वामी विद्यानंद (विशुभरण) ने दरभंगा राज के विरूद्ध संगठित किया। लगान गुमाश्तों के अत्याचार का विरोध तथा जंगल से फल एवं लकड़ी प्राप्त करने के अधिकार की प्रस्तुति इस आंदोलन की विशेषता थी।
आधुनिक बिहार का इतिहास: खिलाफत आन्दोलन
$ प्रथम विश्व युद्ध आरंभ होने पर कुछ भारतीय मुसलमानों ने तुर्की की ओर से अंग्रेजों विरूद्ध युद्ध में भाग लेने की योजना भी बनाई थी। इस योजना में बिहार के कुछ मुस्लिम भी शामिल थे, जिसमें वहाबी नेता मौलवी अब्दुल रहीम प्रमुख थे।
$ प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर 16 फरवरी, 1919 को पटना में हसन इमाम की अध्यक्षता में एक सभा हुई, जिसमें खलीफा के प्रति मित्र देशों द्वारा उचित व्यवहार के लिए लोकमत बनाने की बात कही गई।
$ अप्रैल, 1919 में खिलाफत आंदोलन के प्रमुख नेता मौलाना शौकत अली पटना आए।
$ खिलाफत दिवस 1 अगस्त 1920 के अवसर पर बिहार में नुरूल हसन ने प्रांतीय विधान परिषद की सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया। मुंगेर के वकील मोहम्मद जुबैर ने अपनी वकालत छोड़ दी।
आधुनिक बिहार का इतिहास: असहयोग आन्दोलन
$ बिहार प्रातीय सम्मेलन के 12वें अधिवेशन की अध्यक्षता राजेन्द्र प्रसाद ने की तथा असहयोग पर बल दिया।
$ असहयोग संबंधी प्रस्ताव दरभंगा के धरणीधर ने प्रस्तुत किया।
$ बिहार में असहयोग आंदोलन के नेता डा0 राजेन्द्र प्रसाद थे।
$ 15-16 मई, 1919 को फुलवारी शरीफ (पटना) में मुस्लिम उलेमाओं का सम्मेलन हुआ, जिसमें सरकार से असहयोग का प्रस्ताव पारित हुआ।
$ बिहार राष्ट्रीय महाविद्यालय की स्थापना 5 जनवरी, 1921 ई. को हुई, जबकि इसका उद्घाटन महात्मा गांधी ने 6 फरवरी, 1921 ई. को किया। इसी दिन ही बिहार विद्यापीठ का भी उद्घाटन हुआ।
$ राष्ट्रीय महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ राजेन्द्र प्रसाद थे, जबकि विद्यापीठ के कुलाधिपति मजहरूल हक और कुलपति ब्रजकिशोर प्रसाद बने।
$ असहयोग आंदोलन के क्रम में मजहरूल हक, राजेंद्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद, मोहम्मद शफी आदि नेताओं ने विधायिका के चुनाव से अपनी उम्मीदवारी वापस ली थी।
$ 1920 के मध्य में शाहाबाद के डुमरांव में नशाबंदी आंदोलन चलाया गया।
$ भागलपुर में शराबबंदी आंदोलन शुरू किया गया था।
$ मजहरूल हक ने दीघा (पटना) के पास अपने मित्र खैरू मियां की जमीन पर सदाकत आश्रम का निर्माण किया। यह स्थान बिहार में राष्ट्रीय आंदोलन का मुख्यालय बना तथा कालांतर में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का कार्यालय बना।
$ 30 सितम्बर, 1921 को मजहरूल हक ने सदाकत आश्रम से ‘दि मदरलैंड’ नामक एक अखबार प्रकाशित करना आरंभ किया जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय भावना का प्रसार, असहयोग कार्यक्रम का प्रचार और हिंदू-मुस्लिम एकता का उपदेश देना था।
$ 1919 के एक्ट के प्रावधानों के अनुरूप सत्येद्र प्रसाद सिन्हा बिहार के गवर्नर बने। इस पद पर वह पहले भारतीय थे।
$ 1922 ई. में देशबन्धु चितरंजन दास की अध्यक्षता में कांग्रेस का 37वां अधिवेशन बिहार के गया में हुआ।
$ फरवरी, 1923 में बिहार में स्वराज्य दल का गठन हुआ। बिहार में इसके नेता अनुग्रह नारायण सिंह थे।
$ बिहार में स्वराज पार्टी को 12 में से 8 सीटें मिली।
$ 27 नवम्बर, 1921 को बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा बिहार कौमी सेवक दल का गठन किया गया। इसका मुख्यालय मुजफ्फरपुर में था।
$ भागलपुर झंडा कांड- फरवरी 1922
$ गांधी जी की एक बार पुनः बिहार यात्रा 1925 में हुई। इस दौरान उन्होंने जीरादेई को तीर्थ स्थान की संज्ञा दी। दरभंगा को आधुनिक तीर्थ स्थान कहा।
आधुनिक बिहार का इतिहास: कृषक आन्दोलन
$ मुंगेर में 1922-23 में किसान सभा का गठन शाह मोहम्मद जुबैर और श्री कृष्ण सिंह द्वारा किया गया।
$ स्वामी सहजानंद सरस्वती ने भूमिहार ब्राह्मणों को संगठित करने हेतु पटना के समीप बिहटा में आश्रम की स्थापना की थी।
$ 1929 ई. में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने बिहार प्रांतीय किसान सभा की स्थापना सोनपुर में की थी। इसके सचिव श्री कृष्ण सिंह थे।
$ इसे बिहार के गांवों में फैलाने में उन्हें कार्यानंद शर्मा, राहुल सांकृत्यान, पंचानन शर्मा, यदुनंदन शर्मा आदि वामपंथी नेताओं का सहयोग मिला।
$ दरभंगा में किसान आंदोलन के नेता कार्यानंद थे।
$ बिहार प्रांतीय किसान सभा का दूसरा सम्मेलन गया में आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता पुरूषोत्तम दास टंडन ने किया।
$ 1933 ई. में स्वामी सहजानंद द्वारा बिहार प्रांतीय किसान सभा के आंदोलन को पुनः सक्रिय किया गया। अपने तीसरे हाजीपुर सम्मेलन में इस सभा ने एक जुझारू कार्यक्रम स्वीकार किया था तथा जमींदारी प्रथा हटाने का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ।
$ मुंगेर जिला के बड़हिया में कार्यानन्द शर्मा ने किसान आंदोलन चलाया।
$ 1936 ई. में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ। इसके अध्यक्ष स्वामी सहजानंद सरस्वती और महासचिव प्रोफेसर एन.जी. रंगा थे।
$ 1935 ई. में बिहार प्रांतीय किसान सभा ने जमींदारी उन्मूलन का प्रस्ताव पारित किया था।
$ नवम्बर, 1936 में कार्यानंद शर्मा के नेतृत्व में मुंगेर जिले के ‘बड़हिया ताल’ में बिहार प्रांतीय किसान सभा ने जमींदारी उत्पीड़न के विरूद्ध संघर्ष किया था।
$ दरभंगा के क्षेत्रों में व सारण के किसानों का नेतृत्व यमुना काय्र्यी ने किया था, जबकि अन्नवारी क्षेत्र में किसानों के नेता राहुल सांकृत्यान थे।
आधुनिक बिहार का इतिहास: साइमन कमीशन का विरोध
$ बिहार में साइमन कमीशन के आगमन का विरोध करने वालों में सर अली इमाम एवं सच्चिदानंद प्रमुख नेता थे।
$ बिहार में वर्ष 1929 में विदेशी वस्त्र बहिष्कार आंदोलन के प्रमुख नेता डा0 राजेन्द्र प्रसाद थे।
$ 10 अगस्त, 1929 को बिहार में राजनैतिक पीड़ित दिवस मनाया गया।
$ 28वां बिहार प्रांतीय सम्मेलन 1929 में मुंगेर में आयोजित किया गया जिसमें बल्लभ भाई पटेल सम्मिलित हुए।
$ बिहार युवक संघ की स्थापना 1928 में की गई। इसकी स्थापना बिहारी छात्र सम्मेलन (मोतिहारी) में की गई। इस सम्मेलन की अध्यक्षता प्रजापति मिश्र ने की तथा 14 अप्रैल को प्रथम नौजवान दिवस मनाने की घोषणा की गई।
आधुनिक बिहार का इतिहास: सविनय अवज्ञा आंदोलन
$ बिहार में 6 अप्रैल, 1930 ई. को नमक सत्याग्रह शुरू करने की तिथि निश्चित की गई तथा राजेंद्र प्रसाद ने आंदोलन की रूपरेखा तैयार की। सर्वप्रथम चम्पारण एवं सारण में नमक सत्याग्रह की शुरूआत हुई।
$ आधुनिक बिहार के सारण जिले के बेरजा, गोरिया कोठी एवं हाजीपुर में क्रमशः 6,7 एवं 8 अप्रैल को नमक सत्याग्रह आरम्भ हुआ।
$ मुजफ्फरपुर में 7 अप्रैल को तथा चम्पारण जिले के कई स्थानों पर 15 अप्रैल को नमक कानून भंग हुआ। मुजफ्फरपुर में नमक सत्याग्रह के नेता थे रामदयालु सिंह थे।
$ पटना में 16 अप्रैल, 1930 ई. को नमक सत्याग्रह शुरू हुआ तथा नखसपिंड नामक स्थान नमक कानून भंग करने के लिए चुना गया।
$ पटना में अंबिका कांत सिंह ने सत्याग्रहियों के जत्थे का नेतृत्व किया। इस आंदोलन में रामवृक्ष बेनीपुरी को भी गिरफ्तार किया गया था।
$ दरभंगा में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व सत्य नारायण सिंह ने किया।
$ मुंगेर में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व श्री कृष्ण सिंह ने किया।
$ सविनय अवज्ञा आंदोलन के कार्यक्रमों के तहत मई, 1930 ई. में पटना में एक स्वदेशी संघ की स्थापना हुई जिसके अध्यक्ष सर अली ईमाम थे।
$ इस आंदोलन के प्रभाव में छपरा जेल के कैदियों ने स्वदेशी वस्त्र की मांग की एवं उसके उपलब्ध न कराए जाने पर नंगे रहने का निश्चय किया। इसे ‘नंगी हड़ताल’ के नाम से जाना जाता है।
$ बिहार में पटना में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का आयोजन 1929 में किया गया
$ पटना में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का नेतृत्व श्रीमति हसन इमाम तथा विन्ध्यवासिनी देवी ने किया।
$ बिहार में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान भागलपुर जिला में वीहपुर सत्याग्रह का आयोजन किया गया जिसके नेता डा0 राजेन्द्र प्रसाद थे।
$ सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान बिहार में चैकीदारी कर का भुगतान करने से किसानों ने मना कर दिया। चैकीदारी कर के विरूद्ध अभियान चलाया गया जिसमें चम्पारण जिला अग्रणी था।
$ बिहार में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान बिहार सत्याग्रह समाचार के विरूद्ध कार्रवाई की गयी।
$ युवक, सर्चलाइट प्रेस, पटना द्वारा प्रकाशित होता था जिसके सम्पादक रामवृक्ष बेनीपुरी थे।
$ 30 जून 1930 को राजेन्द्र प्रसाद की गिरफ्तारी हुई और उन्हें हजारीबाग जेल में रखा गया। इसके पश्चात डा0 राजेन्द्र प्रसाद ने दीपनारायण सिंह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
$ 1931 ई. में गंगाशरण सिन्हा, रामवृक्ष बेनीपुरी और रामानंद मिश्रा आदि ने बिहार सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया।
$ बिहार में अष्पृश्यता निवारण हेतु 1932 में बिहार प्रांतीय बोर्ड की स्थापना की गई।
$ 1934 ई. में पटना के अंजुमन इस्लामिया हॉल में बिहार सोशलिस्ट पार्टी की औपचारिक स्थापना हुई। इसके अध्यक्ष आचार्य नरेन्द्र देव और सचिव जयप्रकाश नारायण थे।
$ बिहार सोशलिस्ट पार्टी के अन्य सदस्य थे- रामवृक्ष बेनीपुरी, गंगाशरण सिन्हा, योगेन्द्र शुक्ल, अब्दुल बारी, कर्पूरी ठाकुर, बसावन सिंह आदि। इस संगठन का तालमेल कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से था।
$ भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत 1937 ई. के चुनावों में कांग्रेस को बिहार में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ। कुल 152 स्थानों में 107 पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा और 98 स्थानों पर उसे विजय प्राप्त हुई।
$ 24 मार्च, 1937 को बिहार के तात्कालिक राज्यपाल एम.जी. हैलेट ने कांग्रेस विधायिका दल के नेता श्रीकृष्ण सिंह को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया, लेकिन राज्यपाल यह आश्वासन देने को तैयार नहीं थे कि मंत्रियों के वैधानिक कार्यों में वे हस्तक्षेप नहीं करेंगे। अतः श्रीकृष्ण सिंह ने सरकार बनाने से इंकार कर दिया।
$ 1 अप्रैल, 1937 को इंडिपेंडेंट पार्टी के सदस्य मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में पहला भारतीय अंतरिम मंत्रिमंडल बिहार में संगठित हुआ। इस प्रकार मोहम्मद यूनुस बिहार के प्रथम भारतीय प्रधानमंत्री (उस समय प्रांतीय सरकार के प्रधान को प्रधानमंत्री कहा जाता था) बने।
$ 7 जुलाई, 1937 ई. को कांग्रेस कार्यकारिणी ने सरकारों के गठन का फैसला किया।
$ अतः मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने त्यागपत्र दिया और 20 जुलाई, 1937 ई. को श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बिहार में प्रथम कांग्रेस का मंत्रिमंडल संगठित हुआ।
$ श्री रामदयालु सिंह एवं प्रोफेसर अब्दुल बारी बिहार विधानसभा के क्रमशः अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए।
$ अक्टूबर, 1937 ई. में मोहम्मद अली जिन्ना ने बिहार की यात्रा की थी।
$ 15 फरवरी, 1938 ई. को राजनीतिक कैदियों की रिहाई के मामले पर श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल ने त्यागपत्र दे दिया।
$ 26 दिसम्बर, 1938 ई. को पटना में मुस्लिम लीग का 26वां अधिवेशन सम्पन्न हुआ था। जबकि 29 दिसम्बर, 1938 ई. को अखिल भारतीय मुसलमान छात्र सम्मेलन भी आयोजित हुआ।
आधुनिक बिहार का इतिहास: भारत छोड़ो आंदोलन
$ भारत छोड़ो आंदोलन के समय बिहार में बिहार प्रांतीय युद्ध समिति का गठन किया गया।
$ भारत छोड़ो आंदोलन के समय श्री बलदेव सहाय ने सरकार के विरोध में महाधिवक्ता पद से त्याग पत्र दे दिया।
$ बिहार में भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व डा0 राजेन्द्र प्रसाद, फूलन प्रसाद वर्मा, अनुग्रह नारायण सिंह तथा मथुरा बाबु थे।
$ पटना में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पटना में महिलाओं का नेतृत्व डा. राजेन्द्र प्रसाद की बहन श्रीमति भगवती देवी ने किया।
$ 11 अगस्त, 1942 को विद्यार्थियों के एक जुलूस ने सचिवालय भवन के सामने पूर्वी गेट पर राष्ट्रीय झंडा फहरा दिया तथा आगे बढ़ने की कोशिश की(सचिवालय गोलीकांड) ।
$ पटना के जिलाधीश डब्लू.जी. आर्चर के आदेश पर पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें सात छात्र मारे गए। ये सात छात्र थे- उमाकान्त प्रसाद सिंह, रामानंद सिंह, राजेंद्र सिंह, रामगोविंद सिंह, सतीश प्रसाद झा, जगपति कुमार और देवीपद चैधरी।
$ स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सचिवालय गोलीकांड के स्थान पर स्वतंत्रता दिवस के दिन बिहार के प्रथम राज्यपाल जयरामदास दौलतराम ने एक शहीद स्मारक का शिलान्यास किया।
$ इसका अनौपचारिक अनावरण देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने 1956 में किया।
$ 1942 ई. में भागलपुर में एक राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की गई।
$ 1942 ई. के भारत छोड़ो आंदोलन में सारण को अपराधी जिला घोषित किया गया था।
$ 18 अगस्त एवं 30 अगस्त, 1942 को मुंगेर जिले के पसराहा एवं रूइहार में दुर्घटनाग्रस्त होकर गिरने वाले शाही वायुसेना के विमान के कर्मचारियों की हत्या कर दी गई।
$ पटना के समीपवर्ती क्षेत्र मुंगेर व भागलपुर में भारत छोड़ो आंदोलन के दमन हेतु वायुयानों का प्रयोग किया गया था।
$ 1942 ई. के किसान आंदोलनों में सोशलिस्ट पार्टी के जयप्रकाश नारायण एवं रामवृक्ष बेनीपुरी की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
$ 9 नवम्बर, 1942 ई. में दीपावली की रात्रि में जयप्रकाश नारायण, रामानंद मिश्र, योगेन्द्र शुक्ल, सूरज नारायण सिंह आदि ने हजारीबाग जेल की दीवार फांदकर भागलने में सफलता प्राप्त की।
$ 1942 ई. में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में नेपाल में युवकों को छापामार युद्ध की शिक्षा देने हेतु एक केंद्र ‘आजाद दस्ता’ को संगठित किया गया। नेपाल में ही ‘आजाद दस्ता’ का अखिल भारतीय केंद्र स्थापित किया गया, जबकि बिहार में प्रांतीय कार्यालय संगठित हुआ।
$ मार्च-अप्रैल, 1943 ई. में नेपाल में राजविलास जंगल में ‘आजाद दस्ता’ का पहला प्रशिक्षण शिविर गठित हुआ, जिसमें बिहार के 25 युवकों को अग्नि-अस्त्रों को चलाने की शिक्षा दी गई। इसके निर्देशक सरदार नित्यानंद सिंह थे।
$ सीवान थाने पर राष्ट्रीय झंडा लहराने की कोशिश में फुलेना प्रसाद श्रीवास्तव पुलिस की गोलियों का शिकार हुए। जबकि गया के कुर्था थाने पर झंडा लहराने की कोशिश में श्याम बिहारी लाल मारे गए।
$ इसी प्रयास में कटिहार थाने और डुमरांव में पुलिस ने क्रमशः ध्रुव कुमार और कपिल मुनी को गोली मार दी।
$ भारत छोड़ो आंदोलन के क्रम में दरभंगा में कुलानंद वैदिक और सिधवारा में कर्पूरी ठाकुर ने संचार व्यवस्था को ठप करने का कार्य किया।
$ बिहार में क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में सियाराम सिंह के नेतृत्व में ‘सियाराम दल’ ने उल्लेखनीय योगदान दिया। इस दल का प्रभाव भागलपुर, मुंगेर, किशनगंज, बलिया, सुल्तानगंज आदि में था।
$ सरकार द्वारा प्रचारित पटना डेली न्यूज नामक समाचार पत्र बिहार में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान प्रकाशित होता रहा।
आधुनिक बिहार का इतिहास: भारत छोड़ो आंदोलन के समय गुप्त गतिविधियां
$ गुप्त गतिविधियों के संचालन में बिहार में जयप्रकाश नारायण अग्रणी थे। इन्हें हजारीबाग जेल में रखा गया था।
$ जयप्रकाश नारायण ने इस दौरान एक शिविर स्थापित किया जो बाद में आजाद दस्ता कहलाया। इसका कार्य था छापामार युद्ध का प्रशिक्षण देना।
$ इस संगठन के अंतर्गत राम मनोहर लोहिया संचार एवं प्रचार विभाग का निर्देशन करते थे।
$ आजाद दस्ता के मुख्य प्रशिक्षक थे-सरदार नित्यानंद सिंह थे।
$ 1943 में नेपाल सरकार ने जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया आदि को गिरफ्तार कर हनुमान नगर जेल में रखा। जिन्हें उनके सहयोगियों सुरज नारायण सिंह और सरदार नित्यानंद सिंह ने छुड़ा लिया।
$ बिहार में सिंयाराम सिंह के नेतृत्व में सियाराम दल का गठन किया गया।
$ इस दल ने बीहपुर में समांतर सरकार की स्थापना की।
$ भागलपुर इलाके में इस दौरान परशुराम दल और महेन्द्र गोप दल का भी गठन किया गया था। स्वराज ट्रेन भी इसी दौरान प्रसिद्ध हुआ।
$ पटना के सरस्वती प्रेस को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बंद करवा दिया गया।
$ 15 जून, 1944 को बिहार में गांधी दिवस के रूप में मनाया गया।
$ 9 दिसम्बर, 1946 को स्वतंत्र भारत का संविधान बनाने के लिए संविधान सभा का सत्र बिहार के डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में आरंभ हुआ। बाद में संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष के रूप में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को नियुक्त किया गया।
$ बिहार के प्रथम राज्यपाल जयरामदास दौलतराम और प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने 15 अगस्त, 1947 को पदभार ग्रहण किया।
$ 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान लागू होने के साथ बिहार भारतीय संघ के एक राज्य में परिवर्तित हो गया और उसकी शासनविधि भी निर्धारित हो गई।
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