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बिहार की मिट्टियाँ- महत्वपूर्ण तथ्य / Soils of Bihar- Important Facts
बिहार की मिट्टियाँ (Soils of Bihar)
मिट्टी भूपृष्ठ की सबसे उपरी सतह है, जिसका निर्माण भूपृष्ठ की मूल चट्टानों के टूटने-फूटने, चूर होने तथा उसमे भौतिक, रासायनिक एवं जैविक परिवर्तनों से होता है। मिट्टी के निर्माण में सतही चट्टानें, जलवायु एवं भ्वाकृतिक प्रक्रम का योगदान होता है। मृदा की उत्पादकता उसकी भौतिक गुणों के कारण होता है। जिस मिट्टी में चूना का अंश अधिक रहता है उसे पेडोकल्स कहतें हैं और जिस मिट्टी में लोहा और एल्युमीनियम का अंश अधिक रहता है उसे पेलफ़ार्स कहतें हैं।
- निर्माण प्रक्रिया की दृष्टि से बिहार की मिट्टियों की मुख्यतः दो प्रधान कोटियां-अपोढ़ मिट्टी एवं अवशिष्ट मिट्टी पाई जाती है।
- गंगा के उत्तरी मैदान में अपोढ़ मिट्टी का बाहुल्य है, जिसका निर्माण स्थाई चट्टानों के तलछट से हुआ है।
बिहार सरकार के कृषि अनुसन्धान विभाग ने बिहार की मिट्टियों को तीन मुख्य वर्गों में बांटा है-
- उत्तरी बिहार के मैदान की मिट्टियाँ
- दक्षिणी बिहार के मैदान की मिट्टियाँ
- दक्षिण पठार की मिट्टियाँ।
उत्तरी बिहार के मैदान की मिट्टियाँ :–
इस मैदान में मुख्यतः अपोढ़ या जलोढ़ मिट्टी का विस्तार है जिसका निर्माण इस क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली नदियों के निक्षेपण से हुआ है। इन मिट्टियों को निम्नलिखित उपवर्गों में विभाजित किया जा सकता है:-
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- उप-हिमालय की पर्वतपदीय मिट्टियाँ- पश्चिमोत्तर के पर्वतीय क्षेत्र में मिलता है।इसका रंग गहरा भूरा या पीला होता है जिसका गठन हल्का होता है।
- तराई मिट्टी- यह मिट्टी तराई क्षेत्र में उत्तरी सीमा के सहारे पश्चिमी चंपारण से लेकर किशनगंज तक 3 से 8 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में विस्तृत है। इसमें पर्याप्त नमी रहता है, इसमें चूना की पर्याप्त मात्रा होती है।
- बांगर मिट्टी- यह पुरानी जलोढ़ मृदा है जो अपेक्षाकृत ऊँचे मैदानी भागों में मिलता है जहाँ बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता है। यह मिट्टी भारी होती है जिसमें चीका की मात्रा अधिक होती है। इसमें फास्फोरस, क्षार, नाइट्रोजन तथा जीवांशों की कमी होती है किन्तु चूना एवं पोटाश पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
- खादर या नवीन जलोढ़ मिट्टी- तराई क्षेत्र की मिट्टी के दक्षिण में खादर मिट्टी का क्षेत्र है, जिसका सर्वाधिक विस्तार पूर्णिया और सहरसा जिले के कोसी क्षेत्र में है। इस मिट्टी का रंग गाढ़ा भूरा या काला है। यह मिट्टी सामान्यतः चूना रहित एवं क्षार रहित है तथा इसमें काफी उर्वरा शक्ति पाई जाती है। धान की खेती के लिए विशेष रूप से अनुकूल है।
दक्षिण बिहार के मैदान की मिट्टियाँ-
छोटानागपुर के पठार एवं गंगा के मैदान के बीच जलोढ़ मिट्टी है जिसका निर्माण सोन, पुनपुन, फल्गू इत्यादि नदियों द्वारा हुआ है। इन मिट्टियों के निम्न उप प्रकार है:-
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- कगारी मिट्टी- दक्षिण बिहार की नदियों के किनारे एक संकीर्ण पट्टी के रूप में प्राकृतिक तटबंध पर पाई जाती है। यह एक मोटी कांपयुक्त चूना प्रधान मिट्टी है जिसका गठन हल्का एवं रंग भूरा है।
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- टाल मिट्टी- गंगा के दक्षिण में प्राकृतिक तटबंध के दक्षिण में स्थित बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में मिलनेवाली मिट्टी है जो बक्सर से लेकर भागलपुर तक 8-10 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में मिलती है।
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- पुरानी जलोढ़ या करैल-कैवाल मिट्टी: इस मिट्टी का विस्तार गंगा के दक्षिणी मैदान-भाग में रोहतास से लेकर गया, पटना, मुंगेर होता हुआ भागलपुर तक है। करैल मिट्टियों में क्षारीय प्रकृति तो कैवाल मिट्टियों में क्षारीय एवं अम्लीय गुण काफी संतुलित रूप में पाए जाते हैं। इनका रंग गहरा भूरा, पीला एवं हल्का पीला होता है। इनमें जल सोखने की क्षमता अधिक होती है तथा अत्यधिक उर्वरा शक्ति पाई जाती है। इस मिट्टी को भांगर मिट्टी भी कहते हैं।
- बलथर मिट्टी – कैमूर से लेकर भागलपुर तक इसका विस्तार है इसका रंग पीलापन लिए हुए लाल है जिसमे बालू और कंकड़ की बहुलता है। यह एक कम उपजाऊ मिट्टी है।
- पुरानी जलोढ़ या करैल-कैवाल मिट्टी: इस मिट्टी का विस्तार गंगा के दक्षिणी मैदान-भाग में रोहतास से लेकर गया, पटना, मुंगेर होता हुआ भागलपुर तक है। करैल मिट्टियों में क्षारीय प्रकृति तो कैवाल मिट्टियों में क्षारीय एवं अम्लीय गुण काफी संतुलित रूप में पाए जाते हैं। इनका रंग गहरा भूरा, पीला एवं हल्का पीला होता है। इनमें जल सोखने की क्षमता अधिक होती है तथा अत्यधिक उर्वरा शक्ति पाई जाती है। इस मिट्टी को भांगर मिट्टी भी कहते हैं।
दक्षिणी पठार की मिट्टी-
बिहार के संकीर्ण दक्षिणी पठार में अवशिष्ट मिट्टी मिलती है जिसका रंग लाल और पीला होता है। इनमे मुख्यत: दो प्रकार की मिट्टियाँ मिलती है:-
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- कैमूर पहाड़ी की लाल बालूकायुक्त मिट्टी
- लाल और पीली मिट्टी – यह जमुई, मुंगेर के खड़गपुर पहाड़ी क्षेत्र, बांका, नवादा, गया और औरंगाबाद के पठारी क्षेत्र में मिलता है। लौह तत्व की प्रधानता के कारण इसका रंग लाल मिलता है।
बिहार की मिट्टियों के संदर्भ में महत्वपूर्ण तथ्य:
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- बालसुन्दरी मिट्टी: यह मिट्टी खादर क्षेत्र के बाद पूर्णिया के दक्षिणी भाग से आरंभ होकर सहरसा, दरभंगा और मुजफ्फरपुर के दक्षिणी भाग को घेरती हुई पूरे सारण जिले तथा चपारण के शेष दक्षिणी-पश्चिमी भाग में विस्तृत है। यह पुरानी जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र है। इस मिट्टी में चूने की मात्रा 30% से अधिक है अर्थात् यह क्षारीय प्रकृति की है। इसका रंग हल्का भूरा, गहरा भूरा एवं सफेद होता है। इसकी उर्वरता निम्न श्रेणी की है।
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- बांका जिले के ऊँचे भागों में लेटेराइट मिट्टी पाई जाती है।
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- जमुई, गया और नवादा में अबरखमूलक लाल मिट्टी पायी जाती है, ऊँचे क्षेत्रों में इस मिट्टी का रंग गुलाबी तथा निचले क्षेत्रों में पीला होता है।
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- लाल और पीली मिट्टी का निर्माण आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों के विखंडन से हुआ है, जिनमे ग्रेनाईट, नीस तथा शिष्ट प्रधान है।
बिहार की मिट्टियों की समस्यायें एवं समाधान :
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- मिट्टी अपरदन
- समाधान
- वृक्षारोपण करना
- वनों का संरक्षण – आग एवं कटाई से
- ढलवा भूमि पर पशुचारण पर रोक
- ढलवा भूमि पर समोच्च जुताई
- पहाड़ी ढालों पर सोपानी कृषि
- बाढ़ नियंत्रण करना
- झूम कृषि पर प्रतिबंध
- जल जमाव
- समाधान
- जल निकासी के उपाय करना
- मिट्टी अपरदन
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- मिट्टी का अनियंत्रित अति उपयोग
- समाधान
- फसल चक्र अपनाना
- खादों का संतुलित उपयोग
- गैर रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग
- भूमि को परती छोड़ना
- गहरी जुताई
- भूमि उपयोग नियोजन
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड
- मिट्टी का अनियंत्रित अति उपयोग
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