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राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग : National Commission for ST (NCST) -Important Art 338A

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग 

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना अनुच्छेद 338 में संशोधन (89वां संविधान संशोधन) करके और संविधान में एक नया अनुच्छेद 338क अंतःस्थापित करके की गयी थी। इस संशोधन द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को दो अलग-अलग आयोगों नामतः

(i) राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, और

(ii) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में विभक्त किया गया था।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग: पृष्ठभूमि

देश में कुछ समुदाय अस्पृश्यता, आदिम कृषि-प्रथा, आधारभूत सुविधाओं के अभाव, भौगोलिक एकाकीपन जैसे गहन सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़ेपन से पीड़ित रहे हैं जिनके हितों के संरक्षणों के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है इन समुदायों को संविधान के अनुच्छेद 341(1) और 342(1) के प्रावधानों के अनुसार क्रमशः अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है।

संविधान के अनुच्छेद 338 के मूल प्रावधानों के अधीन अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए नियुक्त विशेष अधिकारी का प्रावधान है।

1978 में सरकार ने (एक संकल्प के द्वारा) अध्यक्ष के रूप में श्री भोला पासवान शास्त्री एवं 4 सदस्यों (3 वर्ष के कार्यकाल के साथ) अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए एक बहु-सदस्यीय आयोग (गैर-विधायी) की स्थापना का निर्णय लिया।

65वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए वैधानिक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया।

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग : अध्यक्ष

आयोग वर्ष अध्यक्ष
प्रथम आयोग 1992 श्री रामधन
द्वितीय आयोग 1995 श्री एच0 हनुमन्थपा
तृतीय आयोग 1998 श्री दिलीप सिंह भूरिया
चौथा आयोग 2002 विजय सोनकार शास्त्री

 

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग: पदावधि एवं कार्य

पदावधि

अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा प्रत्येक सदस्य के कार्यालय की अवधि कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्षों की होती है।

कार्य

1. अनुसूचित जनजातियों के लिए इस संविधान या विधि या सरकार के किसी आदेश के सभी विषयों का अन्वेषण और अनुवीक्षण करना तथा इसका मूल्यांकन करना;

2. अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों और सुरक्षा से वंचित करने से संबंधित विशिष्ट शिकायतों की जांच करना;

3. अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना।
संघ और किसी राज्य के अधीन उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना;

4. अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं सामाजार्थिक विकास से संबंधित कार्यक्रमों/स्कीमों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए प्रतिवर्ष, और अन्य समयों पर, जो आयोग ठीक समझे, राष्ट्रपति को प्रतिवेदन पेश करना;

5. अनुसूचित जनजातियों के संबंध में अन्य कार्यों का निपटान करना जो राष्ट्रपति, संसद द्वारा बनाए गए किसी विधि के उपबंधो के अधीन रहते हुए, नियम द्वारा विनिर्दिष्ट करें;

6. आयोग अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण, विकास तथा उन्नयन के संबंध में निम्नलिखित अन्य कृत्यों का निर्वहन-

(i) वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों के लिए गौण वन उत्पाद के संबंध में स्वामित्व अधिकार प्रदान करने की आवश्यकता हेतु उपाय किए जाने चाहिए।

(ii) खनिज संसाधनों, जल संसाधनों आदि पर कानून के अनुसार जनजातीय समुदायों को सुरक्षण अधिकार प्रदान करने के उपाय करना।

(iii) जनजातियों के विकास के लिए और अधिक विकासक्षम जीविका संबंधी युक्तियों के कार्यान्वयन के लिए उपाय करना।

(iv) विकास परियोजनाओं द्वारा विस्थापित जनजातीय समूहों के लिए राहत एवं पुनर्वास उपायों की प्रभावोत्पादक्ता में सुधार करना।

(v) भूमि से जनजातीय लोगों के हस्तान्तरण को रोकने संबंधी उपाय करना और ऐसे व्यक्तियों को नियमत: प्रभाव पूर्ण तरीके से पुनर्स्थापित करना प्रक्रिया पहले ही हो चुकी है।

(vi) वनों का संरक्षण करने और सामाजिक वनरोपण का दायित्व लेने के लिए जनजाति समुदायों का अधिकतम सहयोग प्राप्त करने तथा उन्हें शामिल करने के लिए उपाय करना।

(vii) पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित) अधिनियम, 1996 (1996 का 40) के उपबंधों के सम्पूर्ण कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के उपाय करना।

(viii) जनजातीय व्यक्तियों द्वारा सिफ्टिंग खेती (झूम खेती) की प्रथा को पूर्णतः समाप्त करने तथा कम करने के उपाय करना।

 

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष

क्रं सं० आयोग वर्ष अध्यक्ष
1 प्रथम 2004 श्री कुंवर सिंह
2 द्वितीय 2007 श्रीमती उर्मिला सिंह
3 तृतीय 2010 डा. रामेश्वर उरांव
4 चतुर्थ 2013 डा0 रामेश्वर उरांव
5 पंचम 2017 श्री नन्द कुमार साय
6 षष्ठम 2020 श्री हर्ष चौहान

 

अनुसूचित जनजातियों के लिए संवैधानिक सुरक्षण

I. शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक सुरक्षण

अनुच्छेद 15(4):- अन्य पिछड़े वर्गों (जिसमें अनुसूचित जनजातियां शामिल हैं) के विकास के लिए विशेष प्रावधान

अनुच्छेद 29:- अल्पसंख्यकों (जिसमें अनुसूचित जनजातियां शामिल हैं) के हितों का संरक्षण;

अनुच्छेद 46:- राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से उसकी संरक्षा करेगा;

अनुच्छेद 350:- पृथक भाषा, लिपि या संस्कृति की संरक्षा का अधिकार;

अनुच्छेद 350:- मातृभाषा में शिक्षण।

II. सामाजिक सुरक्षण

अनुच्छेद 23:- मानव दुर्व्यापार और भिक्षा एवं अन्य समान बलपूर्वक श्रम का प्रतिषेध;

अनुच्छेद 24:- बाल श्रम निषेध।

III. आर्थिक सुरक्षण

अनुच्छेद 244:- पांचवी अनुसूची का उपबंध खण्ड (1) असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा जो छठी अनुसूची के अन्तर्गत, इस अनुच्छेद के खण्ड (2) के अन्तर्गत आते हैं, के अलावा किसी भी राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के लिए लागू होता है;

अनुच्छेद 275:- संविधान की पांचवी एवं छठी अनुसूचियों के अधीन आवृत विशेषीकृत राज्यों (एसटी एवं एसए) को अनुदान सहायता।

IV. राजनीतिक सुरक्षण

अनुच्छेद 164(1):- बिहार, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में जनजातीय कार्य मत्रियों के लिए प्रावधान;

अनुच्छेद 330:- लोक सभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण;

अनुच्छेद 337:- राज्य विधान मण्डलों में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण;

अनुच्छेद 334:- आरक्षण के लिए 10 वर्षों की अवधि (अवधि के विस्तार के लिए कई बार संशोधित);

अनुच्छेद 243:- पंचायतों में सीटों का आरक्षण;

अनुच्छेद 371:- पूर्वोत्तर राज्यों एवं सिक्किम के संबंध में विशेष प्रावधान;

V. सेवा सुरक्षण

(अनुच्छेद 16(4), 16(4क), 164(ख), अनुच्छेद 335, और अनुच्छेद 320(40)